निशा शर्मा

Romance

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निशा शर्मा

Romance

न उम्र की सीमा हो...

न उम्र की सीमा हो...

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न उम्र की सीमा हो,न जन्म का हो बंधन...

"वाह गर्लफ्रैंड आज तो फुल ऑन मूड में हो।" एफएम पर गीत सुनती हुई सुमन जी को छेड़ते हुए अंदाज़ में आरव ने कहा!

"क्या अवी तू हर समय क्यों अपनी दादी को परेशान करता रहता है और ये हमेशा तू गर्लफ्रैंड गर्लफ्रैंड क्या कहता रहता है?"किचन में बर्तन सजाती हुई मिसेज़ शर्मा यानि कि सुमन जी की बहू और आरव की मम्मी ने कहा!"क्यों दादी क्या मैं सचमुच आपको परेशान करता हूँ?"

"नहीं मेरे बच्चे,बिल्कुल भी नहीं!"

"लव यू माय स्वीट गर्लफ्रैंड!!"

"लव यू माय वैरी स्वीट ब्यॉयफ्रैंड!!"

"अरे!दादी मैं आपको एक बात बताना तो भूल ही गया।"

"बता न क्या बात है?"

"दादी वो मेरे क्लास का पूरन है न?"

"हाँ,कौन वो जो एग्जाम में तेरे नोट्स ले गया था और टाइम पर लौटाने की बजाय उसनें न तो तेरा फोन उठाया और न हीं खुद नोट्स ही वापिस लौटाने आया।"

"हाँ वो ही पूरन दादी जिसे आपनें इस बात पर उसके घर जाकर इतना डाँटा था कि बेचारा आज तक वो याद करके डरता है,कहकर आरव अपनी दादी के साथ ठहाके लगाकर हँसने लगा।हँसते हँसते ही आरव बताने लगा कि दादी उसी पूरन की दादी नें परसों शादी कर ली।आपको पता है कि उसकी दादी नें न लव मैरिज की है और दादी वो पूरन के नये दादा जी से फेसबुक पर मिली थीं।"

जहाँ दादी आरव की बात बड़े ही ध्यान से सुन रही थीं वहीं उनकी बहू अपने बेटे आरव को चुप होने का इशारा कर रही थीं।"आरव क्यों तू बार बार अपनी दादी से एक ही बात दोहराता रहता है?कभी दादी फेसबुक ज्वाइन कर लो तो कभी मैं आपका बायोडाटा मैट्रीमोनियल साइट पर डाल दूँ और अब तेरे दोस्तों के ये ऊलजुलूल किस्से!!हद्द है बेटा!!"

"मम्मा!इसमें ऊलजुलूल क्या है?क्या कभी आपनें दादी जी के अकेलेपन या उनकी खामोशी को पढ़ने की कोशिश की है?मम्मा आप ही बताएं कि दादा जी के सामने क्या दादी ऐंसी ही थीं?क्या वो ऐंसे ही गुमसुम रहा करती थीं?और मम्मा मुझे तो नहीं लगता कि मेरे अलावा वो इस घर में किसी और से हँसती या कभी कुछ शेयर भी करती हैं।अब मम्मा मेरा भी कॉलेज दो महीने बाद खत्म हो जाएगा।पता नहीं मुझे कैम्पस कहाँ मिले?इसलिए मम्मा मैं यहाँ से जाने से पहले अपनी दादी को सैटल कर देना चाहता हूँ!"

आरव लगातार बोलता ही जा रहा था और मिसेज़ शर्मा अपने बेटे की समझदारी को बड़े ही सम्मान के साथ समझने की कोशिश कर रही थीं।

"बेटा तू कब इतना बड़ा हो गया,मुझे तो पता ही नहीं चला!!बेटा तुझे जैसा ठीक लगे वैसा कर",एक लम्बी साँस लेते हुए मिसेज़ शर्मा नें कहा।

"दादी हम बहुत दिनों से कहीं घूमने नहीं गए।चलो न गर्लफ्रैंड कहीं घूमने का प्रोग्राम बनाते हैं!"

"अरे बेटा मेरा शरीर अब साथ नहीं देता,बड़ी जल्दी ही थकान हो जाती है।तू अपने मम्मा और पापा के साथ प्लान बना ले।"

"नो,नो,नो!विदाउट गर्लफ्रैंड,नो आउटिंग!"

"अरे बेटा!अच्छा बता कहाँ ले जायेगा मुझे?"

