Ruby Prasad

Drama

2.1  

Ruby Prasad

Drama

किन्नर माँ

किन्नर माँ

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आज नवीन के साथ साथ उसकी मां का भी सपना पूरा हुआ था। कोई उसपर व्यंग्य न करें इसलिए बचपन से ही उसे खुद से दूर रख पाला था। वो नहीं चाहती थी कि उसकी परछाई भी उसपर परे।  

आज जब वो एक डाक्टर बन गया था तो मां के लाख मना करने पर भी वो अपनी जन्मभूमि पर ही अस्पताल खोल कर लोगों का इलाज करना चाहता था। तय समय पर नवीन घर भी आ गया व लगभग एक साल के अन्दर ही अपना अस्पताल भी खोल लिया। जिसका नाम भी उसने अपनी मां के नाम पर रखा था। उद्घाटन के लिए सबने बड़े नेता या फिर अभिनेता को आमंत्रित कर उद्घाटन करवाने की सलाह दी मगर मां के हाथों से ही उद्घाटन करवाने के लिए वो अडिग था। काफी मनाने पर मां मानी थी।

तय समय पर ज्यों ही नवीन की मां ने अस्पताल के दरवाजे पर कदम रखा तो पीछे भीड़ से आवाज आयी-

"अरे ये तो किन्नर है"। डाक्टर साहब की मां किन्नर है !"

इस वाक्य के साथ ही बेशर्मी भरे ठहाकों की गूंज उठी। इस व्यंग्य से निराश ज्यों ही नवीन की मां वापस जाने के लिए मुड़ी तो नवीन ने मां का हाथ पकड़ भीड़ की तरफ मुखातिब होते हुए बोला हां मेरी मां किन्नर है पर मुझे जन्म देने वाली मां हमलोगों की तरह ही सामान्य इंसान थी, जिसने मुझे बीच सड़क पर मरने को छोड़ दिया था। आज मैं जो कुछ भी हूं इसी किन्नर मां की वजह से हूं। 

आप लोग चाहे न चाहे मगर आज उद्घाटन तो मेरी किन्नर मां के हाथों ही होगा। जिन हाथों के संघर्ष से मेरे भाग्य की लकीरें खिंची गयी है। मेरी इन्हीं किन्नर मां के पवित्र पैरों के ही प्रवेश से अस्पताल खुलेगा जिनके चरणों की धूल से इस अस्पताल की नींव रखी गयी थी। इतना कह दृढ़ नवीन ने कैंची मां की तरफ बढ़ाई जिसे पकड़ते वक्त नवीन की मां की आंखें छलक आयी जिनमें गर्व साफ साफ झलक रहा था। रिबन कट चुका था और भीड़ से व्यंग्य वाणों की जगह अब तालियों की आवाज़ आ रही थी।


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