चौथा रंग

चौथा रंग

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अरे सुमी किधर गयी ? जल्दी जल्दी हाथ चला । भैया सुबह तक आ जाएगा । कल शादी है और तुम सब हो कि गप्पे मारने में लगे हो । मेरे मोहन और श्याम कितने दिनों बाद आ रहे हैं कितने काम पड़े हैं । अरे कोई सुन भी रहे हो या सब कान में रूई डाल कर हंसी ठठ्ठा करने में लगे हो । काम के साथ साथ बड़बड़ाये जा रही थी उमा देवी ।

उनकी बड़बड़ाहट और काम की चिंता में भी उनकी खुशी साफ साफ झलक रही थी । होती भी क्यों न बेटे की शादी जो थी । 


तभी कंधे पर झूल गयी उनकी बेटी रमा । उसे डांटती उमा देवी बोली " अरी बाबरी जल्दी जल्दी काम निपटा "भैया आयेगा तो तुझे तो और भी बहाने मिल जाएंगे काम से जी चुराने के । उनकी मिठी डांट सुन मुस्कुरा रमा काम निपटाने लगी । तभी पांच वर्षीय सोनू दादी के पास आ बोला 


" दादी पापा कब आएंगे"?


पोते को गोद में ले दुलारती उमा देवी बोली_बेटा , पापा और चाचू एक साथ आएंगे । "कल सुबह " ! खुश होता सोनू खेलने में मगन हो गया । तभी पड़ोस से शोभा देवी घर में आते बोली , एक खुशखबरी सुनो बहन मेरा बेटा भी आ रहा है , कल ! उसकी भी छुट्टी मंजूर हो गयी है । 

उनकी बात सुन रमा "चाची" शोभा देवी के गले से लिपट गयी और खुशी से झूमती बोली "मतलब मेरे तीनों भाई आ रहे हैं " । शादी में बड़ा सा नेग लूंगी सबसे । दोनों मांओं के चेहरे की चमक देखते ही बन रही थी ।


सबकी बातें सुन रही शोभना पति के मिलन का सोच मन ही मन सिहर रही थी । 


शाम के सात बज गये थे आदतन मदनलाल जी ने टीवी पर समाचार का चैनल लगाया ही था कि काश्मीर में बम धमाके की खबर सुन वहीं अचेत हो गये । उनके गिरने की आवाज़ सुन सब कमरे में आ गये थे । 


अब समाचार में खबर के साथ_साथ शहीदों के नाम भी बता रहे थे । जिसे सुन दोनों मांए स्तब्ध हो गयी । रमा की चंचलता और शोभना के पिया मिलन के सपने छन्न से बिखर गये थे । एक डरावना सा सन्नाटा पसर गया था कमरे में ।


उस सन्नाटे को चीरता पांच वर्षीय मासूम पूछ रहा था _दादी , पापा , चाचू , अंकल तिरंगा लपेटे क्यों सो रहे हैं । 


तिरंगे में तो तीन रंग होते हैं , ये चौथा रंग कहा से आया दादी ?




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