"जहाँ भी आप चाहो और वैसे भी अभी एक हफ्ते की छुट्टियाँ हैं मेरी फिर इसके बाद वैसे भी मैं बहुत बिज़ी होने वाला हूँ!"

"अच्छा,मतलब कि अपनी गर्लफ्रैंड के लिए भी बिज़ी?"सुमन जी ने उदास होते हुए कहा।

"नो वे,अपनी गर्लफ्रैंड के लिए तो हमेशा हाज़िर!"आरव इतना कहकर अपनी दादी से लिपट गया और अब दोनों की ही आँखें नम थीं।

"बोलो न दादी,कहाँ चलोगी?"

"बनारस!आज का वाराणसी!"

अगले दिन सुबह सुबह पूरी शर्मा फ़ैमिली वाराणसी पहुँच चुकी थी।वाराणसी के सभी घाटों पर घूमने और गंगा आरती में शामिल होने के बाद भी न जाने क्यों सुमन जी की आँखों में एक अधूरापन स्पष्ट दिख रहा था जिसे बाखूबी महसूस कर रहा था आरव।

"दादी अब कल हम आर्ट गैलरी चलेंगे।"

"नहीं बेटा अब बस घर लौटेंगे कल!"

"दादी आप वाराणसी में किसी को जानती हैं क्या?मेरा मतलब है कि क्या यहाँ पर आपका कोई जानकार रहता है?"

"हाँ,नहीं!नहीं तो!"सुमन जी इसके सवाल के जवाब पर कुछ असहज हो गयीं।

"अरे गर्लफ्रैंड!हाँ या न?"ठीक से सोचकर बताओ।

"हाँ मेरा मतलब है कि एक जानकार रहते तो थे यहाँ मेरे मगर पता नहीं कि अब वो यहाँ रहते हैं या नहीं!"

"अरे आप बताओ तो सही,मैं इसका भी पता लगा लूँगा!!"

"मेरे एक",कहते कहते कुछ संकोच के साथ रुक गयीं सुमन जी।

"अरे! आप उनका नाम तो बताओ मेरी प्यारी दादी जी!"

"संदीप!!संदीप मिश्रा,वो बैंक में काम करते थे।रिज़र्व बैंक में!वैसे तो उनकी पोस्टिंग लखनऊ में थी मगर वो रहने वाले वाराणसी के ही थे।"

सुमन जी कुछ और बता पातीं उससे पहले ही आरव नें संदीप मिश्रा नाम के शख्स को फेसबुक पर सर्च भी कर लिया। दादी देखना ज़रा यही हैं क्या वो?आरव ने लैपटॉप को सुमन जी की तरफ़ मोड़ते हुए कहा।

सुमन जी की नज़र न चाहते हुए भी उस शख्स की तस्वीर पर कुछ इस कदर टिक गई मानों कह रही हो कि हाँ इसी एक झलक का इंतज़ार तो था मुझे बरसों से और हाँ यही तो वो कशिश है जो मुझे दिल्ली से वाराणसी तक खींच लायी।

"दादी बोलो न!!यही हैं क्या वो?आपके जानकार!!"

"हम्म!हाँ शायद यही हैं।"जहाँ सबके सामने सुमन जी शायद यही हैं कह रही थीं और अपनी बेचैनी को छुपाने का भरसक प्रयास कर रही थीं वहीं उनका दिल उनसे बार बार ये कह रहा था कि हाँ यही तो हैं वो!

आरव को मैसेंजर पर उस शख्स यानि कि संदीप जी से कॉन्ट्रैक्ट करते जरा भी देर न लगी और अगले दो घंटे के भीतर ही वो लोग अब संदीप जी के घर में थे।

सुमन आपनें यदि पहले बताया होता तो मैं आप लोगों को खुद लेने आ जाता!

मुझे खुद भी कहाँ पता था कि आरव आपसे यूं बात कर लेगा और...इसके आगे सुमन जी कुछ कह पातीं उससे पहले ही संदीप जी बोल पड़े!

चलो किसी ने तो बात की!!

इसपर अचानक से मिलीं संदीप जी और सुमन जी की नज़र।उफ्फ!!धक्क से हुआ सुमन जी का दिल जोरों से धड़कने लगा और सुमन जी आँखों ही आँखों में मानों संदीप जी से कह रही हो हे भगवान!इस उम्र में भी तुम्हें देखकर ये दिल ऐंसे धड़कता है और संदीप जी का वो ही बरसों पुराना जवाब,देख लीजिए!!

