निशा शर्मा

Abstract

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निशा शर्मा

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एक लड़की भीगी भागी सी...

एक लड़की भीगी भागी सी...

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"हैलो! मम्मा, सॉरी मैं आज दोपहर में आपका फोन नहीं उठा पाया। दरअसल ऑफिस में आज काम कुछ ज्यादा रहा।"

"रहने दे,रहने दे, वैसे भी तू कौन सा मेरा फोन कभी एक बार में उठाता है भला!"

"अरे नहीं मम्मा वो बात नहीं है, खैर छोड़ो और बताओ आप कैसे हो?"

"बस ठीक हूँ। मेरी छोड़ तू अपनी बता, तू कैसा है ?"

"बस बढ़िया और पापा कैसे हैं ?"

"वो भी ठीक हैं और बता तू घर कब आ रहा है?"

"बस मम्मा अगले हफ्ते,इतवार की ट्रेन है मेरी केरला एक्सप्रेस और इस बार मैं अपने बॉस से बात करके दिल्ली की ब्रांच में ही ट्रांसफर भी ले लूंगा क्योंकि न तो मुझे यहाँ कोच्चि का खाना समझ में आता है और न हीं यहाँ की भाषा। अच्छा मम्मा मेरी मैट्रो आ गयी है, मैं आपसे घर पहुंच कर बात करता हूँ, बाय मम्मा!"

"थैक्स टू गॉड, बस एक ही बात अच्छी है कोच्चि में कि यहाँ की मैट्रो में दिल्ली की तरह भीड़भाड़ नहीं होती", बस यही सुकून है यहाँ, इसी सोच में डूबे आरव की नजर अपने ठीक सामने की सीट पर बैठी हुई लड़की पर गयी जो ऊपर से नीचे तक तरबतर भीगी हुई थी, यहाँ तक कि उसके कपड़ों में से अभी भी पानी टपक रहा था।

धीरे धीरे पूरी ट्रेन खाली हो गयी और अब आखिरी स्टेशन भी आने वाला था जो कि आरव का स्टॉपेज था। आरव के साथ वो लड़की भी आखिरी स्टेशन पर ही उतरी।

आरव ने स्टेशन से बाहर निकल कर कैब बुक की और कैब का इंतज़ार करने लगा। तभी उसकी नजर उसी भीगी हुई लड़की पर पड़ी जो कि अभी अभी उसके साथ ही मैट्रो से उतरी थी। वो आरव के बिल्कुल पीछे ही खड़ी थी और उसकी आंखों से अविरल अश्रु की धारा बह रही थी।

"माफ कीजियेगा मगर आप रो क्यों रही हैं।"

उस लड़की ने मलयालम में कुछ कहा जो कि आरव को बिल्कुल भी समझ में नहीं आया।

"सॉरी मुझे मलयालम नहीं आती। ओनली हिन्दी एंड इंग्लिश।"

"जी मेरा पर्स कहीं गुम हो गया है और मेरे पास किराए भर के भी पैसे नहीं हैं।" इतना कहकर वो लड़की और जोर जोर से आवाज करके रोने लगी।

"अरे!बस इतनी सी बात, कोई नहीं मैं आपको घर छोड़ दूंगा।वैसे आप रहती कहाँ हैं ?"

"जी वो जो तेवरा ब्रिज है न बस उसके किनारे पर ही बने गवर्नमेंट क्वार्टर्स में रहती हूँ मैं।"

"ओह्ह! वहाँ, बस वहीं से दो किलोमीटर की दूरी पर ही तो मैं भी रहता हूँ। वो तो मेरे रास्ते में ही पड़ेगा, चलिए आप मेरे साथ चलिए । लो जी कैब भी आ गयी ।"

कैब में आरव का ध्यान उस लड़की के फ़टे हुए कपड़ों पर गया तो आरव का मन एक आशंका से भर गया कि शायद उस लड़की के साथ कुछ अनहोनी हुई है और आरव सोचने लगा कि पूछूँ या नहीं। आरव बस इसी उधेड़बुन में था कि तभी वो लड़की बोल पड़ी।

"मुझे पता है कि आप क्या सोच रहे हैं, आप मेरे फटे हुए कपड़े और मेरी इस भीगी भागी सी हालत के बारे में ही सोच रहे हैं न !"

