V. Aaradhyaa

Classics Inspirational

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V. Aaradhyaa

Classics Inspirational

मतभेद मनभेद

मतभेद मनभेद

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कमाल है भाभी आपकी बड़ी ननद आपसे इतना बहस कर रही थी फिर भी थोड़ी देर के बाद आप दोनों पहले की तरह प्यार से हंस बोल रही है ऐसा कैसे ?"

गायत्री ने शुभा को पूछा। क्योंकि थोड़ी देर पहले उसने ननद भाभी की बहस सुनी थी। और उसे लगा कि दोनों में झगड़ा हो रहा है और दोनों के मतभेद से हो सकता है दोनों का मनभेद भी हो जाए।

सुबह के गायत्री की बात सुनकर सुबह मुस्कुराते हुए बोली ,

"हम ननद भाभी दोस्त भी हैं , और बहनों के रहते हैं। अलग-अलग विषय पर हमारे विचार अलग-अलग हैं, इसलिए मतभेद हो सकते हैं पर हमारे मन एक हैं, इसलिए मनभेद कभी नहीं हो सकता !"

ठीक तो कह रही थी गायत्री !

जब दिल मिले हुए होते हैं तो 

बातों में और विचारों में अगर 

भेद होता भी है तो मन मिल जाते हैं।

मन में कभी भी एक दूसरे के लिए नहीं होती।


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