दादा जी!मैं आपको दादा जी कह सकता हूँ न?आरव नें संदीप जी से पूछा।

हाँ बेटे बिल्कुल कह सकते हो।

तो दादा जी एक बात बताइए कि आपनें हमारी दादी जी को कहाँ छुपाकर रखा है क्योंकि जबसे हम लोग यहाँ आये हैं बस आपके ये चंदन साहब और उनकी धर्मपत्नी जी ही सारा काम कर रही हैं।

हाँ बेटा मैंने इस चंदन को अपने बेटे की तरह ही पाला है।दरअसल इसके पिताजी हमारे घर में काफी सालों से काम कर रहे थे और उनके देहाँत के बाद मैंने इन दोंनो बच्चों को यहीं रख लिया।

और बेटा दादी जी को छुपाने की बात तो तब आयेगी न जब दादी जी होंगी!

मतलब?क्या दादी जी...

नहीं ऐंसा कुछ नहीं है बेटा,दरअसल मैंने शादी ही नहीं की!

ओह्ह!!ऐंसा क्यों दादा जी?

बेटा दरअसल मैं जिससे शादी करना चाहता था,उसनें किसी और से शादी कर ली और उसके बाद उस जैसी कोई मिली ही नहीं।

दादा जी कहीं वो कातिल हसीना हमारी दादी जी तो नहीं??

आरव के ऐंसा कहते ही सुमन जी इतनी बुरी तरह से झेंप गयीं,मानो उनकी चोरी पकड़ी गयी हो।इधर संदीप जी भी इस तरह से आरव द्वारा अचानक पूछे गए इस प्रश्न से कुछ असहज हो गए।

आरव बहुत ज्यादा बोलने लगे हो आजकल तुम।आरव के पापा नें आरव को डाँटते हुए अंदाज़ में कहा।

बाबूजी खाना डाइनिंग टेबल पर लगा दिया है,चंदन के कहने पर सभी खाना खाने के लिए उठ गए।

अच्छा अंकल जी अब आज्ञा दें!हमारी ट्रेन का टाइम हो रहा है।आरव के पापा ने संदीप जी से कहा।

अच्छा बेटा फिर आना!आप लोग आये बहुत अच्छा लगा!बरसों बाद अपनों से मिलकर सुकून मिला,अपने चेहरे पर एक सुकूनभरी मुस्कुराहट बिखेरते हुए संदीप जी नें कहा।

अरे दादा जी अब तो आप आयेंगे हमारे घर!मैं आपको यहाँ इनविटेशन देने ही तो आया था।अरे!दादा जी अगले महीने हमारी प्यारी सी दादी जी का जन्मदिन है और आपको पक्का आना है।

संदीप जी की नज़रों में ये बहुत अच्छे से नज़र आ रहा था कि उन्हें पता है कि अगले महीने सुमन जी का जन्मदिन है मगर फिर भी उन्होंने अंजान बनते हुए कहा,अच्छा!!मैं आने की कोशिश करूँगा!

नहीं दादा जी!कोशिश नहीं,प्रॉमिस!!

ओके बेटा जी प्रॉमिस और संदीप जी ने हँसकर आरव को अपने गले से लगा लिया।

वाराणसी से आये शर्मा फ़ैमिली को आज पूरे आठ दिन हो गए थे।आरव सोफे पर लेटकर अपना मोबाईल देख रहा था तभी उसके पीछे से गुजरती हुई सुमन जी की नज़र उसके मोबाईल पर पड़ी और वो स्तब्ध रह गयीं ये देखकर कि आरव संदीप जी से वॉट्सऐप चैट कर रहा था और उसके चैट मैसेजेस बड़े ही लम्बे लम्बे थे।

आरव!

बोलो माय स्वीट गर्लफ्रैंड!

आरव तू हर समय न मजाक मत किया कर!एक तो तू हर काम अपने हिसाब से करता है और तुझे कभी किसी को कुछ बताना भी नहीं होता है,हैं न?

अरे!आप इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो मुझपर?क्या मम्मा का असर आ गया आपपर?

आरव!!!

ओके!सॉरी दादी,बट हुआ क्या?

तू संदीप जी से कब से बात कर रहा है?

ओफ्फो!!तो ये बात है!अरे तो आप भी कर लो न बात उनसे।अच्छा तो आप इसलिए नाराज हो गए कि मैंने अकेले अकेले बात कर ली और आपसे बात नहीं करवाई,हैं न?

