निशा शर्मा

Romance

4  

निशा शर्मा

Romance

वो बारिशें...

वो बारिशें...

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379


मैं जब भी बारिश में निकलती हूँ बहाने से

तेरे एहसासों की छतरी हमेशा साथ लिए

मेरी आँखों से छलक जाते हो तुम लेकिन

फिर छुपाती हूँ तुम्हें मैं बरसात के सहारे से

"वाहह...वाहहहह...क्या बात है ! बहुत खूब...बहुत खूब !",हॉल में चारों ओर इन तारीफों के साथ ही साथ तालियों की गड़गड़ाहट भी गूंज उठी।

तभी स्टेज के मध्य में बैठी हुई सपना जो कि एक प्रशिद्ध और सफल कवियित्रियों में आजकल शुमार की जाती हैं उनकी तरफ़ यकायक ही एक और नौजवान रिपोर्टर नें अपना एक और सवाल उछाल दिया....मैम सबसे पहले तो आपको आपके पिछले पाँच काव्य संग्रहों की अपार सफलता की बधाई तथा इस नये काव्य संकलन...'वो बारिशें' के लिए अनेकानेक शुभकामनाएं और अब मेरा आपसे सीधा सवाल ये है कि मैम जैसा कि सुनने में आ रहा है कि आजकल सबसे बड़ा पब्लिकेशन हाउस जो कि है 'पराग पब्लिकेशन हाउस' है वो आपकी किताबें छापने के लिए खासा उत्सुक है मगर मैम आप अपनी किसी निजी वजह के चलते उसे टाल ही नहीं रही हैं बल्कि उससे खासा बेरुखी भी दिखा रही हैं तो हम सब जानना चाहते हैं कि आखिर इस बात में कितनी सच्चाई है मैम ?

उस रिपोर्टर द्वारा पूछे गये बेरुखी का इल्जाम लगाने वाले इस एक सवाल नें सपना को उसके अतीत में उसके असीम प्रेम के बदले में हासिल बेरुखी के सघन सायों के बीच लेजाकर खड़ा कर दिया था ।

"पराग मैं तुमसे बस इतना ही कहना चाहती हूँ कि मैं तुमसे खुद से भी ज्यादा प्यार करती हूँ और रही बात मेरी वफ़ा की तो पराग मेरे हिसाब से अगर किसी रिश्ते में वफ़ा को साबित करने की नौबत आ जाये तो फिर उस रिश्ते का इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं।",सपना नें अपनी आँखों की नमी को दुपट्टे के कोने से छुपाते हुए कहा।

"अपना ये लेखकों वाला प्रपंच तो तुम अपने पास ही रखो मिस सपना माथुर ! मुझे अब तुम्हारी किसी भी बात पर कोई भरोसा नहीं ! अरे ! आखिर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे होते हुए उस पलाश को अपनी कविता सुनाने की,हम्म और वो भी कमरा बंद करके !", पराग चीख पड़ा ।

मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया कि कमरा बंद नहीं था बल्कि उस दरवाज़े की चिटखनी खराब है जो कि तेज़ हवा से अपने-आप अटक जाती है पर तुम तो कुछ सुनने या समझने को तैयार ही नहीं हो पराग और रही बात उसे कविता सुनाने की तो उसके पिताजी का पब्लिकेशन हाउस है और वो खुद मेरी किताब छापना चाहते हैं बस इसी सिलसिले में उन्होंने पलाश को बस एक बार मेरी कविता सुनने के लिए स्वयं भेजा था।", इस बार आँसुओं की धार के साथ ही साथ सपना के स्वर की ध्वनि भी तीव्र हो चुकी थी ।

"मैम,प्लीज़ बताइए न !", रिपोर्टर की आवाज कानों से पुनः टकराते ही अतीत की परछाइयों से चौंककर निकली हुई सपना अब अपने वर्तमान के प्रकाश में साँस ले रही थी और उसकी साँसों की डोर का दूसरा छोर उसके सामने हॉल के एन्ट्रेंस गेट पर पलाश के रूप में खड़ा था ।

"नो मोर क्वेश्चंस प्लीज़", कहते हुए सपना की पीआर निकिता रिपोर्ट्स को संभालते हुए उन्हें हाथ के इशारे से कॉफी टेबल की तरफ़ का रास्ता दिखाते हुए उनके साथ चल दी ।

