पता नहीं क्यूँ ऐसा लगता है ?
पता नहीं क्यूँ ऐसा लगता है ?
कहाँ से आती है ..यह अजीब सी बेचैनी मायूसी...तड़पन, निराशा
और मेरी निजी जिंदगी में मानो... जैसा तूफान सा आता है !
आजकल मुझे नहीं लुभाते वह सुंदर हर भरे पहाड़ , खेत खलीयान
झील - झरने सुमधुर गानेवाली कोयल, और वह नाचता मयूर !
पता नहीं क्यूँ ऐसा लगता हैं ? सबकुछ खत्म... चारों तरफ विरानी है !
जाने क्यूँ लगता है मुझे ऐसा ? मनहूस सूरत .बेमौसम , बे मतलब चिखती - चिल्लाती
रोनी सी सुरतवाली वो नियती हंस - हंसकर मुझे न जाने क्यूँ उकसा रही है !
उदासी , बेबसी का आना - जाना लगा रहे मगर ... क्यूँ इतनी ग़म की परछाई है...
क्यूँ नहीं लगता मुझे ऐसा ? की होगी जीत मेरी अंत मे आशा ही जिंदगी है !
पता नहीं क्यूँ ऐसा लगता हैं ? सबकुछ खत्म... चारों तरफ विरानी है !