Arunima Thakur

Abstract Inspirational

4.7  

Arunima Thakur

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नाग पंचमी, पौराणिक कथा

नाग पंचमी, पौराणिक कथा

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पौराणिक कथा लिखना है। कौन सी पौराणिक कथा लिखूँ ? पौराणिक कथा तो सभी लिखेंगे तो सबकी एक जैसी नहीं हो जाएगी ? तो मैंने सोचा मैं कुछ आँचलिक पौराणिक कथा लिखती हूँ। यह कथा मैंने बचपन में हर नाग पंचमी पर आँगन में बनी घर से बाहर जाने वाली नाली के मुहाने पर बैठ कर दूध, लावा और पूजा के समान के साथ अपनी दादी के मुँह से सुनी थी और अब अपने पोते पोतियों को सुनाती हूँ। तो चलिए आप भी सुनिए:–

 पुराने जमाने में एक धनिक के पाँच पुत्र थे। पाँचों का विवाह हो चुका था। सभी बहुएं सुंदर और अच्छे परिवारों की थी। पर सबसे छोटे पुत्र की पत्नी बहुत ही सुशील और धार्मिक थी। वह अनाथ थी इसलिए घर की बाकी बहुएं उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी। एक दिन घर की सभी बहुएं जंगल में लकड़ी लाने के लिए गयी। सभी बहुएं एक तरफ से लकड़ी उठाने लगी और छोटी वाली नई बहू को दूसरी तरफ़ भेज दिया। जहां बहुत झाड़ झकार था और नागों की बाँबी थी। सभी बहुएं दरांती लेकर लकड़ी काटने लगी। छोटी बहू भी झाड़ियों को काटने लगी। तो वहां एकदम से एक बड़ा सा नाग निकला। छोटी बहू उसे देख कर डर गई। फिर हाथ जोड़कर बोली, "भैया माफ करना। मुझे नहीं मालूम था यहां तुम्हारा घर है। तुम यहीं रहो मैं दूसरी तरफ से लकड़ियाँ ले लूंगी"। नाग को उसका भैया बोलना बहुत अच्छा लगा। उसने बोला, "तूने मुझे भैया बोला है। मुझे बहुत अच्छा लगा। तुझे जो मांगना हो मांग ले"।

 छोटी बहू बोली, "मुझे कुछ नहीं चाहिए। तुम्हें अगर मेरा भैया कहना अच्छा लगा हो तो तुम मेरे भाई बन जाओ। मेरा इस दुनिया में कोई भी नहीं है"। नाग ने खुशी खुशी उसका भाई बनने के लिए हामी भर दी। अब जब भी छोटी बहू जंगल जाती एक सकोरे में थोड़ा सा दूध लेकर जाती और उसे अपने भाई की बाँबी के पास रख देती। दिन बीतते चले गए, बारिश का मौसम आया तो बहुओं ने जंगल में लकड़ी लाने जाना छोड़ दिया। कुछ दिन तो नाग ने अपनी बहन की राह देखी। फिर उसे याद आया कि इसी महीने में तो भाई बहन का त्यौहार आता है। सारी विवाहित लड़कियां अपने मायके आती हैं। उसे भी अपनी बहन के घर जाना चाहिए और उसे घर लाना चाहिए"। 

तो बस एक दिन नाग माता की आज्ञा लेकर वह मनुष्य का रूप धर कर उस धनिक के घर आया और धनिक से बोला, "मैं छोटी बहू का भाई हूँ। उसको मायके ले जाने आया हूँ।

 धनिक बोला, "उसका तो कोई भाई नहीं है"।

 वह बोला, "मैं दूर के रिश्ते में भाई लगता हूँ। बचपन में ही विदेश कमाने चला गया था। अब लौट कर आया हूँ। उसके बहुत सारी तरह से विश्वास दिलाने के बाद धनिक ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। छोटी बहू बिना एक भी प्रश्न पूछे उसके साथ चल पड़ी। रास्ते में उस मनुष्य ने कहा, "तुम डरना मत मैं वहीं नाग हूँ"।

 छोटी बहू बोली, "हाँ मैं पहचान गई थी। इसीलिए तो साथ में आ गई। नहीं तो मैं जानती हूँ कि मेरा दूर का कोई रिश्तेदार नहीं है"। 

नाग उसको लेकर अपनी बाँबी के पास गया और बोला, "तुम मेरी पूँछ पकड़ लो तो तुम इसके अंदर आसानी आ पाओगी"। छोटी बहू ने वैसा ही किया। उसने नाग की पूँछ पकड़ी और नाग बिल के अंदर घुस गया और उसके साथ-साथ छोटी बहू भी। अंदर जाकर छोटी बहू को बहुत आश्चर्य हुआ कि अंदर तो एक बहुत बड़ा महल था। जो धन धान्य, सोने चाँदी से भरा था। सैकड़ों नौकर चाकर थे। नाग ने अपनी माता से कहा देखो' माँ मैं बहन को लिवा लाया हूँ। नाग माता छोटी बहू को देखकर बहुत खुश हुई और उससे अपनी पुत्री की तरह व्यवहार करने लगी।