फिर से मजाक!इस बार दादी का मिजाज़ सचमुच कुछ गर्म था।

अच्छा एक मिनट रूको आप,इससे पहले की सुमन जी कुछ कह पातीं आरव नें संदीप जी को वीडियो कॉल लगा दी।

हैलो!

दादा जी,हाय!कैसे हैं आप?एक मिनट जरा आप दादी जी से बात कीजिए,कहते हुए आरव नें अपना मोबाईल सुमन जी के हाथों में पकड़ा दिया।

हैलो!कैसी हैं आप?

मैं अच्छी हूँ और आप,सुमन जी की आवाज़ में एक अजीब सी कंपकंपाहट थी।कुछ औपचारिक बातों के बाद कॉल डिसकनेक्ट हो गयी।

दादी!दादी!!

हम्म!!आरव बेटा!

कुछ मत बोलो दादी प्लीज़ कुछ मत बोलो।दादी आप जब इस घर का, मम्मा पापा का, मेरा,हम सबका ख्याल करती हो तो क्या मैं आपके लिए कुछ भी करने का हक नहीं रखता?मुझे संदीप दादा जी नें सबकुछ बता दिया है कि कैसे आप लोगों की जिंदगी अचानक ही बदल गयी।कि कैसे आप दोनों को जिंदगी ने मिलाया और कैसे अलग भी कर दिया।आप,दादा जी और संदीप दादा जी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे।दादा जी और आप एक ही क्लास में थे जबकि संदीप दादा जी आप लोगों से एक क्लास सीनियर थे।संदीप दादा जी वाराणसी से कानपुर पढ़ने के लिए आये थे।संदीप दादा जी,हमारे दादा जी के पिताजी के दोस्त के बेटे थे और फिर किस तरह आप तीनों की दोस्ती हुई,मुझे संदीप दादा जी नें सबकुछ बता दिया है।फिर उसके बाद दादा जी का आपसे प्यार का इज़हार और नाना जी के पास आपके लिए अपना रिश्ता भेजना।इसके बाद आपको संदीप दादा जी नें किस तरह इस रिश्ते के लिए मनाया,मुझे सब पता है दादी।संदीप दादा जी पर हमारे दादा जी के पिताजी के एहसान और उसपर दादा जी और संदीप दादा जी की दोस्ती,सब जानता हूँ मैं!!

एक बात और है,मेरे बच्चे जो तू नहीं जानता।तुझे पता है तेरे दादा जी का दिल कितना बड़ा था?वो मुझे बहुत प्यार करते थे और मुझसे भी ज्यादा मान तो वो संदीप जी का करते थे।मैं भी उनकी बहुत इज्ज़त करती थी मगर सिर्फ किसी अमीर के एहसानों की खातिर किसी गरीब की मोहब्बत को सूली पर चढ़ाना मुझे गंवारा नहीं था लेकिन बेटा किस्मत के खेल के आगे मुझे भी अपने घुटने टेकने पड़ गए।

मुझे आज भी बहुत अच्छे से याद है वो दिन जब संदीप जी नें मुझे तुम्हारे दादा जी यानि कि संजय की रिपोर्ट दिखाई थी और मैं रिपोर्ट देखते ही गश खाकर गिर पड़ी थी,बेटा वो आखिरी बार गिरी थी मैं संदीप जी की बाहों में,कहते कहते सुमन जी की आँखों से आँसू टप टप कर बहने लगे!तुझे पता है कि उस रिपोर्ट में क्या लिखा था?

"नहीं दादी!मुझे नहीं पता",ये कहते हुए रूआंसी हो गयी आरव की भी आवाज़!!

बेटा उसमें लिखा था कि संजय के दिल में छेद है!!

शादी के तीन महीने बाद ही हम लोगों को पता चल चुका था कि वो रिपोर्ट संजय की नहीं थी बल्कि हॉस्पिटल स्टाफ की गलती का नतीजा थी मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी,बहुत देर!!

संदीप जी मेरी दुनिया से बहुत दूर जा चुके थे और मैं उनसे अलग अपनी एक नयी दुनिया बसा चुकी थी,सिर्फ मेरी और संजय की दुनिया जिसमें किसी भी तीसरे शख्स के लिए अब कोई जगह नहीं बची थी,सुमन जी नें खुद को सम्भालते हुए और अपने गालों पर ढुलकते हुए आँसुओं को पोंछते हुए कहा।

आरव!आरव कहाँ है बेटा?

आया मम्मा!

"अरे बेटा तू केक लाया या नहीं?देख न सात बजनें वाले हैं और मम्मी जी का केक सात बजे कटना है न!!"

