दूसरी शादी
दूसरी शादी
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दूर-दूर तक चर्चे थे दोनों के प्यार के। कितना प्यार था सुजीत और पूनम में ये वो खुद भी नहीं जानते थे। उनके प्यार की मिसालें दी जाती थी प्रेमियों के बीच।
एक शादी में दोनों ही मिले ,आंखें चार हुई , दिल धड़का और दोनों एक-दूसरे के हो गये थे। धीरे धीरे प्यार परवान चढ़ता गया पहले तो जात_पात को लेकर अड़चनें आयी पर फिर दोनों के ही परिवार वाले शादी के लिए मान गये। दोनों ही प्रेमियों को मानों पंख लग गये थे शादी के बंधन में बंध कर। एक बेटी हुई जिन्दगी स्वर्ग से भी सुंदर थी। पर एक दिन अचानक ही सड़क दुर्घटना में सुजीत की मौत हो गयी। सब आवाक रह गये इस घटना से पर पूनम तो टूट ही गयी थी। पागलों जैसी हालत हो गयी थी मगर खुद को सम्भाल लिया उसने जल्दी ही अपनी बेटी के लिए क्योंकि सुजीत ने आखिरी वक्त कहा था उससे "मेरी कमी न महसूस होने देना बेटी को"। जिन्दगी जैसे तैसे चल रही थी उसकी पर परिवार वालों को हर पल उसकी चिन्ता होती कि कैसे पूरी जिन्दगी काटेग
ी वो अकेले। दूसरी शादी के लिए बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी क्योंकि सब उसका फैसला जानते थे पर बोलना तो था ही। बहुत हिम्मत करके एक दिन उसकी माँ ने उससे कह ही दिया "बेटी पूरी जिन्दगी पड़ी है तेरे सामने फिर बेटी को भी तो पिता की कमी महसूस होती होगी न " इसलिए हम चाहते है तू दूसरी शादी कर ले। माँ की इस बात पर हैरानी से वो माँ का मुंह देखने लगी क्योंकि सब जानते थे वो किसी को अपनी जिन्दगी में जगह नहीं देगी। थोड़ी देर बाद बिना कोई जवाब दिये उठकर जाने लगी तो माँ ने फिर कहा "कुछ तो बोल बेटी " क्या फैसला है तेरा ?
"अपने लिए न सही कम से कम अपनी बेटी के बारे में तो सोच"।
माँ की चिन्ता समझती थी वो इसलिए अपनी डबडबाई आँखों को पोंछती बोली " माँ मान लो मैं शादी के लिए हां कर भी दूं " आपसब मेरे लिए पति ढ़ूंढ़ भी लो पर क्या मेरी बेटी के लिए पिता ढूंढ पाओगे " ? जो मेरी बेटी को उसकी बढ़ती उम्र के साथ बेटी की ही तरह देखे एक युवती की तरह नहीं ?