"निगरानी "
"निगरानी "
बेटी गरीब की हो या अमीर की, अनपढ़ या पढ़े-लिखे समाज से, जैसे ही थोड़ी बड़ी हुई, लोगों की निगाहें बदल जाती हैं। जैसे संस्कार बोये जाते हैं वैसे व्यवहार हो जाते हैं। कन्याओं का चरण पूजने वाला समाज, भोगने वाला बन रह जाता है।
रोज मां टोकती- ऐसे ना बैठ, ऐसे ना चल, यह ना पहन वह न पहन। भाई देखता सारे दिन, पूरी नजर रखता। बाप भी तनाव में, आजकल माहौल जो इतना ख़राब है।
एक दिन निगाहों में किसी के चढ़ गई। बस उसकी किस्मत बिगड़ गई। लौट रही थी कोचिंग से, थोड़ा अंधेरा था, बस समय की चाल बदल गई। जिन्होंने पकड़ा था उसे, उनकी ही जकड़ में जकड़ गई।
हैरान परेशान मां -बाप राह निहारते थे। आसपास निगाह दौड़ाते, चुपचाप, खोजबीन- छानबीन कर रहे थे। अभी सोच विचार में थे, क्या करें ?
बेटी का मामला है बहुत ही सावधानी बरतनी होगी। थोड़ी सी ही ठेस से इज्ज़त का शीशा टूट जाता है, दुबारा जुड़ने का कोई उपाय नहीं। किरचें चाहें कितनी बटोरो जो बटोरता है उसे भी चुभती हैं।
दो-तीन घंटे बाद जिस हालात में लौटी तो कांच की किरचों के समान सारे घर को काट गई। डरते थे जिससे घर वाले वही बात हो गई।
मां बेटी को लेकर कमरे में चली गई। सभी बाहर थे, जब वह बाहर आई तो सभी की प्रश्नवाचक निगाहें उसकी तरफ देखने लगीं ??????
"आप सभी की निगरानी व्यर्थ गई...।
निगरानी तो कहीं और ही होनी चाहिए थी ना????? "मां के मुंह से निकला।
ये प्रश्न सबका मुंह चिढ़ा रहा था।