जो बोओगे वही तो पाओगे ।
जो बोओगे वही तो पाओगे ।
बहू मीरा ,चाय दे दो , आठ बज गए हैं ठंड से हालात खराब हो रही है।" मीरा के ससुर जी ने कहा । मीरा चिढ़ती हुई चाय का कप बाबूजी के टेबल पर रख के कहती है , " "बाबूजी ,थोड़ा सब्र किया कीजिये , सुबह बहुत काम रहते हैं । हम दोनों को ऑफिस जाना होता है फिर आपके पोते रोहन को भी स्कूल जाना होता है । आप तो घर पर ही रहते हैं ,किसी दिन थोड़ा देर से चाय पी लेंगे तो जम नही जाएंगे । इतना कहती हुई मीरा रूम से बाहर निकल गई । बाबूजी के आँखों मे आँसू आ गए , वो सोचने लगे ऐसा क्या माँग लिया मैंने कि बहू इतना गुस्सा हो गई , आँसू पोंछते हुए चाय पीने लगे जो अब तक बिल्कुल ठंडी हो गई थी। इतना सुनने के बाद तो उनमें इतनी हिम्मत ही नही बची थी कि मीरा को चाय दोबारा गर्म करने बोल सकें , चुप चाप ठंडी चाय पी और सैर के लिए निकल गए । गार्डन की बेंच में बैठ के सोचने लगे , कितनी अच्छी थी ज़िन्दगी जब बाबूजी की पत्नी जिन्दा थी। उनका बहुत ही अच्छे से ध्यान रखती थी । उस समय तक तो मीरा का स्वभाव भी बहुत ही अच्छा था .कितना खुशहाल परिवार था , लेकिन दो साल पहले अचानक उनकी पत्नी हार्ट अटैक से उनसे सदा के लिए दूर हो गई । उसके जाने के बाद बाबूजी बिल्कुल अकेले हो गए थे । मीरा का स्वभाव भी बदल गया अब वो बाबूजी से उखड़ी उखड़ी रहती। बाबूजी सोचते थे कि पोते के साथ समय बिताऊं लेकिन उसे भी फुर्सत नहीं रहती थी । स्कूल के बाद इतनी सारी क्लासेस लगाई थी मीरा ने , बिचारे के पास तो खुद के लिए भी टाइम नहीं होता था तो वो अपने दादाजी को कहाँ से समय देता।उनके बेटे विवेक को तो ऑफिस के काम से ही फुर्सत नही. रहती थी खाने के टेबल में ही जितनी बात हुई बस । इन्ही सब कारणों से बाबूजी अकेले हो गए थे , उन्हें अपनी पत्नी संध्या की बहुत याद आती थी वो सोचते अगर संध्या आज जिंदा होती हो उन्हें ये दिन कभी नही देखने पड़ते। मीरा हमेशा उन्हें कुछ न कुछ सुनाती रहती थी , उन्हें खाने के लिए भी बहुत ही कम देती थी , और जब बाबूजी थोड़ा ज्यादा मांगते तो उन्हें उनकी तबियत का हवाला देते हुए माना कर देती । बेचारे रोज़ ही आधा पेट खा कर सो जाते । बुढ़ापे का हवाला देते हुए मीरा ने घर भी अपने नाम करवा लिया था , बाबूजी इसीलिए चुप रहते की कहीं मीरा उन्हें घर से ना निकाल दे , बाबूजी बहुत ही सीधे इंसान थे , उन्हें लड़ाई झगड़ा बिल्कुल भी पसंद नही था , वो बस अपनी बची हुई ज़िन्दगी शांति से बिताना चाहते थे ।
एक दिन बाबूजी से चाय का कप गिर गया , मीरा ने बहुत तमाशा किया और बाबूजी को घर मे ना रखने की फरमाइश भी.जिसका डर था वही हुआ , बाबूजी को वृद्धाश्रम भेजने की बात पर मुहर लगी । विवेक ने कहा
" ठीक है मीरा, हम सब की भलाई के लिए मैं कल ही वृद्धाश्रम में एक रूम देख के आता हूं तुम चिंता ना करो" ।
तभी रोहन बोल पड़ा ," पापा ,आप अपने और मम्मी के लिए भी रूम देख आना , क्योकि मैं भी बड़ा हो कर आप दोनों को सब की भलाई के लिए वही भेजूंगा."अपने बेटे के मुंह से ऐसी बात सुनके दोनों पति पत्नी शॉक हो जाते है , तभी रोहन कहता है
" भलाई इसमें नहीं कि दादाजी वृद्धाश्रम में रहें, बल्कि इसमें है कि वो हमारे साथ इस घर मे रहें । वो अभी कमा नहीं सकते तो क्या उन्होंने आपको इस काबिल बनाया की आप कमा सको । अगर उन्होंने ओर दादीजी ने अपनी इच्छाओं को मार के आपको ना पढ़ाया होता तो क्या आप आज यहाँ होते ?
जिस इंसान ने अपना घर आपके नाम किया आप उसे उसके ही घर से निकालने की बात कर रहे हैं । जब मुझे कुछ होता है या मुझे कुछ चीज़ की जरूरत होती है तब यही इंसान मेरे साथ होते हैं ।आप दोनों को तो ऑफिस से ही फुर्सत नही मिलती और आप दोनों इस घर की इसी नीवं को निकालने की बात सोच रहे हैं , सोच लीजियेगा अगर नीवं हिली तो पूरा घर गिर जाता है ।" बाबूजी चुपचाप एक कोने में आँसू बहाते खड़े थे , आज उन्हें अपने पोते पर बहुत गर्व हो रहा था ।जो बात उनका अपना बेटा नहीं समझ सका वो बात इतना छोटा बच्चा समझ चुका था और अपने माँ पापा को भी समझा चुका था । मीरा और विवेक ने अपनी गलतियों के लिए बाबूजी से माफी मांगी , और आगे भी ऐसी गलती ना करने का प्रण लिया । रोहन दौड़ कर अपने दादाजी के गले लग गया , अब वो हमेशा यही रहेंगे वो भी इज़्ज़त के साथ ।