सपना अब स्टेज से उतरकर तेज कदमों से चलती हुई पलाश के पास पहुंच चुकी थी जो कि एन्ट्रेंस गेट पर अपनी सफेद रंग की चमचमाती हुई नेवी ऑफिसर की यूनीफॉर्म में उसके ही इंतज़ार में खड़ा था ।

"आप ! आपको तो छुट्टी नहीं मिलने वाली थी न फिर ? अच्छा समझी तो हर बार की तरह इस बार भी आपनें मुझे सरप्राइज़ दिया है।", सपना पलाश से ये कह ही रही थी कि तभी पलाश नें सपना का हाथ अपने हाथ में थाम लिया। वो उसे लेकर जैसे ही हॉल से बाहर निकला,बाहर ज़ोरों की बारिश हो रही थी।

"अरे मैडम शुक्र है कि आपकी किताब का नाम 'वो बारिशें' है वरना गलती से कहीं 'वो अंगारे' होता तो आज तो बस अंगारे ही न बरसने लगते !", पलाश नें सपना की ओर शरारत भरे लहज़े में देखते हुए कहा जिसपर सपना आप भी न ...कहते हुए हल्का सा मुस्कुरा दी।

और अब वो दोनों अपनी सफेद रंग की एसयूवी कार में बैठ चुके थे। पलाश बारिश की बौछारों से सपना के सिर को बचाने के लिए उसके सिर पर अपने हाथों को छतरीनुमा अंदाज़ में लगाकर अपनी गाड़ी तक ले गया था। पलाश ड्राइविंग सीट पर बैठा था और सपना उसके बगल की सीट पर बैठी हुई मानो बस उसे ही निहारती जा रही थी और एक बार फिर उसे अतीत की परछाइयों नें आकर घेर लिया।

एक दौर था जब सपना सिर्फ और सिर्फ पराग को चाहती थी और बहुत चाहती थी। सपना के पापा के दोस्त का बेटा पलाश जो कि उस वक्त एनडीए की तैयारी कर रहा था, सपना के घर आता-जाता था । और फिर एक दिन की गलतफहमी बढ़ते-बढ़ते सपना और पराग के बीच की ऐसी गहरी खाई में तब्दील हो गई जिसे सपना लाख कोशिशों के बावजूद भी न भर सकी। इसके बाद हालातों नें कुछ ऐसी करवट बदली कि सपना के पापा की ज़िंदगी की अंतिम साँसों में वो सपना का कन्यादान अपनी आँखों के सामने और अपने हाथों से करने की इच्छा के चलते उसकी शादी जल्द से जल्द करवाना चाहते थे । उन हालातों में भी सपना नें पराग को पुकारने की बहुत कोशिश की मगर वो तो बस गलतफहमी के जाल में ही इस कदर फंसा हुआ था कि उसे सपना की वफ़ा और अपनी सच्ची मोहब्बत अपनी ज़िंदगी से हमेशा-हमेशा के लिए दूर जाती हुई नज़र ही नहीं आयी और जब उसकी आँखें खुलीं तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।

पराग, सपना को आज भी चाहता है और उसनें इसीलिए अपना एक पब्लिकेशन हाउस भी खोल लिया है कि शायद सपना कभी इसी बहाने एक बार फिर से उसकी दुनिया में लौट आए!

मगर सपना के दिल में आज सिर्फ और सिर्फ पलाश ही बसता है वो ही पलाश जिसनें सपना को उसके उन विषम हालातों में सबकुछ जानते हुए भी उससे किसी भी तरह के कोई भी सवाल-जवाब किये बिना ही और पूरे मन से अपनाया था ।

गाड़ी के ब्रेक लगने की आवाज.....सपना अभी भी बड़े ही प्यार से पलाश को ही निहार रही थी , उसकी आँखों में जहाँ पलाश के लिए असीम प्रेम था तो वहीं अपने देश के रक्षक के प्रति असीम सम्मान के भाव भी !

"क्या हुआ ? इस प्यार से मेरी तरफ़ न देखो,प्यार हो जायेगा!",इस फिल्मी गीत को गुनगुनाते हुए पलाश नें सपना की ओर देखा तो सपना नें कहा..."थैंक्स पलाश , थैंक्यू सो मच फॉर बीइंग इन माय लाइफ़! और हाँ कैप्टन साहब प्यार तो बहुत पहले ही हो चुका है", ये कहकर मुस्कुराती और शर्माती हुई सपना गाड़ी से उतर गई।

बारिश अब थम चुकी थी और शायद अब पलाश के साथ के कारण उस रिपोर्टर के प्रश्न से सपना के दिल में पैदा हुई हलचल भी !



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