"ओह्हो!!मम्मा,फिकर नॉट।ये अरेंजमेंट आरव दि ग्रेट का है तो जस्ट चिल!!"

"हैप्पी बर्थडे टू यू ,हैप्पी बर्थडे टू डियर दादी,हैप्पी बर्थडे टू यू!!"

"वाह बेटा जी,आपका अरेंजमेंट तो वाकई बहुत शानदार था।"

थैंक्यू दादा जी!अच्छा अब मैं चलता हूँ,कल सुबह मुझे जल्दी उठना है।

अरे आरव बेटा कल तो आपनें कॉलेज से छुट्टी ले रखी है न,फिर जल्दी क्यों?सुमन जी नें पूछा।

अरे दादी आपका बर्थडे तो सैलिब्रेट हो गया मगर मैंने आपको अभी तक गिफ्ट कहाँ दिया है तो आपका गिफ़्ट बाकी है न अभी!बस उसी के लिए उठना है मुझे सुबह जल्दी,ओके गुडनाईट दादा जी,गुडनाईट दादी जी!

गुडनाईट बेटा!!

सुमन जी को आरव की बात से कुछ शक तो ज़रूर हो रहा था मगर समझने की काफ़ी कोशिश करने पर भी वो कुछ भी समझ नहीं पा रही थीं।

अब आप भी सो जाइए संदीप जी।कल सुबह आपकी ट्रेन भी है।बेवजह ही इस लड़के नें आपको परेशान कर दिया।

अरे आप कैसी बात कर रही हैं और वैसे भी हर साल अकेले केक काटने से अच्छा तो आज सबके साथ ही,संदीप जी आगे कुछ कह पाते उससे पहले ही सुमन जी नें उन्हें बीच में ही टोंक दिया!

"हर साल,मतलब!!"

"मतलब कुछ नहीं!"

"बताइए न प्लीज़!"

सुमन क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे जन्मदिन की तारीख कभी भूल से भी भूल सकता हूँ??मैं हर साल इस दिन तुम्हारे नाम का केक काटता था,मन्दिर जाता था और..कहते कहते संदीप जी की पलकें भीग गयीं।

आपको पता है संदीप जी,संजय अपनें आखिरी दिनों में मुझसे हमेशा एक ही बात कहा करते थे कि मेरे बाद तुम संदीप के पास चली जाना।

न जानें उन्हें क्या एहसास हो गया था या इस दुनिया में उनके बाद उन्हें मेरे लिए सिर्फ़ आप पर ही भरोसा था।मैं उनकी इस बात पर कभी समझ ही नहीं पायी कि क्या जवाब दूँ?

रात बहुत हो चुकी है,अब आपको आराम करना चाहिए फिर कल आपको सफ़र भी करना है,कहते हुए सुमन जी अपने कमरे में चली गयीं।

अगले दिन सुबह पूरी शर्मा फ़ैमिली संदीप जी को स्टेशन छोड़ने के लिए चल पड़ी।

"अरे!बेटा आरव ये रास्ता तो स्टेशन की तरफ़ नहीं जाता।बेटा शायद तुमनें गलत टर्न ले लिया",आरव के पापा नें कहा।

"नहीं पापा,यही सही टर्न है।बिल्कुल सही!!"

कुछ ही देर में गाड़ी कोर्ट के बाहर थी। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।

"आइए सुमन जी",संदीप जी नें अपना हाथ सुमन जी की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा। सुमन जी नें एक नज़र अपनी बहू और आरव के ऊपर डाली और जवाब उन्हें एक मुस्कुराहटभरी रजामंदी में मिला।सुमन जी कुछ समझ भी रही थीं तो कुछ नहीं भी या शायद आज वो कुछ समझना भी नहीं चाहती थीं।बस आँख मूंदकर भरोसा करना चाहती थीं अपनों पर बहना चाहती थीं बहते हुए वक्त के बहाव में,बहुत थक चुकी थीं वो अब जिंदगी के इस ठहराव से!!

"आइए मम्मी,अब आ भी जाओ मेरी एक्स गर्लफ्रेंड",सुमन जी की बहू और आरव नें एक साथ कहा!

सुमन जी नें मुस्कुराते हुए और शर्माते हुए बड़ी ही अदा से अपना हाथ संदीप जी के हाथ में दे दिया!!

कोर्ट की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आरव गुनगुनाने लगा...

"न उम्र की सीमा हो,न जन्म का हो बंधन....."



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