नदी की जीवनी
नदी की जीवनी
हे राहगीर, अगर तुम मेरी दशा में एक आँसू भी ना बहाओ तो चलेगा, लेकिन मेरी कथा तो सुनता जा। मैं एक नदी हूँ, मुझसे तो वाकिफ होंगे तुम, क्या परिचय दू अपना। चलो आज मैं तुम्हे अपनी कहानी सुनाती हूँ। वैसे तो मेरे कई नाम है अलग अलग जगहों में मुझे अलग अलग नामो से जाना जाता है, जैसे, तटिनी सरिता, प्रवाहिनी आदि। मेरी जन्मभूमि पर्वत है में वही से निकलती हूँ और कल कल करती हुई बहती हुई, कभी तेज, कभी मद्धम बहती हुई, ठिठोली करती हुई मैं सागर में जा मिलती हूँ, और शांत हो जाती हूं पूर्ण रूप से सागर में समा जाती हू। मेरा सफर बस इतना ही रहता है, मैं बहूँत चंचल हूँ।
इसीलिए कई लोग लड़कियों को नदी की उपाधि देते हैं।
लड़किया भी स्वभाव से चंचल होती है जब तक अपने माँ पापा के साथ होती है बहूँत शैतानियां करती है लेकिन जैसे ही वह सागर रूपी अपने पति से मिलती है तो मेरी ही तरह शांत हो जाती है, और अपना अस्तित्व खो देती है पूर्ण रूप से पति की बन जाती है जैसे मैं सागर में मिलकर अपना अस्तित्व खो देती हूं।और सागर ही कहलाती हूँ।मुझे सागर से मिलने में बहूँत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है पर मैं रुकती नहीं हू अपना रास्ता बनाते हूँए आगे बढ़ती ही जाती हूं। वैसे मैं तुम सब के लिए भी बहूँत उपयोगी हूँ ये सब तो तुम लोग जानते ही हो, मेेरे ही कारण तुम्हे पानी मिलता है और तुम अपने बहूँत से काम कर पाते हो, कई सारे जीव मेरे पानी मे ही पैदा होते है तो मैं कई लोगो को भोजन भी प्रदान करती हूं। मेरे ही पानी से खातों में सिंचाई होती है तभी तुम अनाज खा सकते हो, मेरे ही पानी से तुम बिजली बनाते हो, और उसी से तुम बहूँत सारे काम निपटाते हो।
कई लोग मुझे माता मानते है और अगले ही पल कई सारे काम वो मेरे तट पर ही करते है, मुझमे कूड़ा डालते है, कपड़े धोते है, मुझमे अपने नित कर्म करते है, अगर मेरे पानी दूषित हो गया तो तुम क्या करोगे ? कहाँ से लाओगे शुद्ध पानी ? तुम बताओ क्या तुम अपनी माता को यू गंदा करते हो जैसे तुम मुझे करते हो ? मुझमे भी भावनाएं है, मुझे भी एहसास होता है। जहाँ मैं सब कुछ बनाती हूँ वहाँ अगर मैं अपने रूद्र रूप में जा जाऊ तो सब मिटा भी सकती हूं, तुमने तो देखा ही होगा कभी।
इसलिए मैं चाहती हूँ की तुम सब प्रकृति को समझो उसके नियम ना तोड़ो, प्रकृति जहाँ सब को बहूँत कुछ देती है तो वो बहुत कुछ लेना भी जानती है, इसीलिए मेरा निवेदन है तुमसे की तुम सब प्रकृति को समझो उसे संभालो।
और एक बात जो तुम्हे मुझसे सीखनी चाहिए, जीवन मे कितनी ही कठिनाई आये हमेशा निरंतर आगे बढ़ते जाना है, तुम्हे कभी हार नहीं माननी है, कभी थकना नहीं है, कभी रुकना नहीं है, बस बढ़ते ही जाना है मेरी तरह, और अपने लक्ष्य को पाना है। अपने आत्मविश्वास को कभी टूटने नहीं देना है, बस बढ़ते जाना है, चलो अब बस भी करती हूं तुम्हें भी मेरे कारण बहुत देर हो गई है बस मेरी बात याद रखना, अपनी माँ को कभी गंदा ना करना।
