मंडी का भाव
मंडी का भाव
जबसे कंगना राणावत को भारतीय जनता पार्टी ने हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से टिकिट दिया है तबसे "भिंडी गठबंधन" का हर कोई व्यक्ति , वह चाहे पुरुष हो या स्त्री , "मंडी के भाव" जानने में लगा हुआ है । कोई पूछ रहा है कि आजकल "मंडी" में क्या "रेट" चल रही है ? जैसे उन्हें "मंडी" में कुछ"सेवा" चाहिए । यह सेवा कैसी होगी ,यह वही लोग बता सकते हैं जो मंडी के भाव पूछ रहे हैं । कोई कह रहा है कि रेट तो मंडी में ही सही मिलती है, अन्य जगह नहीं । अखिल भारतीय खानदान पार्टी की गुजरात इकाई के पदाधिकारी ने तो कंगना को "मंडी की ***" बोल दिया है । जो शब्द उसने इस्तेमाल किया है उसे लिखने में भी शर्म आ रही है । पर आप लोग समझ ही जायेंगे क्योंकि मंडी के साथ लय ताल में *** ही बोला गया है । पर आश्चर्य यह है कि खानदानी पार्टी महिलाओं की इज्जत करने की दुहाई देती थकती नहीं है । यह वह दल है जिसमें महिलाओं को "टंच माल" कहा जाता है और नारी अस्मिता का राग भी अलापा जाता है ।
न्यूज़ चैनल्स पर खानदानी पार्टी की प्रवक्ता "कर्कशा" को तो आपने देखा सुना भी होगा । भगवान ने बहुत अन्याय किया है उसके साथ । बेचारी को न सूरत दी और न ही मधुर आवाज । देहयष्टि भी कोई आकर्षक नहीं, साधारण ही है । तो फिर वह बेचारी क्या करे ? सुंदर और आकर्षक महिलाओं से ईर्ष्या भी ना करे ?
अपने काम की बदौलत बॉलीवुड में पहचान बनाने वाली , बॉलीवुड की जेहादी गैंग से एकमात्र टक्कर लेने वाली , शिवसेना के "नॉटी" सांसद का अहंकार उखाड़ने वाली , मणिकर्णिका, थलैवी, धाकड़ जैसी अद्वितीय फिल्म देने वाली सुंदर , आकर्षक कंगना को देखकर हर किसी को जलन होना स्वाभाविक है तो फिर "कर्कशा" पीछे कैसे रहती ? इसलिए उसने अपने वैरीफाइड सोशल मीडिया अकाउंट से कंगना का बिकनी वाला फोटो जो शायद उसके किसी फिल्म से लिया गया था, और कुछ सब्जियों का एक फोटो एकसाथ लगाकर पूछा गया था "मंडी में क्या भाव चल रहा है" ?
लोगों को ये समझ नहीं आया कि वह कर्कशा किसकी रेट जानना चाहती थी ? गृहणी को तो सब्जियों के भाव वैसे ही पता होते हैं क्योंकि वे बाजार से खुद सब्जियां लाती हैं । पर यह बात बड़ी विचित्र लगी कि एक औरत दूसरी औरत की "रेट" क्यों पूछ रही है ? आजकल किसी के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है । जबसे सुप्रीम कोर्ट ने LGBTQ को मान्यता दी है तबसे तरह तरह के किस्से बाजार में चल रहे हैं ।
एक और बुजुर्ग महिला जो लगभग 78 साल की हो गई है और जो अपने जमाने की जानी मानी पत्रकार रही थी । एक जाने माने अखबार की वर्षों तक संपादक भी रही थी , दूरदर्शन से भी जुड़ी थीं । इनकी माता जी हिन्दी की मशहूर साहित्यकार रही थीं । साहित्य जगत में उन्हें कौन नहीं जानता है ? बस, उनके नाम की कमाई ही खा रही हैं ये मोहतरमा । बरसों से खानदानी पार्टी की "सेवा" करती आईं हैं और अभी भी सेवा करने का कोई मौका नहीं छोड़तीं हैं । खैरातियों का कर्तव्य है कि वे अपने नमक का हक अदा करते रहें । तो इन मोहतरमा जी ने दैनिक जागरण के एक समाचार "कंगना को मंडी से टिकिट" पर सोशल मीडिया में पोस्ट कर दिया "क्योंकि मंडी में ही सही रेट मिलती है" । एक 78 वर्षीय स्त्री द्वारा दूसरी स्त्री के विषय में इतनी घिनौनी टिप्पणी करना उसकी मानसिकता को दर्शाता है ।
