Saroj Verma

Tragedy

4.5  

Saroj Verma

Tragedy

ना आना इस देश मेरी लाडो....

ना आना इस देश मेरी लाडो....

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पार्वती.... हां यही नाम था उसका, बेचारी दिनभर मिट्टी में सनी रहती, क्या करती यही काम था जो बेचारी का, मां दिनभर चाक पर बर्तन गढ़ती और पार्वती मिट्टी तैयार करती।।

   बेचारी सिमकी ने जब से मां बाप का घर छोड़ा तबसे सुख क्या होता है वो जानती ही नहीं, पति को ना घर की चिंता थी और ना गृहस्थी की, पड़ा रहता था दिन-रात दारू पीकर दूसरी औरतों के यहां, औलाद के नाम पर एक बिटिया थी जिसका नाम पार्वती था।।

   उसी के लिए दिन-रात खटती रहती, चौमासा लगने वाला था इसलिए सोच रही है कि कुछ बर्तन पहले से तैयार कर रख लें, नहीं तो एक बार मेघों ने बरसना शुरू किया तो ना धूप का भरोसा और ना अच्छी मिट्टी का भरोसा।।

   अभी इतना जोड़ भी तो नहीं पाई थी सिमकी, ना जाने कैसे कटेगा मां बेटी का चौमासा, ऊपर से सरजू का दारू का रोज रोज का खर्चा और फिर खाने में भी नखरे, कहां से लाए रोज रोज मांस मछली, कोई खजाना थोड़े ही गड़ा है या के आंगन में पैसे का पेड़ उगा है कि पेड़ हिलाया और खनाक से पैसे गिर पड़ें।‌

    दिन बीत रहे थे मां बेटी जैसे तैसे घर का खर्चा चला रहीं थीं, अब धीरे-धीरे पार्वती सयानी हो रही थी और उसके दहेज की चिंता दिन-रात सिमकी को खाए जाती, लेकिन एकाएक सिमकी ने महसूस किया कि सरजू के व्यवहार में बदलाव सा आ रहा है।।

   शायद बेटी को सयाना होता हुआ देखकर थोड़ी अक्ल आ रही हो, अब सरजू भी सिमकी के साथ बर्तन बनाने के काम में दिलचस्पी लेने लगा, उसने पीना भी कम कर दिया था और पराई औरतों के पास भी नहीं जाता, अब सिमकी को तसल्ली हो गई थी कि सरजू बदल गया है।।

   फिर एक दिन सरजू ने कहा कि अब पार्वती सोलह बरस की हो गई है, उसके ब्याह में अब देर नहीं होनी चाहिए, उसके साथ की ज्यादातर लड़कियां ब्याह चुकीं हैं।।

  सिमकी को भी सरजू की बात जंच गई और सरजू ने एक गांव का लड़का भी पसंद कर लिया, सिमकी खुश थी कि अब सरजू अपनी जिम्मेदारियां ठीक से निभा रहा था, लड़के की मां पार्वती को देखने आईं लेकिन लड़का ना आया, तब सिमकी का माथा थोड़ा ठनका, उसने सरजू से पूछा भी तो सरजू बोला शायद लड़के को कोई काम आन पड़ा था इसलिए ना आ पाया होगा।।

   सिमकी मान गई, पार्वती लड़के की मां को पसन्द भी आ गई, अब ब्याह की तैयारियां होने लगीं, ब्याह का दिन भी आ पहुंचा, पार्वती को दुल्हन के रुप में देखकर सिमकी उसकी बार बार नजर उतारती, अब बारात भी आ पहुंची, दूल्हे का चेहरा, सेहरे में छुपा था, किसी ने देख ही नहीं पाया कि दूल्हा कैसा है?जब फेरों की रस्म पूरी हो गई तब दूल्हे ने अपना सेहरा ऊपर किया, तब पता चला की दूल्हे की उम्र तो पार्वती से दुगुनी है, सिमकी ने शोर मचा दिया कि मैं अपनी बेटी किसी भी कीमत पर उस घर नहीं जाने दूंगी, सरजू ने उसे धोखा दिया था, लड़के की मां बोली कैसे नहीं जाने दोगी पूरे दो लाख में सौदा किया है तेरे पति ने, अब ये हमारी बहु है नहीं तो पैसे वापस करो।।

   क्या करती बेचारी सिमकी, कलेजे पर पत्थर रखकर अधेड़ के संग बेटी को विदा कर दिया, बहुत रोई बहुत तड़पी और कर भी क्या सकती थीं वो।।

  लेकिन दो तीन बीते होंगे कि पार्वती ससुराल से वापस आ गई, उसने बताया कि उसका जेठ भी है जिसकी शादी नहीं हुई है, सास बोली छोटे बेटे के लिए नहीं बड़े बेटे के लिए ब्याहकर लाया गया है तुझे ,ये सुनकर रातों रात पार्वती ससुराल से भाग आई लेकिन पीछे पीछे वो लोग भी पहुंच गए।।

