प्यार हुआ!
प्यार हुआ!
पता नहीं अपनी चीज़ें कहाँ रखकर भूल जाते हैं और फिर मेरी मुसीबत कर देते हैं।
हाँ हाँ, मुसीबत तो मैं ही हूँ इस घर में और तुम तो महारानी हो न इस घर की, महारानी एलिजाबेथ!
हाँ मैं हूँ महारानी बोलो।
हाँ तो महारानी जी इस रक्षाबंधन में अपने शासक भाई से एक चश्मा ही टेस्ट करवा लातीं।
देखो जी! मेरे मायके वालों पर तो जाना मत वरना मुझसे बुरा कोई न होगा। जब देखो तब मेरे मायके वालों की बुराई।
वरना...क्या वरना???
"अरे, कुसुम तुम यहाँ खड़ी-खड़ी मुस्कुरा रही हो और वहाँ पापा जी और मम्मी जी का झगड़ा हो रहा है।" अमर ने अपनी पत्नी कुसुम से कहा।
झगड़ा! कहाँ हो रहा है, झगड़ा? अरे ये तो इन दोनों की रोज की नोंक झोंक है। विश्वास नहीं होता तो दो मिनट ठहरकर देखो।
"ये लो मिल गया आपका चश्मा और अब मुझे कसम है जो मैं कभी आपका चश्मा लगाऊं, देखो आज ही जाती हूँ मैं अपना चश्मा टेस्ट करवाने, समझे।" मीरा जी ने परमानंद जी को उनका चश्मा उनके हाथ में थमाते हुए कहा।
"मम्मी अपना चश्मा अलग से क्यों नहीं लगवा लेतीं? पापा जी का चश्मा वो लेती ही क्यों हैं??"अमर ने कुसुम से कहा।
इसका जवाब सुनोगे न तो फिर से विश्वास नहीं करोगे, कुसुम ने जवाब दिया।
ऐसा क्या है इसमें?
ऐसा ये है इसमें कि मैंने भी मम्मी जी से बिल्कुल यही बात कही थी तो उन्होंने इसका मुझे ये जवाब दिया कि वो जानबूझकर अपना चश्मा अलग नहीं कर रही हैं क्योंकि उन्हें इस मीठी नोंक झोंक और इसके बाद होने वाले प्यार में बहुत आनंद मिलता है। वो देखो फिर से प्यार हुआ! कुसुम ने अपने सास-ससुर की ओर इशारा करते हुए कहा जो कि अब एकदूसरे को मनाने में लगे हुए थे।
"हाँ यार सच में" अमर ने मुस्कुराकर अपने मम्मी पापा को देखते हुए कहा।
"हाँ तो मैं क्या झूठ बोल रही थी पर तुम्हें तो बिना सबूत देखे कभी मेरी बात पर विश्वास ही नहीं होता न। तुम्हें तो अपने लैपटॉप, मोबाइल और छुट्टी वाले दिन खर्राटे मारकर सोने से ही फुर्सत नहीं है तो तुम्हें क्या पता कि इस घर में क्या होता है???"मुँह बिचकाते हुए कुसुम ने कहा।
"अच्छा जी तो मतलब ये है कि अब आप इरादा बना रही हैं झगड़ने का!! तो चलो ये भी सही पर उसके बाद हमारा भी प्यार तो होगा न!"अमर ने शरारत भरे लहज़े में कहते हुए अपनी दायीं आँख दबा दी।
अब दोनों पति-पत्नी एक दूसरे की बांहों में थे और दूसरी तरफ मीरा जी और उनके पति एक दूसरे के साथ खिलखिलाते हुए गप्पे लड़ा रहे थे।