सुबह का भूला

सुबह का भूला

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दिसंबर की कड़कती ठंड में भी ट्रुकालर पर आये मिस काल का नाम पढ़कर पसीने छूट गये उसके और दिल जोर जोर से धड़कने लगा । मोबाइल को अपने पल्लू में छुपाने लगी ताकि कोई देख न ले । पर क्षण भर बाद उसे एहसास हुआ कि घर पर तो कोई है ही नहीं । दोनों बच्चे स्कूल और पति सोमेस आफिस में है । 

मगर उम्र के इस मोड़ पर भी वो इतनी असहज क्यों हो रही थी ? क्यों उसके नाम से ही फिर से वो कशिश महसूस कर रही थी जो पहली बार उसे देख के लगा था समझ न पा रही थी । दिल नीरव की बुजदिली पर खफा था तो दिमाग उसकी माँ द्वारा उसके पिता के अपमान को लेकर । दिल व दिमाग के द्वंद को ताक पर रख उसने नम्बर को सेव किया ताकि प्रोफाइल में बस एक बार उसकी तस्वीर देख सके । नम्बर सेव होते ही उसकी तस्वीर देख फिर से नजरें चुराने लगी व दिल ने फिर से दिमाग का साथ छोड़ दिया व वो सब भूल गयी ।फिर तुरंत उसने उसके स्टेटस को पढ़ने के लिए उसके स्टेटस पर क्लिक किया । 

तो जो लिखा था उसे पढ़ न चाहते हुए भी चेहरे पर झरझर आँसूओं की गरमाहट महसूस होते ही मानो तंद्रा से जागी सुमन । 

तुरंत उसने अपनी धड़कनों को काबू में कर उस मिस काल पर फोन लगाया जो अब मिस काल न रहा था । उम्मीद से परे फोन नीरव की माँ ने उठाया । उसके हैलो बोलते ही नीरव की माँ बोली बेटी सुमन , मुझे व नीरव को माफ कर दो बेटी । जानती हूं तुम नाराज हो व ये भी जानती हूं कि तुम अपनी गृहस्थी में बहुत सुखी हो । तुम्हारे पिता आये थे मेरे घर तुम्हारा रिश्ता लेकर । मैने ही उन्हें बेइज्जत किया ताकि तुम अपने पिता के अपमान का बदला नीरव से शादी न करके लो । मैं भी चाहती थी तुम दोनों की शादी हो पर मैं कैसे तुम्हारी जिन्दगी बरबाद करती बोलो कैसे बताती कि नीरव को एड्स था । मैं नहीं बता पायी इसलिए मुझे ये सब........वाक्य पूरा भी न कर पायी नीरव की माँ व फफक पड़ी । 

एक लम्बी खामोशी के बाद सुमन बोली आंटी आपने जो किया शायद ही कोई करता मेरे लिए । अब एक काम और कर दिजीए प्लीज स्टेटस बदल दिजीए ( नीरव इज नो मोर ) की जगह कुछ और लिख दिजीए । क्योंकि नीरव मरा नहीं अब भी जिन्दा है मेरे और आपके दिल में । कहती सुमन ने। फोन काट दिया व फिर से स्टेट्स चेक किया जो बदल चुका था व साथ ही बदल चुका था सुमन का गुस्सा व नीरव की माँ के मन का अपराध बोध।


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