मोहब्बत की खुशबू
मोहब्बत की खुशबू
आज आयुष और सुगंधा की शादी थी। सुगंधा दुल्हन बनी ख्यालों में खोई अपने और आयुष की प्रेम-यात्रा के सारे लम्हे याद कर रही थी।
एक साल पहले की ही तो बात है जब सुगंधा उदास सी बैठी थी हाथ में अपना फोन लिए। आज फिर उसके मंगेतर प्रकाश ने मामूली शक्ल-सूरत के लिए उसका उपहास उड़ाया था। उसका दिल चाहता था ये रिश्ता तोड़ दे लेकिन माता-पिता के दबाव के आगे कुछ कह नहीं पाती थी। प्रकाश की भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी। दोनों बेमन से इस रिश्ते को ढ़ो रहे थे।
अचानक फोन पर नोटिफिकेशन की आवाज से सुगंधा की तंद्रा भंग हुई तो उसने देखा फेसबुक पर किसी 'आयुष' का फ्रेंड रिक्वेस्ट था। सुगंधा कभी भी अजनबियों की रिक्वेस्ट नहीं स्वीकारती थी, लेकिन ना जाने इस आयुष के चेहरे में, उसके प्रोफाइल में उसे क्या दिखा की उसने उसे अपनी मित्रता सूची में जगह दे दी।
कुछ देर बाद उधर से 'धन्यवाद' का संदेश आया। सुगंधा ने 'स्वागत है' लिखकर फोन बंद कर दिया।
सुगंधा को लिखने का शौक था। शब्दों के जरिये अपनी भावनाओं को पन्नों पर उतारकर उसे असीम शांति का अनुभव होता था। उसकी एकलौती अजीज सखी की मृत्यु के बाद बस ये डायरी ही उसकी सखी, उसकी हमराज, उसकी हमदर्द सब कुछ थी।
नववर्ष की संध्या पर सुगंधा ने फेसबुक पर अपनी एक रचना लिखी। उसे पढ़कर तुरंत आयुष ने संदेश भेजा "आप उदास क्यों है ? अगर दिक्कत ना हो तो मुझे बता सकती है।"
सुगंधा एक पल के लिए हैरान रह गयी ये सोचकर कि यहां सामने बैठे उसके अपने उसकी उदासी नहीं देख पा रहे है, लेकिन इस अजनबी को अहसास हो गया कि वो उदास है।
फिर धीरे-धीरे बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो देखते ही देखते दोनों बहुत गहरे मित्र बन गए।
आयुष ने एक दिन बताया किस तरह एक लड़की ने अपने फायदे के लिए कॉलेज में उसका इस्तेमाल किया और वो उसे मोहब्बत समझता रहा। फिर जब मतलब पूरा हो गया तो वो उसे ये कहकर छोड़ गई कि उसके पापा एक प्राइवेट नौकरी वाले से उसकी शादी नहीं करेंगे।
सुगंधा को बहुत दुख हुआ ये जानकर। उसने आयुष को समझाया कि निराश ना हो। शायद जो होता है अच्छे के लिए होता है।
आयुष भी सुगंधा से कहता "देखना एक दिन तुम्हारा मंगेतर जरूर तुम्हारी कद्र करेगा क्योंकि तुम बहुत अच्छी हो।"
आयुष को सुगंधा की समझदारी भरी बातें बहुत अच्छी लगती थी, और सुगंधा को आयुष का सबका ख्याल रखने का स्वभाव भाता था।
यूँ ही वक्त बीत रहा था। अब जब तक आयुष और सुगंधा दिन भर की तमाम बातें एक-दूसरे के साथ बांट नहीं लेते थे दोनों को सुकून नहीं मिलता था।
किसी दिन अगर किसी वजह से बात नहीं हो पाती थी तो दोनों को ही एक खालीपन सा महसूस होता था।
आयुष से बातें करते हुए सुगंधा को अक्सर किसी उपन्यास में पढ़ी ये पंक्तियां याद आती थी "बाँटना और क्या है ? दूसरे को अपनी अंतरंगता की परिधि में शामिल करना। तुम मेरे मित्र हो। मेरी ये गूढ़ आपबीती जान लो, ताकि हमारी साझेदारी और बढ़ जाये।"
एक दिन अचानक ही आयुष ने कहा "सुगंधा मैं तुमसे मिलना चाहता हूं।"
सुगंधा ना नहीं कह पायी लेकिन वो अंदर से डरी हुई भी थी।
हालांकि उसे आयुष पर विश्वास था, फिर भी टीवी में देखे हुए तमाम अपराधों के किस्से उसकी नजरों के सामने दौड़ने लगे।
इसलिए उसने सावधानी से अपने बैग में चाकू और स्प्रे रख लिया।
निश्चित दिन पर आयुष उससे मिलने उसके शहर आया।
अंदर से थोड़ी घबराई हुई सुगंधा ऊपर से सहज दिखने की भरपूर कोशिश कर रही थी।
आयुष को सामने पाकर जैसे ही सुगंधा ने उससे हाथ मिलाया उसे एक अजब सा एहसास हुआ। कुछ वक्त साथ बिताने के बाद ही वो समझ गयी कि आयुष पर भरोसा किया जा सकता है।
दोनों ही एक-दूसरे के साथ बहुत खुश थे। उनके चेहरे यूँ खिले हुए थे मानों बरसों बाद उनकी ज़िंदगी में खुशी लौटी हो।
जब आयुष के जाने का वक्त हुआ तो उससे ज्यादा सुगंधा उदास हो गयी।
उसने आयुष का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा "सुनो, एक बात कहनी है। बस यूँ ही कह रही हूँ, तुम ये मत सोचना की जबरदस्ती गले पड़ रही हूँ तुम्हारे।
"अब कह भी दो। हमारे बीच क्या अब भी सफाई की जरूरत है ?" आयुष ने सुगंधा की नज़रों में देखते हुए जवाब दिया।
सुगंधा थोड़ा हिचकते हुए बोली "आयुष, मुझे तुमसे मोहब्बत हो गयी है। मुझसे शादी करोगे ?"
