नई खुशियां

नई खुशियां

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दिल जब टूटता है तो आवाज़ नहीं होती - ये डायलॉग फिल्मों में तो बहुत अच्छा लगता है पर जब असल ज़िन्दगी में खुद पर बीतता है तब पता चलता है कि कितना शोर मचता है ज़िन्दगी में।

रीमा को भी ये अंदाज़ा प्यार में धोखा खाने पर हुआ। कितना भरोसा था उस राज पर और होता भी क्यों ना छह सालों से प्यार करते थे वो एक दूसरे को। कॉलेज में एक बाद विवाद प्रतियोगिता में एक दूसरे के विपक्ष में बोलते बोलते दोनों का दिल एक ही सुर में बोलने लगा था।

वहां से परवान चढ़ता हुआ वो इश्क़ की बुलंदियों को छूने लगा था पर साथ ही इतना पवित्र था कि कॉलेज में उनके सब दोस्त उसकी मिसाल देते थे।बस इंतजार था दोनों के पढ़ाई पूरी कर के नौकरी करने का ताकि घरवालों को भी बता सकें। वैसे रीमा ने अपनी छोटी बहन को सब बता रखा था पर राज ने अपने घर पर किसी को कुछ नहीं बताया हुआ था क्योंकि उसके पापा थोड़े सख्त स्वभाव के थे।

आखिर दोनों की नौकरी लग गई।रीमा ने राज को पहले अपने घर पर बात करने को कहा क्योंकि सबसे ज्यादा समय उसे अपने पापा को मनाने में ही लगना था।पर राज हिम्मत ही जुटाता रह गया और पापा ने उसका रिश्ता पक्का कर दिया।राज नहीं बोल पाया और उसने रीमा के आगे हाथ जोड़कर माफ़ी मांग ली।

पर क्या माफ़ी रीमा के टूट दिल को जोड़ सकती थी।रीमा की टूटी हालत उसके परिवार के सामने आए उससे पहले उसकी बहन ने नौकरी की दिक्कत कहकर बात संभाल ली और रीमा को दूसरे शहर में कुछ समय के लिए तबादला कराने का सुझाव दिया।रीमा को भी उसकी बात सही लगी और वैसे भी वो इसी शहर में रहकर राज की शक्ल नहीं देखना चाहती थी।

रीमा को तबादला कराए छह महीने हो गए थे और अब वो कुछ सेट होने लगी थी।अपने मम्मी पापा के शादी पर ज़ोर देने को वो हर बार की तरह वापिस तबादला होने पर करूंगी कहकर टाल देती थी और राज के लिए उसने अपने मन, कान, आंख, दिल सबके दरवाजे बंद कर दिए थे हमेशा के लिए ।

लेकिन लगभग पिछले एक महीने से उसे अपने ऑफिस में नए आए सौरभ के अंदाज़ कुछ अजीब से लग रहे थे।हर वक़्त उसे ऐसा लगता था कि सौरभ की निगाहें उसी पर रहती हैं लेकिन जैसे ही वो गर्दन घुमाती तो वो कहीं ओर देखने लग जाता था। वैसे भी औरतों और लड़कियों की छटी हिस बड़ी तेज होती है।अपनी ओर उठती हर अच्छी बुरी निगाह की उन्हें अच्छे से पहचान होती है। सो रीमा भी सौरभ के मन की बात समझ रही थी।

सौरभ अच्छा लड़का था इसलिए रीमा को दुख हो रहा था कि बात जितना आगे बढ़ेगी कल को सौरभ को उतना ही दुख होगा इसलिए एक दिन उसने हिम्मत करके सौरभ को कैंटीन ले जाकर सब बता दिया और खुद से दूर रहने की सलाह दी।

