हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Romance Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Romance Inspirational

पत्नी प्रशंसा दिवस

पत्नी प्रशंसा दिवस

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आज सुबह से ही श्रीमती जी मुझे अजीब अजीब नज़रों से घूर रही थीं । उनकी नजरें देखकर मेरी घिग्घी ऐसे बंध गई जैसे कोई बकरी शेर को देख लेने मिमियाना भी भूल जाती है । मुझे समझ में नहीं आया कि वे ऐसा क्यों कर रहीं थीं । मैंने अपने सब देवी देवताओं , पितरों , भूत -प्रेतों , कुल देवताओं को याद कर उन्हें मन ही मन प्रणाम किया और "अलाय बलाय" से मेरी रक्षा करने की प्रार्थना की । उन्होंने कहा "बेटा , हम सभी देवता तेरी सब बुराइयों से रक्षा कर सकते हैं लेकिन पत्नी पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है इसलिए यदि कोई खतरा उधर से हो तो इलाज भी उधर ही कराना पड़ेगा । और सुन ! आज पत्नी प्रशंसा दिवस है , तू ने अभी तक पत्नी चालीसा का पाठ नहीं किया और न ही पत्नी आरती गाई । और तो और पत्नी पुराण से दो चार श्लोक भी नहीं बांचे तो पत्नी घूरेंगी ही , इसमें हम क्या कर सकते हैं" ? अब मुझे अपनी त्रुटि और पत्नी देवी की महत्ता का अहसास हुआ । पत्नी की प्रशंसा में तब मेरे अधरों से पत्नी की स्तुति स्वत: निकलने लगी 

पत्नी के आगे नत मस्तक भूत प्रेत और देव 

गाल दमकते उसके ऐसे जैसे कश्मीरी सेव 

नैनों की चिंगारी से जल जाये प्रेम की पुस्तक 

भृकुटी टेढ़ी कर ले गर कट जाए पति का मस्तक 

अधर पियाले मदिरा के चढ जाए नशा बड़ा भारी 

जुल्फों के नागों से बचा लो हे माधव , गिरधारी 

उंगली में इतनी शक्ति है जितनी नहीं विधाता में 

चाहे जितनी दूर खड़ा रहूं खिंचता ही चला आता मैं 

मेरी सेहत अच्छी होने का श्रेय इन्हीं को जाता है 

खाना ऐसा बनता है कि दो कौर ना खाया जाता है 

चरण चूमकर बिस्तर छोड़ें पैर दबाकर सोते हैं 

बर्तन भांडे रगड़ रगड़ कर नल के नीचे धोते हैं 

चांद सा मुखड़ा देख देख कर मन में लड्डू फूट रहे 

पास फटकने देती ना हो अरमान हमारे टूट रहे 

दुआ करें हम रब से प्यारी रौब तुम्हारा बढ़े सदा 

तुम लक्ष्मी अंबा गौरी बन मुझ पर रहो सदा शुभदा 


जिस तरह भगवान अपनी स्तुति सुनकर प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तजनों पर अहैतुकी कृपा की बरसात करते हैं उसी तरह मैंने भी सोचा कि "पत्नी स्तुति चालीसा" का पाठ करने से देवी जी प्रसन्न हो जायेंगी और अपने गोरे गोरे नर्म नर्म हाथों से चाय का प्याला पकड़ा कर सुबह सुबह प्रेम रस की सावनी फुहार छोड़ेंगी । पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया बल्कि भृकुटियां तिरछी करके बोलीं "ये कौन जमाने की कविता लिखते हैं आप ! अपने आप को बहुत बड़ा शायर समझते हो , कवि मानते हो लेकिन आता जाता कुछ है नहीं । भगवान ने तुम्हें मेरे ही पल्ले बांधा है , और कोई नहीं मिला भगवान को मेरे लायक कोई लड़का" ? ये पंक्तियां सुनते सुनते कान पक गये मगर हमने कभी उफ़ की क्या ? 

हम भी इतनी जल्दी हार मानने वाले नहीं थे । हमें तो ऐसी "जली कटी" सुनने की आदत पड़ी हुई थी । जब से स्कूल कॉलेज गये थे तब से हमें फब्तियां कसने की आदत पड़ी हुई है जिन्हें सुनते सुनते हम इतने ढीठ हो गये हैं कि बीवी की जली कटी बातें अब "प्रशस्ति गान" लगने लगी हैं । हे देवि ! हम प्रार्थना करते हैं कि भगवान आपकी जुल्फों को इतनी मजबूत बना दे कि उनसे आप मुझे हमेशा जकड़े रखो । आपकी आंखों की चपलता ऐसी हो जैसी सैकड़ों बिजलियां एक साथ गिर जाये कहीं पर । नाक इतनी तीखी हो जाये कि आदमी को काट कर रख दे । गाल इतने लाल सुर्ख बन जायें कि वे अग्नि कुंड से लगने लगें । होंठों से गालियों की बौछार होने लगे । आपके अस्त्र शस्त्र बेलन , चिमटा, झाड़ू , डंडा इतने मजबूत रहें कि मेरी पीठ , टांग , हाथ , सिर सब टूट जायें भले ही पर आपके अस्त्र शस्त्र हमेशा दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते रहें । हम जैसे अज्ञानी पति देव आज के दिन भगवान से यही मांगते हैं । हमें और कुछ नहीं चाहिए प्रभु । 

अर्ज़ है 

देना है तो दीजिए मेरी पत्नी की सेवा 

चरण दबाता रहूं मैं उसके हरदम हे देवा 

देना हो तो दीजिए प्रभु पत्नी की सेवा 


श्री हरि 



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