"जी वो मैं पूछना चाहता था कि,आरव को बीच में ही टोंक कर उस लड़की ने कहा कि "दरअसल मैंनें आपसे झूंठ बोला।"

"झूंठ!"

"हाँ झूंठ, मेरा पर्स कहीं गुम नहीं हुआ है बल्कि मेरे पति ने मुझसे छीन लिया। मैं यहाँ एक मॉल में काम करती हूँ। आज मेरी सैलरी मिलने का दिन था,वैसे तो मेरी सैलरी मेरे अकाउंट में ही आती है मगर मैंने आज अपनी सैलरी और मेरी बाकी की सेविंग एटीएम से निकाली थी क्योंकि मेरी माँ का कल मुझे ऑपरेशन करवाना था। पता नहीं ये बात कैसे मेरे शराबी पति को पता चल गयी और वो एटीएम के बाहर पहुंच गया। वहाँ उसने मेरे सारे पैसे मुझसे छीन लिए और मुझे बहुत मारा भी।" इतना कहकर वो लड़की फिर से सुबकने लगी ।

"अरे अरे, देखिये आप प्लीज़ रोइये मत ।"

" बस भाई यहीं साइड में रोक ले। लीजिये आपका स्टॉप भी आ गया।"

बारिश अभी भी हो रही थी और वो लड़की उस बारिश में भीगती भागती सी चली गयी।रातभर आरव की आंखों के सामने न जाने क्यों वो भीगी भागी सी लड़की नाचती रही। हालांकि आरव को अब पता था कि वो शादीशुदा थी मगर फिर भी वो उस लड़की के लिए अपने दिल के किसी कोने में कुछ अलग सा अनुभव कर रहा था। तभी आरव ने अपने जियो सावन ऐप पर एक गाना सर्च करके लगाया। एक लड़की भीगी भागी सी ,सोती रातों में जागी सी और गाना सुनते सुनते पता नहीं कब आरव की आंख लग गयी।

अगले दिन न जाने क्यों आरव को ऑफिस से निकलने की जल्दी हो रही थी और मैट्रो में चढ़ने के बाद तो आरव की आंखें बस उसी लड़की को तलाश रहीं थीं।

"हैलो !"

"ओ, हाय ! आज आप फिर से भीग गयीं।"

"हाँ क्या करूँ?इस कोच्चि की बारिश का तो कोई भरोसा ही नहीं है और वो मुस्कुरा दी ।"

सचमुच क्या मुस्कुराहट थी उसकी जैसे कि बंद कमल अनायास ही खिल उठा हो और आरव तो उसके मुस्कुराते हुए चेहरे को बस एकटक देखता ही रह गया।

एक मिनिट! ये लीजिए आपके वो कैब के पैसे,कहते हुए उस लड़की ने आरव के हाथ में सौ रुपए का नोट थमा दिया। हाथ में नोट देते वक्त उस लड़की के भीगे और ठंडे हाथ की छुअन आरव को बहुत भीतर तक एक तपिश का एहसास करा गयी।आरव ने फिर जानबूझकर उस लड़की के हाथ में वो नोट लौटाना चाहा ताकि वो उसे एक बार फिर से छू सके मगर वो पीछे हट गयी और न चाहते हुए भी आरव को वो नोट लेना पड़ा। मैट्रो स्टेशन से निकलते वक्त आरव ने उस लड़की से उसकी माँ की तबियत के बारे में पूछा और वो फिर से रोने लगी।

"आय एम रियली सॉरी, मेरा इरादा आपको रूलाने या परेशान करने का बिल्कुल भी नहीं था बल्कि मैं तो आपकी मदद करना चाहता था।"

"कोई बात नहीं, इसमें आपकी कोई गल्ती नहीं है, मैं हूँ ही ऐंसी पागल, माँ भी कहती है कि मैं बात बात पर रोने लगती हूँ।"

"अच्छा एक बात समझ नहीं आयी कि आपकी हिन्दी इतनी अच्छी कैसे हैं ? क्या आप केरल की नहीं हैं।"

"नहीं मैं यहाँ की नहीं हूँ, मेरा पति यहाँ का है।""

