बाल कहानी

बाल कहानी

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बाल मनोविज्ञान को समझने के लिए फिर से बच्चा बनना पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि बच्चों को समझने के लिए बच्चा ही बनना पड़ता है ! हम बड़े अकसर बच्चों के साथ बहुत सख्ती से पेश आते है चाहते है हम जैसा कहें वो वैसा ही करे !

हम अमूमन अपने बच्चों में नटखटपन नहीं बल्कि समझदारी और सुलझापन देखना चाहते हैं दूसरें बच्चों की तुलना अपने बच्चों से करने लगते है कि उसे देखो वो इस विषय में अच्छा है वो उस चीज में तुमसे बेहतर है !

ऐसा कर हम बच्चों के मन में हीनभावना तो डालते ही है अपने लिए सम्मान भी कम कर देते हैं ! हम सोचते हैं हम उनकी हर जरुरत पूरी कर रहे हैं तो उन्हें भी हमारी हर बात माननी ही चाहिए बिना ये जाने कि वो क्या चाहते हैं क्या सोचते है !

जानेअनजाने हम अपनी मर्जी हर वक्त उन पर थोपते हैं ! बच्चों के मन को समझने के लिए हमें उनकी भावनाओं को समझना ज्यादा जरूरी होता है न कि अनुशासन का भाषन देना ! तभी हमारे बच्चे सही से जीवन में विकास कर सकते है क्योंकि बच्चे बड़ो से ही तो सीखते है !

बड़े अकसर भूल जाते हैं कि वो भी कभी बच्चे थे और जब उनके मन को कोई नहीं समझता था तो उन्हें कैसा लगता था !


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