मूक प्रेम और अनूठा समर्पण
मूक प्रेम और अनूठा समर्पण
अजय जब तीन साल का था तभी उसके माता-पिता का एक दुर्घटना में असमय देहांत हो गया था। दोनो ही सुनील साहब के यहाँ काम करते थे। अजय की माँ खाना बनती थी और पिता गाड़ी चलते थे। सुनील साहब के यहाँ एक समारोह चल रहा था की अचानक एक तरफ़ की कनात भरभरा कर गिर पड़ी और उसके नीचे आकर सुनील साहब के एक भाई, अजय के मात-पिता की मृत्यु हो गई। कुछ लोग घायल भी हुए थे।दरसल अजय के पिता ने सुनील साहब के पाँच साल के पोते को बचाने में जान दे दी थी इसलिए अजय को सुनील साहब ने अपने पास रखा और उसका लालन पालन बिलकुल पोते जैसे ही किया।
सुनील साहब के प्रति वफ़ादारी अजय में भी अपने माता-पिता जैसी ही थी। जब भी सुनील साहब के बेटा -बहु, बेटी -दामाद अपने बच्चों के साथ आते, उनके देखभाल और सेवा में वह एक पाँव पर खड़ा रहता। धीरे धीरे सुनील साहब के बेटे बेटियाँ की उम्र बढ़ रही थी और उनके बच्चे भी अपनी किशोरावस्था में क़दम रख रहे थे। इस दौरान किसी को नहीं पता था की सुनील साहब की छोटी नातीन ,निशी के मन में अजय के लिए कुछ भावनाएँ प्रस्फुटित हो रहीं थी।
अजय और निशी लगभग हम उम्र ही थे। कुछ महीनों का ही फ़र्क़ होगा दोनो में। अजय भी इस बात से पूर्णतः अनभिज्ञ था। समय के साथ निशी के मन के तार अजय से और भी मज़बूती से जुड़ते जा रहे थे।अजय को भी निशी की भावनाओं का अहसास होने लगा था।
वह नाना के घर आने के मौक़े तलाशती ताकी अजय से मिल सके और यहाँ आते ही उसकी नज़रें अजय को ढूँढती। इधर अजय उसकी नज़रों से बचने की तमाम कोशिश में फँसा रहता। वह सुनील साहब के साथ अपने रिश्तों को ख़राब नहीं होने देना चाहता था।उनके करम को वह मानता था। बातों बातों में जब भी मौक़ा मिलता अजय, निशी को भी यह समझता। निशी भी इस बात को समझती थी इसलिए कभी अपने दिल की बात अजय से बोलने की कोशिश नहीं करी ।वैसे निशी को ये आभास हो गया था की अजय भी अब उसकी ओर झुकने लगा है किंतु इस परिवार के मान को रखने के लिए वह ख़ुद को बाँध रहा है।
इन सारी दुविधाओं से बचने के लिए निशी पढ़ाई के बहने से विदेश चली गई और अब उसका सुनील साहब के यहाँ आना साल में एक बार ही होता था वो भी दो-तीन दिनों के लिए। अपने जज़्बातों को समेटे अजय और निशी भी एक दूसरे से मिलते। आँखे कुछ कहती और शब्द कुछ और होते थे। निशी विदेश में ही बस गई और शोध करने के बहाने शादी नहीं करने की बात पर घर वालों को मना लिया। घर वालों ने हर कोशिश की निशी के निर्णय बदलने की पर यह सम्भव नहीं हुआ क्योंकि वह अजय के प्रति अपने प्रेम में समर्पित थी। अजय ने भी वृद्ध सुनील साहब की सेवा की आड़ में शादी नहीं करी अपने प्रेम की ख़ातिर।बिना किसी सांसारिक बंधन में बंधे निशी और अजय अपने मूक प्रेम के लिए आजीवन समर्पित रहे।