"ओके! तभी तो मैंने सोचा कि आप इतनी अच्छी हिन्दी कैसे बोल लेती हैं।"

"चलिए कैब आ गयी।"

"नहीं, नहीं मैं चली जाऊंगी। रोज रोज अच्छा नहीं लगता मुझे आपको परेशान करना।"

"अरे इसमें परेशानी की क्या बात है और फिर कल के पैसे तो दे दिये न आपनें तो बस आज के भी दे देना।"

कल की अपेक्षा आज वो लड़की कैब में आरव से कुछ ज्यादा ही सटकर बैठी थी मगर आरव को ये अजीब नहीं बल्कि बहुत अच्छा लगा। उस लड़की के भीगे हुए कपड़ों के साथ ही साथ उस लड़की के जिस्म की महक भी अब आरव को भिगो रही थी।

आपनें बताया नहीं, वो आपकी माता जी के ऑपरेशन का क्या हुआ? प्लीज़ आराम से बताओ। रोना मत प्लीज़!

पैसों का इंतजाम नहीं हो पाया और माँ की तबियत अब बहुत बिगड़ती जा रही है, आंखों से आंसुओं को पोंछते हुए वो बोली।

आप बुरा न मानें तो मैं एक बात कहूँ!

जी कहिये न।

मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ। आप मुझसे पैसे लेकर अपनी माता जी का इलाज करवा लो और अगले महीने सैलरी आने पर लौटा देना।

नहीं मैं आपसे पैसे नहीं ले सकती,इतना कहकर वो कैब से उतर गयी।

अगले दिन फिर वही सिलसिला और आज आरव नें उससे पूछ ही लिया कि आप हमेशा भीगी हुई ही क्यों मिलती हैं मुझे ?बुरा मत मानियेगा मगर क्या आपके पास छतरी नहीं है ?

जी वो मेरी छतरी उस दिन जब मेरे पति ने मुझसे पैसे छीने थे न उसी समय नाले में गिर गयी।

ओह्ह! देखिये प्लीज़ आप मेरी छतरी रख लीजिये, कोच्चि की बारिश का तो कोई भरोसा नहीं है और फिर ऐंसे रोज रोज भीगना भी ठीक नहीं।

अरे नहीं , मेरी वजह से आप और कितनी परेशानी उठायेंगे!

नहीं इसमें परेशानी की कोई बात नहीं, प्लीज़ आप ये रख लीजिये और वैसे भी मेरे पास दो छतरियाँ हैं।

थैंक्यू कहते हुए उसनें आरव के हाथों से वो छतरी ले ली।

अब माता जी कैसी हैं?

माँ की तबियत बहुत खराब है, डॉक्टर ने कल सुबह ही ऑपरेशन के लिए बोला है। कैसे कहूँ? मुझे बहुत अजीब लग रहा है मगर मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं।

अरे कहिये न क्या बात है ?

वो कल आप मेरी मदद करने की बात कर रहे थे न !

हाँ जी बिल्कुल! बताइये डॉक्टर ने कितना खर्चा बताया है, आपकी माता जी के ऑपरेशन के लिए?

जी पचास हजार!

ठीक है मैं अभी रास्ते से किसी एटीएम में से आपको रूपये निकाल कर दे देता हूँ।

जी आप मुझे ठीक से जानते भी नहीं और इतनी बड़ी मदद!

ऐंसा करिये कि आप मेरा फोन नंबर ले लीजिए और मेरा घर तो पता ही है आपको, हैं न !

जी, मुझे आपपर पूरा विश्वास है। अरे आप तो फिर से रोने लगीं।

नहीं वो,अच्छे लोगों की जरा कम आदत है मुझे बस और कुछ नहीं।

हैलो! हाँ मम्मा कैसे हो? इतवार की शाम की ट्रेन है मेरी, हाँ। अपना ख्याल रखो बस दो चार दिन में पहुंचता हूँ आपके पास, ओके बाय!

