नालायक

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"अरे कहां मर गयी" ? "रसोई यूं ही बिखरी पड़ी है और महारानी आराम फरमा रही है" । सास रमादेवी की चीखने की आवाज से दर्द से कराहती सुधा उठ ही रही थी कि धड़ाम से दरवाजा खुल गया । दरवाजे पर सास ससुर दोनों ही गुस्से से तमतमाये खड़े थे । उन्हें देख हड़बड़ाकर बिस्तर से उठ गयी सुधा और डर से कांपने लगी । रमादेवी चिखती बोली "बस तुझे तो मौका चाहिए कामचोरी का" , "यहां पड़ी है बिस्तर पर बाकी के काम कौन निपटायेगा " ? 


" तेरा बाप " ? 


जी तो किया सुधा का बोले "सुबह से वही तो कर रही है सारे काम" , पुरे बदन में दर्द हो गया है । पर बोल नहीं पायी । कारण मां -पिता के संस्कार और सहनशीलता । परिवार में चार बहुएं थी । किसी पर कोई पाबंदी नहीं थी बस उस पर ही सारे प्रतिबंध थे । नौकरानी से ज्यादा हैसियत नहीं थी उसकी कारण कुछ और नहीं था "बल्कि पति की कम आमदनी थी ", बाकीयों की अपेक्षा । अपने ही ख्यालों में खोयी थी वो कितना कुछ कह डाला सास ससुर ने उसे एहसास भी न हुआ ।


तंद्रा तब टूटी जब सास ने आवेग में उसके हाथों को पकड़ कर लगभग घसीटते हुए कमरे से बाहर ढ़केल दिया । वो लड़खड़ाती अभी गिरने ही वाली थी कि उसी वक्त काम से आये पति की बांहों ने संभाल लिया । माता पिता का ऐसा रुप देखकर हतप्रभ रह गया पर बिना कोई सवाल किए सुधा से बोला," कुछ कहने की जरूरत नहीं है सुधा" । चलों यहां से अब हम उस घर में नहीं रह सकते जहां इंसानों से ज्यादा पैसों को एहमियत दी जाती है । बोलकर दोनों वहां से उसी वक्त अपना जरूरी सामान लेकर चले गये पर पीछे छोड़ गये ढ़ेर सारे काम जो निक्कमी सुधा करती थी और घर के वो छोटे-छोटे काम जो सबसे कम पैसा कमाने वाला बेटा करता था ।


जिसे अब रमा देवी और उनके पति को करने थे क्योंकि घर के बाकी तीनों बेटे पैसे कमाने में व्यस्त थे और बहुएं अपने शौक पुरे करने में ।



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