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SANGEETA SINGH

Tragedy

4  

SANGEETA SINGH

Tragedy

मरते रिश्ते

मरते रिश्ते

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"सुन रज्जो , मैं ना सुरिंदर को विदेश भेजूंगा,तू देखियो।"

"अरे सुरिंदर के बापू,अपना देश क्या बुरा है,यहीं रहन दे इसको,गोरी मेम ला ,हमदोनो को भूल जावेगा।"

"अरी बावरी ,ऐसा ना करेगा ,अपना सुरिंदर,क्यों सुरिंदर??? "बापू ने हंसकर कहा।

सुरिंदर हंस पड़ा,अंतिम साल था इंजिनियरिंग का।गांव के समृद्ध किसानों में सरदार हरप्रीत सिंह की गिनती होती थी। पंजाब के छोटे से गांव में सरदार हरप्रीत अपनी पत्नी रज्जो और बेटे सुरिंदर के साथ।

रज्जो ने कहा "सपने ही देखते रहोगे ,सरदार जी की मंडी जाकर गेहूं भी बेच आओगे।"

"अरे हां _ लस्सी तो पिला दे भाग्यवान ,लौट कर आता हूं तो फिर, साथ मिलकर खायेगे मक्के की रोटी, और सरसों का साग।"

"सुरिंदर कल जाएगा, चंडीगढ़ उसके कॉलेज में कंपनियां आने वाली है,उसके लिए भी पिन्नी बना देईयो।तूसी भी सठिया गए, हो सरदार जी,अपना काम तो याद रहता नहीं ,मुझे बड़ा काम याद दिलाते हो।"

हंसती रज्जो,लस्सी लाने चली जाती है।


सुरिंदर कॉलेज पहुंचा,कई कंपनियां आयी थी।उसका कैंपस सिलेक्शन कनाडा की कंपनी में हो गया।

अब बस परीक्षा का परिणाम आना बाकी था ,उसके बाद सुरिंदर भारत से फुर्र,कनाडा के लिए।

खुसखबरी सुन सरदार हरप्रीत और रज्जो फूले ना समा रहे थे।

पूरे गांव को न्योता दे दिया खाने को।

पासपोर्ट बनवाने के लिए ऑफिस के चक्कर लगाए।पासपोर्ट भी बन कर आए गया।

कुछ दिनों बाद परिणाम भी परीक्षा के आ गए।


सुरिंदर कनाडा चला गया।रह गए दो पंक्षी ,सरदार हरप्रीत और रज्जो।

कुछ दिनों से सरदार जी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी।एक दिन रज्जो को अकेला छोड़ सरदार जी ,इस धरती को छोड़ चले गए।

अन्तिम क्रिया में बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिली थी ,सुरिंदर को ।वो आया और जल्दी ही वापस लौट गया।


मां को सहारे की जरूरत थी ,वो पति की मृत्यु के बाद से पूरी टूट चुकी थी।

सुरिंदर चला गया,सरदार जी चले गए।बहुत दिनों वह द्वंद करती रही खुद से ,अकेलेपन से।

आखिर खेत थे,मवेशी थे,अब सब उसके भरोसे।

वो जानती थी ,की दुनिया किसी के जाने के बाद नहीं रुकती,खेल में किरदार बाहर होता है ,तो अगला खिलाड़ी उसका स्थान ले लेता है।

उसे भी सबकुछ देखना है ,पेट के लिए ,अकेलापन दूर करने में लिए काम करना ही होगा।

एक दिन सुरिंदर का फोन आया,उसने बताया_बीजी ,मैंने यही शादी कर ली है।

रज्जो को अपनी और सरदार की बात याद आ गई ।उसने भरे मन से आशीर्वाद दिया।

उसका मन व्यथित था,वह रात भर सो नहीं पाई।

बार बार सुरिंदर का व्यवहार उसे कचोट रहा था,कितना बदल गया है,पिता के मरने के बाद आया ,और ना रुका ,और ना ही उसने कहा बीजी तुम यहां अकेले कैसे रहोगे ,तुम चल चलो मेरे साथ।

आज मुझे ख़बर सुना रहा,अपने व्याह का।कितने खुदगर्ज हो चुके हैं रिश्ते आजकल।

नौ महीने पेट में रखा,अपनी खुशी छोड़, पुतर की खुशी देखी,आज ये सिला।

ममता कराह उठी।बार बार खुद को कितना संभालू ,वाहे गुरु। मै थक चुकी ।

रज्जो को अभी बहुत कुछ सहना था,शायद इसे ही पूर्व जन्मों का कर्म कहते हैं।

समय रफ्तार से बीत रहा था।रज्जो अब बहुत बूढ़ी हो चुकी थी,अब तो आंख भी जवाब दे गई थीं।

बहुत मुश्किल से काम निपट पा रहा था।खेती भी बंटाई पर दी थी,जो हिस्सा आता था,वो काफी था,अकेली जान के लिए।

बहुत दिनों बाद सुरिंदर ने फोन किया , बीजी, मैं आ रहा हूं ठीक 15 दिन बाद, तुम्हें लेने।

तू अकेली कब तक रहेगी ,अपनी जमीन,खेत खलिहान सब बेच दे,और मेरे साथ कनाडा चल , रानी की तरह बैठ कर बहू की सेवा ले।बहुत सालों से अकेली रह चुकी।

रज्जो को घोर आश्चर्य हुआ,फिर भी वो बहुत खुश थी। 15 दिनों के बाद सुरिंदर आया।

खेत खलिहान ,मवेशी सब बेच दिए। बीजी का सामान पैक हुआ,खुशी का ठिकाना ना रहा बीजी के।अगले दिन अमृतसर के गुरु रामदास जी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर दोनों पहुंचे। सिक्योरिटी क्लियर करा सुरिंदर ने रज्जो को लाउंज में बिठा दिया,ये कहकर कि अभी आता हूं,चला गया।रज्जो खुशी खुशी इंतजार करने लगी।

सुबह से दोपहर हो गई,शाम भी होने को आयी,बूढ़ी रज्जो टकटकी लगाए ,बेटे के जाने कि दिशा में निहार रही थी।अंत में वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों की नजर उसपर गई ।उन्होंने पूछा तो रज्जो ने बताया वह कनाडा जा रही ,अपने बेटे के साथ। पर मांजी_ कनाडा की फ्लाइट तो सुबह ही चली गई।पैसेंजर लिस्ट चेक किया गया,जिसमे सुरिंदर जा चुका था।

रज्जो फिर अकेली।अब कहां जाए,सब कुछ बिक चुका था,बेटे ने ऐसा दगा दिया ,जो कोई दुश्मन भी किसी के साथ नहीं करता।

वो पथरा गई।ना आंसू निकल रहे, बुत बन चुकी थी, उसने आस्तीन के सांप को दूध पिलाया था। उसके बारे में सुन सभी दुखी हुए और बेटे को कोसने लगे।कहीं तो उनको पनाह देनी थी,इसको सोच कर एयरपोर्ट के कर्मचारियों ने स्वयंसेवी संगठन को फोन किया ,और उन्होंने रज्जो को वृद्धाश्रम भेज दिया।

कहानी तो यहां खत्म होती है पर समाज परिवार पर बड़ा प्रश्नचिह्न छोड़ जाती है। बुजुर्गो के प्रति ऐसी संवेदनशीलता!¡!एक मां हमेशा छली गई ,अपने ही जिगर के टुकड़े से।



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