मोल -भाव

मोल -भाव

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 "भैया परवल क्या भाव दिए”, मीना ने सब्जी वाले से पूछा।


"बहिनजी तीस रुपए किलो”, सब्जी वाले ने कहा।


"अरे क्या लूट मचा रखी है पच्चीस रुपये लगाओ।”


"नहीं बहिनजी, नहीं दे पाएंगे।" सब्जी वाला।


"नहीं नहीं मैं तीस रुपये नही दूँगी एक किलो तौल दो तुम।”


बहुत बक झक के बाद, सब्जी वाला थके स्वर में, "ठीक है बहिनजी आपसे हम नहीं जीत सकते, दीजिये पच्चीस ही दे दीजिए।”


मुख पर विजयी मुस्कान लिए मीना घर आकर पति को बता रही है किस तरह मोल-भाव कर सब्जीवाले से पैसे कम करा लिए।


मीना रिक्शेवाले से अरे भैया बाजार तक जाना है कितना लोगे,

"मैडम बीस रुपये लूंगा बैठिए।”


"अरे पन्द्रह लेना चलो।”


गर्मी पसीने से तरबतर बूढा रिक्शा वाला मैडम को बाजार तक छोड़ देता है। पर मैडम को जरा भी दया नही आ रही कि कम से कम पूरे पैसे तो दे दूं, पाँच रुपये के लिए बूढे से बहस।

शायद रिक्शा वाला मैडम से ज्यादा समझदार है, “ठीक है मैडम छोड़ो पन्द्रह ही दो, समय खराब हो रहा है।”


मैडम अपनी विजयी मुस्कान के साथ पैसे दे चली गई।


पता नही छोटे-गरीब लोगों के साथ, इतनी बहस पैसे कम करने आखिर क्यों?


और आज संडे मीना, अपने पति मनोज और दस वर्षीय बेटे अर्जून के साथ मॉल में शॉपिंग के लिए पहुंची।बड़ी सी ब्रांडेड शॉप है, अच्छे सी ड्रेस पसन्द की अपने लिए, पूरे ढाई हजार की है, मनोज को ड्रेस महंगी लग रही है।


”मीना कुछ और देख लो बहुत महंगी है ये ड्रेस।”


बेटा, "अरे मम्मी तो मोल-भाव करके कम कर लेगी पापा रेट।”


मीना थोड़ा नरम स्वर में, “अरे ये ब्रांडेड शॉप है, यहाँ एक रुपये भी कम नही होगा। और मुझे यही ड्रेस पसन्द है प्लीज़ मनोज दिला दो ना।”


मनोज और बेटा सोच में-

ये कैसी मानसिकता? जहाँ गरीबों से तो बहस और मोलभाव कर के चीजें ली जाती हैं और ब्रांडेड शॉप के नाम से मुंह में ताला लग गया, जितना माँगे उतना दो।


पाठकों से भी- गरीब को चार पैसा ज्यादा भी देने से उनकी मेहनत का ही देने का, मन में संतोष होगा।


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