   तभी सिमकी ने कुछ सोचा और पार्वती का हाथ पकड़कर खेतों वाली पगडंडी पकड़कर भागने लगी, भागते भागते वो शहर वाली सड़क तक आ पहुंची, किसी का ट्रैक्टर जा रहा था उसने कहा भइया जरा मदद कर दो कुछ लोग पीछे पड़े हैं, ट्रैक्टर वाले ने मां बेटी को असहाय देखकर मदद कर दी, सिमकी पुलिस चौकी पहुंची, रिपोर्ट लिखाई, नाबालिग के विवाह के जुर्म में सबको सजा हो गई साथ में सिमकी को भी।

  पार्वती ने आकर फिर से वही बर्तन बनाने का काम शुरू कर दिया और तीन महीने बाद सिमकी भी छूटकर आ गई, अब सिमकी गांव के ही सरकारी स्कूल में मिड डे मील का खाना बनाने का काम करने लगी, स्कूल में बच्चों को पढ़ता हुआ देखकर उसके मन में आया कि क्यों ना मैं अपनी पार्वती को भी यहीं ले आया करूं तो वो कुछ पढ़ना लिखना सीख जाएंगी और उसने स्कूल की मास्टरनी से पार्वती को स्कूल लाने के लिए पूछा तो उन्होंने खुशी खुशी हां कर दी।।

  अब पार्वती मन लगाकर स्कूल में सिखाई जाने वाली चीजें सीखने लगी, पार्वती की उम्र ज्यादा थी तो मास्टरनी बोली, तुम बिना एडमिशन के ही सबके साथ बैठकर पढ़ लिया करो।

   पार्वती को पढ़ना लिखना आने लगा तो उसका आत्मविश्वास बढ़ा और वो गांव की और भी औरतों को रात में पढ़ाने लगी जिससे गांव के पुरुषों को एतराज होने लगा, क्योंकि अब उनकी बीवियां पढ़ लिख गईं थीं तो पैसे का हिसाब किताब मांगने लगी, अब जितना भी हो सकता सिमकी और पार्वती दूसरी औरतों की मदद करती, कभी किसी पर घरेलू हिंसा होती तो फ़ौरन रिपोर्ट लिखाने चौकी पहुंच जाती और गवाही भी दे देती, इस तरह गांव की औरतें तो उन्हें चाहने लगी लेकिन पुरुष नापसंद करने लगे।।

   ऐसे दिन बीत रहें थे अब पार्वती बाईस की हो चली थीं, गांव में एक नया डाकिया आया बीस पच्चीस साल का, उसने पार्वती को देखा तो पसंद करने लगा, उसने पार्वती से शादी की इच्छा जताई लेकिन पार्वती ने अपनी पिछली जिन्दगी के बारे में सब सच सच बता दिया, डाकिए को कोई एतराज़ ना हुआ, शादी की तैयारियां शुरू हो गई।

   शादी के एक दिन पहले की बात है, पार्वती को मेहँदी लगाई जा रही थी, हंसी ठिठोली चल रही थी, सिमकी बेटी को देखकर बहुत खुश थी, बार बार मारे खुशी के उसकी अंखियों के कोर गीले हो रहे थे, तभी एक लड़का दौड़ता हुआ आया और बोला, पार्वती दीदी! जल्दी चलो, मेरे बाबा मेरी मां को मारे डाल रहे हैं, मां के सिर से खून बह रहा है और वो रूक नहीं रहें।।

   पार्वती उठी लेकिन सिमकी बोली बेटा, मेहँदी के अधूरे हाथों नहीं उठते, अपशकुन होता है लेकिन पार्वती ना मानी और चल पड़ी उस औरत को बचाने।।

   उसने हरिया को रोकना चाहा लेकिन वो नहीं माना,अब मजबूर होकर पार्वती को हरिया का सामना करना पड़ा और उसने कहा कि अब तूने भाभी को हाथ लगाया तो मुझसे बुरा कोई ना होगा और उसने हरिया के साथ से लाठी छीन कर दूर फेंक दी और हरिया को जोर का धक्का दे दिया, हरिया सम्भल नहीं पाया और गिर पड़ा, पार्वती अब विमला भाभी को सम्भालने में लग गई क्योंकि वो बेहोश पड़ी थी और उसके सिर से खून बह रहा था।।

    अब हरिया अपने गुस्से पर काबू ना रख सका और उसने लाठी उठाई और पार्वती के पीछे जाकर उसके सिर पर जोर का वार किया, तब तक गांव के और भी लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने हरिया को रोक लिया।।

   पार्वती को जल्द ही अस्पताल ले जाया गया लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका, सिमकी फूट फूटकर रो पड़ी और उसका दिल रो रो कर बस यही कह रहा था कि ना आना इस देश मेरी लाडो..!!



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