आयुष हैरान रह गया। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई लड़की कभी उसे इतना चाहेगी की खुद आगे बढ़कर उसे प्रोपोज़ करेगी, वो भी पब्लिक प्लेस में।
आयुष को खामोश और गुमसुम देखकर सुगंधा ने फिर कहा "माफ करना, शायद मैंने कुछ गलत कह दिया। भूल जाओ ये सब।"
"आज जब मुझे मेरे जीवन की सबसे बड़ी, सबसे अनमोल खुशी मिली है तो तुम कह रही हो भूल जाओ ? सुगंधा, मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ, इतना कि तुम्हारे बिना जीने की कल्पना करता हूँ तो ऐसा लगता है मानों मेरी साँसें मेरा साथ छोड़ रही हों। लेकिन तुम्हारी शादी तय हो चुकी थी इसलिए कह नहीं पाया अपने दिल की बात।" आयुष के स्वर में मायूसी झलक रही थी।
"तुम्हें खामोश देखकर मैं सोच रही थी कि शायद तुम्हें भी मेरी साधारण शक्ल-सूरत अपनी जीवनसंगिनी के रूप में पसंद नहीं आयी" सुगंधा ने आयुष का हाथ थामते हुए कहा।
आयुष उसके सर पर हल्की चपत लगाते हुए बोला "बिल्कुल पागल हो तुम, तुम्हारी सीरत तो मेरे मन में यूँ बस गयी है कि सूरत से फर्क ही नहीं पड़ता। और मैडम, मेरी नज़र से देखिए खुद को आप बहुत खूबसूरत है।"
ये सुनकर सुगंधा ने बिना किसी हिचक के आयुष के गले लगते हुए कहा "तुम्हारा प्यार साथ है तो अब हमारे रिश्ते के लिए मैं किसी भी मुश्किल का सामना कर सकती हूँ।"
सुगंधा की इस प्रतिक्रिया पर आयुष मुस्कुरा उठा। फिर मिलने के वादे और इस मुलाकात की यादों के साथ वो अपने शहर लौट गया।
घर जाकर सुगंधा ने अपने माता-पिता से बात की, उन्हें समझाने की कोशिश की, कि उसकी खुशी आयुष के साथ है और उधर आयुष ने भी अपने घर में सुगंधा के बारे में बात की।
सुगंधा की माँ ने कहा "हमारी बेटी चाहती तो आजकल के बच्चों की तरह भाग भी सकती थी, लेकिन उसने हमसे बात करना जरूरी समझा और हमारा मान रखा।"
ये बात सुनकर सुगंधा के पापा भी आयुष और उसके परिवार से मिलने के लिए मान गए।
परिवार के मान-सम्मान का ख्याल रखने की उनकी इस सादगी और अच्छाई का ऐसा असर हुआ कि दोनों एक-दूसरे के परिवार को पसंद आ गए।
सुगंधा के पापा ने जब प्रकाश के परिवार को सुगंधा की इच्छा बताई तो उन्होंने भी कहा "जबदस्ती किसी रिश्ते में बंधकर घुटने से अच्छा है, उसकी शुरुआत ही ना कि जाए।"
प्रकाश भी मन ही मन खुश था कि उसे अब परिवार के दवाब में अपने से कम खूबसूरत लड़की से शादी नहीं करनी होगी।
अब आयुष और सुगंधा के रिश्ते में कहीं कोई रुकावट नहीं थी। उनकी खुशियां उनका इंतज़ार कर रहीं थी।
फोन की घंटी ख्यालों में खोई दुल्हन बनी सुगंधा को वापस वर्तमान में ले आयी।
उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आयुष ने कहा "मैडम, हम आ गए है बारात लेकर। क्या मंडप में भी चाकू और स्प्रे लेकर आने का इरादा है ?"
दोनों साथ हँस पड़े और उनकी खिलखिलाहट ने फ़िज़ाओं में मोहब्बत की खुशबू बिखरा दी।