 एक दिन नाग माता बाहर जाते समय छोटी बहू से बोल कर गई कि देखो," मैं कुछ काम से जा रही हूँ। यह दूध रखा है अपने भाई को ठंडा करके पिला देना। बहन तो इंसान थी तो वह समझ नहीं पाई। उसने गरम गरम दूध ही अपने नाग भाई को पीने के लिए दे दिया। जिससे उसका मुँह जल गया। जब नाग माता आई तो वह अपने बेटे को दुखी देखकर बहुत गुस्सा हुई। पर नाग ने कहा माता, बहन को क्षमा कर दो। 

उसके बाद नाग वापस से मनुष्य का रूप धर कर बहुत सारे आभूषण हीरे जवाहरात उपहार के साथ सम्मान पूर्वक उसके ससुराल छोड़ गया। इतना सारा धन देखकर, उपहार देखकर बड़ी बहू को बहुत ईर्ष्या हुई। वह छोटी बहू के खिलाफ उसके पति और ससुर के कान भरने लगी। एक दिन जब छोटी बहू कुछ काम से पानी भरने कुए पर गई थी तब बड़ी बहुओं ने उसके गहने चुरा लिए और पहन कर घूमने लगी। जब छोटी बहू पानी भरकर वापस आयी तो उसने अपनी सासूमाँ से शिकायत करते हुए कहा कि यह गहने मेरे भाई ने मुझे दिए थे "।

 तो बड़ी बहुएं चिल्लाने लगी, "कौन सा भाई ? कैसा भाई ? तेरा भाई कब से इतना अमीर हो गया। कि इतने महंगे महंगे गहने देने लगा"। उनके इतना कहते ही सारे जेवर सांपों में बदल गए। बड़ी बहुएं तो डर डर कर अपने सारे सांप रूपी गहने अपने शरीर से निकाल निकाल कर फेंकने लगी। आश्चर्य की बात तो यह जैसे ही वह साँप जमीन पर गिरते वह गहनों में बदल जाते। वह फिर से उन्हें उठाकर पहनने की कोशिश करतीं और वह फिर से साँप में बदल जाते। तो वह सब भागती हुई बाहर जाकर बोली कि छोटी बहू चुड़ैल है। जादू जानती है। यह सब देख कर छोटी बहू के पति, सास, ससुर को भी छोटी बहू पर संदेह होने लगा था।

 छोटी बहू के पति ने भी बोला, "बताओ तुमको यह सब गहने किसने दिए हैं "? 

छोटी बहू ने रोते हुए कहा, "आपके सामने ही तो मेरा भाई आया था। मुझे लेकर अपने घर गया था। वही तो सारे उपहार देकर गया था।" 

छोटी बहू ने बताया, "कि जब वह जंगल में गई थी तो उसे एक नाग मिला था उसने उसको भाई कहा तो उसने उसको बहन बना लिया है। यह वही भाई है। छोटी बहू के पति को उस पर विश्वास ही नहीं हुआ। ऐसे कैसे सांप मनुष्य बन जाएगा। जरूर तू जादू जानती है। सब उसको जीवित ही जलाने की तैयारी करने लगे।

 तब छोटी बहू ने हाथ जोड़कर अपने भाई से प्रार्थना की कि भैया मैं मुसीबत में हूँ, मेरी मदद करो। उसके इतना कहते ही एक बड़ा सा नाग रेंगता हुआ आया और सबके देखते ही देखते एक सजीले युवक में बदल गया और रौबदार आवाज में बोला, खबरदार जो किसी ने मेरी बहन को परेशान करने की कोशिश की। मैं उसको जिंदा निगल जाऊंगा"। मैंने कहा था ना मैं उसका भाई हूँ।

 पति ने पूछा फिर भाभी लोगों के गहने सांपो में कैसे बदलते जा रहे थे।

 नागराज कुमार ने कहा, "क्योंकि वह गहने,सारे समान मैनें अपनी बहन को दिए थे। तुम्हारी भाभियों ने उसके गहने चुरा लिए थे। मेरी बहन के अलावा कोई और यह गहने पहनेगा तो वह तुरंत सांपों में बदल जाएंगे। इन गहनों पर सिर्फ मेरी बहन का अधिकार है।

 नाग राजकुमार के ऐसा कहने पर उन सभी बहुओं को बहुत डांट पड़ी और उन्होंने हाथ जोड़कर माफी मांगी कि वे अब कभी छोटी बहू से ईर्ष्या नहीं करेंगीं। नाग राजकुमार ने भी कहा, जैसे मैं इसका भाई हूँ, वैसे ही तुम सब का भाई हूँ। पर अगर तुम सब मेरी बहन को परेशान नहीं करोगी तो ही। यह सुनकर छोटी बहू उसका पति उसके सास ससुर सब बहुत खुश हुए। उन्होंने नागराज कुमार को घर के अंदर आमंत्रित किया। छोटी बहू एक सकोरे में ठंडा दूध लेकर आयीं और अपने भाई की खातिरदारी की। उस दिन से ही सभी स्त्रियां नाग को अपना भाई मान कर उनकी पूजा करती हैं। उनको ठंढे दूध का भोग लगाती हैं और अपने परिवार की कुशलता और संपन्नता का आशीर्वाद मांगती हैं।

 इतना सुनाने के बाद दादी कहती थी," जैसे उनके दिन बहुरे, वैसे सबके दिन बहुरे। मतलब जैसे उनके अच्छे दिन आए, वैसे सब के अच्छे दिन आए। बोलो नाग महाराज की जय।


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