Abasaheb Mhaske

Abstract

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Abasaheb Mhaske

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मन क्यों बहके रे बहके...

मन क्यों बहके रे बहके...

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मन क्यों बहके रे बहके तेरी चाहत में ?

मिले ख़ुशी तुझे देखे बगैर तेरी आहट से

क्यों तेरा हर वक्त इंतजार रहता है?

तू आएगी जरुरी दीवाना दिल कहता है।


मेरे मन सुन ले पुकार उस भविष्य की जो

हर वक्त वर्तमान में ढूंढना पड़ता है

जो हुवा सो हुवा अब आगे भी तो बढ़ना है

 तू क्या जाने तेरा दूसरा नाम हैं पागलपन।


मेरे मन तू क्यों हैं इतना चंचल , लचीला

मतलब की बाते, दुनियादारी तू न जाने

जानेवाले वापस नहीं आते कभी यार

सिर्फ अपने सपने क्यों बुनते रहते हो ?


मन क्यों बहके रे बहके छोड़ के खुशियों को

बीती बाते ,वो गीले शिकवे क्यों याद आते हैं ?

क्यों नहीं होता तू कप्म्यूटर जैसा अपडेट ,रिफ्रेश ?

सिर्फ कमांड लेले छोड़ प्यार ,वफ़ा ,मोहब्बत यार।


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