सौरभ बोलने लगा कि आपकी इन्हीं सब अच्छी बातों और आदतों के कारण मैं आपको पसंद करता हूं। कोई जल्दी नहीं है मुझे, मैं उम्र भर आपका इंतजार करने को तैयार हूं लेकिन शादी मैं सिर्फ आपसे ही करूंगा। अब इंतजार मुझे बस इस बात का है कि कब आप बीती हुई बातें भुलाकर आगे बढ़ेंगी और हम दोनों की ज़िन्दगी को खुशियों से भर देंगी।

रीमा तंजिया हंसी हंसते हुए बोली, यही बात राज ने मुझे छह साल तक कही है तो समझ ही जाओ कि कितना विश्वास कर सकूंगी मैं इस पर। लेकिन सौरभ मुस्करा कर बोला कि अब तो मेरा आपसे यह वादा है कि जीवन के अनजान सफ़र में जिसमें दो अनजान लोग एक होकर एक राह के मुसाफिर हो जाते हैं वो सफ़र मैं सिर्फ आपके साथ करूंगा चाहे मुझे आपको मनाने में कितना समय ही क्यों ना लग जाए। रीमा पलट कर बग़ैर कुछ बोले अपनी सीट पर चली गई।

सौरभ अब पूरा वक़्त रीमा का ख्याल रखता था। रीमा चिढ़ भी जाती थी पर उसके शालीन व्यवहार की शिकायत भी किस से करती। धीरे धीरे उसकी चिढ़ कम होने लगी थी।

एक दिन सौरभ ऑफिस में अपनी मां और बहन को ले आया और लंच ब्रेक में रीमा से मिलवाते हुए कहने लगा कि मां ये आपकी होने वाली बहू। रीमा को इतनी शरम अाई और साथ ही गुस्सा भी कि कहीं कोई और ऑफिस में ना सुन ले पर वहां कोई आस पास नहीं था। मां बोली कि मुझे तो ये पसंद है पर जब ये तुझ जैसे लंगूर को पसंद कर ले तब बात आगे बढ़ाएंगे । सौरभ जोर से ठहाका मार के हंस पड़ा और रीमा जल्दी से कैंटीन से बाहर निकल गई।

वो उस दिन ऑफिस से तो आ गई पर शायद उसके दिल में कुछ हलचल मचने लगी थी। उसे खुद भी पता ही नहीं चला कब सौरभ की अच्छी आदतों और प्यार ने राज के दिए गम को दूर कर उसके दिल में जगह बना ली। एहसास उसे तब हुआ जब अकेले में भी गाहे बागाहे सौरभ का ख्याल दिल में रहने लगा था। 

लेकिन फिर भी वो चुप थी और सौरभ को अपने दिल कि बात नहीं बताना चाह रही थी। शायद कहीं ना कहीं डर रह गया था राज के धोखे का। इसी कारण अब वो सौरभ से कतराने लगी थी कि कहीं सौरभ उसके मन की बात ना जान जाए पर ये कतराना भी उसके मन की बात को छुपाने की जगह और उजागर कर गया।

सौरभ ने एक दिन फिर ऑफिस से निकलते हुए उसका रास्ता रोक लिया और कहने लगा कि तुम इतना मुझसे कतराने लग गई हो, लगता है मेरे प्यार ने तुम पर भी असर डाल ही दिया। रीमा बग़ैर जवाब दिए जाने लगी तो सौरभ ज़ोर से हंस दिया और बोला अब और इंतजार नहीं करूंगा मैं। इस इतवार को मैं अपने मम्मी पापा को बुला रहा हूं, तुम भी बुला लो। अब पहले मुहूर्त में ही तुम मेरी ज़िन्दगी में आ जाना अपने सारे बीते हुए दिनों की बुरी परछाइयां छोड़कर। मैं तुम्हे इतनी खुशियां दूंगा कि तुम सिर्फ उनकी बात करोगी पिछली नहीं और ये कहकर सौरभ ने रीमा की ओर अपने हाथ बढ़ा दिया और इस बार उसे मायूसी नहीं मिली। रीमा ने भी चमकती आंखों से आने वाली नई खुशियों का दामन थाम लिया।


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