ऐसी टिप्पणी तो आम महिलाओं से भी अपेक्षित नहीं है फिर किसी साहित्यकार, संपादक या कलाकार ऐसा कैसे कर सकती है ! लेकिन खैराती लोग अपना असली रूप आखिर दिखा ही देते हैं । अब जनता तय करती रहे कि मंडी में किसकी कितनी रेट चल रही है ।
वैसे इन मोहतरमा जी को शायद मंडी की रेट्स में इसलिए दिलचस्पी होगी क्योंकि इन्होंने एक लेख "स्त्री : देह की राजनीति से देह की राजनीति तक" लिखा था कभी । इसका मतलब है कि ये मोहतरमा अभी भी "देह" की "रेट" लगाने में ही व्यस्त चल रही हैं । हम तो यही कामना करते हैं कि ये मोहतरमा मरते दम तक "रेट" लगाती रहें ।
जब सोशल मीडिया उक्त पोस्टों पर भड़क उठा तो कर्कशा डैमेज कंट्रोल करने में जुट गई । ये उसी खानदानी दल की करतूत थी जो जगह जगह "मोहब्बत की दुकान" खोलकर बैठा है लेकिन उस दुकान में माल गालियों का , अशोभनीय आचरण का और अलगाववाद का ही बिक रहा है । जब खानदानी पार्टी के मालिक को गाली गलौज वाली भाषा ही पसंद आती है तो बाकी लोग भी उसी भाषा का इस्तेमाल क्यों नहीं करेंगे ? सफाई में कर्कशा अब कहती फिर रही है कि यह पोस्ट उसने नहीं की अपितु उसके स्टॉफ ने की थी । बस, इतनी सी बात बोल देने से उसके सारे अपराध खत्म हो जाते हैं क्या ?
वैसे कर्कशा ने ऐसा घृणित कृत्य पहली बार नहीं किया है । वह ऐसे कृत्य करने की आदी रही है । उसने अमेठी की सांसद जिसने युवराज को धूल चटाई थी को कभी बोला था "यह औरत राजनीति के नाम पर ही नहीं , औरत होने के काम भी एक कलंक है" । इतना ही नहीं भगवा दल के प्रवक्ता को एक टीवी न्यूज चैनल्स में लाइव बहस के बीच "दो कौड़ी का नाली का कीड़ा" बोल दिया था और चैनल की ऐंकर इसे टोकती रह गई थी । तो इसका यह कोई पहला कारनामा नहीं है , ऐसा करने की यह आदतन अपराधी रही है ।
इसके अतिरिक्त नमाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं ने भी ऐसे ही पोस्ट शेयर किये हैं । लेकिन लोगों को पता है कि इस पार्टी के "नेताजी" तो बलात्कारियों को यह कहकर बचा लेते थे "लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है" । इसी पार्टी का ट्रेंड मार्क रहा है सैफई महोत्सव में महिलाओं को नचाने का । तो ऐसे दलों से महिलाओं के सम्मान की आशा करना कीचड़ से सुगंध की आशा करने जैसा है ।
जो दल संदेशखाली की वीभत्स, नृशंस, बर्बर घटनाओं को झुठलाते रहे और पीड़ित महिलाओं का ही चरित्र हनन करते रहे, उन्हीं पर इल्ज़ाम लगाते रहे, ऐसे लोगों से महिला की गरिमा का ध्यान रखने की उम्मीद करना व्यर्थ है । हां, महिलाऐं कर्कशा और संपादक जैसा व्यवहार करेंगी, यह सोचा नहीं था । पर चुनावों में अपशब्दों की बाढ़ आ ही जाती है । अब जब मंडी में रेट लगने जा रही है तो मंडी के रहने वाले लोग ही बता पायेंगे कि किसकी रेट क्या है ? वास्तविक रेट ज्ञात करने के लिए हमें चुनाव परिणामों तक इंतजार करना ही होगा । तब तक शब्द रूपी गंदगी का आनंद लेते हैं ।
श्री हरि