आज पूरी ट्रेन में कहीं भी वो लड़की नजर नहीं आयी। आरव की नजरों ने पूरी ट्रेन की तलाशी कर ली मगर परिणाम शून्य।

हो सकता है कि उसनें आज अपने काम से छुट्टी ले रखी हो और फिर आज उसकी माँ का ऑपरेशन भी तो था न,इसी सोच के साथ आरव कैब में बैठकर अपने घर की ओर निकल पड़ा।

घर आकर आरव ने सोचा कि उसकी माँ के हाल चाल लेने चाहिए मगर रात ज्यादा हो गयी है, ये सोचकर उसनें फोन मिलाना उचित नहीं समझा।

अगले दिन सुबह उसनें फोन मिलाया मगर फोन नॉट रीचेबल बता रहा था। उसके बाद तो आरव ने पूरे दिन कई बार फोन मिलाया मगर हर बार वो ही जवाब, नॉट रीचेबल।

आज पूरे तीन दिन बीत गए लेकिन न तो उस लड़की का फोन ही लगा और न हीं वो खुद ही मिली,बल्कि उसका फोन मिलाने पर अब तो जवाब में ये नंबर उपलब्ध नहीं है सुनाई दे रहा था।आज शाम को आरव को अपने घर के लिए निकलना भी था, तो उसनें सोचा कि आज ऑफिस के बाद मैं खुद उस लड़की के घर जाकर देखता हूँ कि सब ठीक है न और वो अब मिलती क्यों नहीं?

एक्सक्यूज मी,भाई साहब !

जी ।

आप हिन्दी!

जी हाँ मैं हिन्दी जानता हूँ थोड़ा थोड़ा, बोलो क्या बात है?

जी वो मैं एक लड़की को ढ़ूंढ़ रहा हूँ। वो एक मॉल में काम करती है और उसकी माँ बहुत बीमार हैं आजकल। उसकी माँ का कोई ऑपरेशन भी हुआ है और हाँ वो हमेशा भागती सी रहती है, भीगी सी रहती है।

अरे भाई ये क्या बात है ? उसका कुछ नाम, पता बताओ और भीगी भागी क्या होता है? अरे यहाँ कोच्चि की बारिश में तो हर लड़की क्या ,लड़का लड़की, बुड्ढा जवान सभी भीगे भागे हैं और ये कहकर वो शख्स ठहाके मारकर हंसने लगा।आरव को उसकी हंसी पर गुस्सा आ गया और वो उसपर बरस पड़ा।

अरे पागल हो क्या? पता बताने को बोला है, ये खींसे निपोरने को तुझे किसने बोला बे !

बात बढ़ती देख कुछ और लोग भी वहाँ जमा हो गए। लगभग सारे मलयाली ही थे बस कुछ एक ही थे जो हिन्दी बोल या समझ रहे थे।आरव नें वहाँ से निकलना ही उचित समझा और वो चुपचाप वहाँ से निकल गया।

क्या मुझे सचमुच उसका नाम नहीं पता और क्या मैं सचमुच इतना बड़ा बेवकूफ हूँ कि एक लड़की ने मेरा पोपट कर दिया,इसी उधेड़बुन में आरव पता नहीं कब अपनी दिल्ली की ट्रेन में बैठ गया उसे पता ही नहीं चला। उसकी तन्द्रा तो तब टूटी जब एक वृद्ध महिला ने उसके पास आकर पूछा कि बेटा ये केरला एक्सप्रेस ही है न ?

जी, आंटी जी।

आरव चुपचाप बैठा खिड़की से शीशे के पार देखता जा रहा था और ट्रेन अपने निश्चित समय पर चल दी। अचानक आरव की नजर प्लेटफार्म पर खड़ी एक लड़की पर पड़ी। वो लड़की आज भीगी हुई बिल्कुल नहीं थी और उसके हाथ में आरव की छतरी भी थी ।

हाँ वो तो वही मैट्रो वाली लड़की थी। आरव कुछ भी कह या कर पाता उससे पहले ही ट्रेन ने अपनी स्पीड पकड़ ली और आरव बस एकटक उस लड़की को देखता रह गया।

वो लड़की मुस्कुराकर हवा में अपना एक हाथ हिला रही थी और उसके दूसरे हाथ में आरव की छतरी थी,तभी आरव के सामने की सीट पर बैठे हुए अंकल जी का मोबाइल बज उठता है और उसकी रिंगटोन में बजता है, एक लड़की भीगी भागी सी।



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