थोड़ी सी गुस्ताखी कर लें

थोड़ी सी गुस्ताखी कर लें

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चलो...दोस्तों ! आज कुछ अनसूलझे सवाल दोहराते हैं ..

क्यूँ नहीं पूछे जाते ऐसे सवाल चैनलों पर, न्यूज़ पेपर में ...

जो सब के हित में हो .. पूरे मानव जाती के कल्याण पर आधारित हो ?

क्या कोई ऐसे सवाल ही नहीं जो उस पर एक ही मत हो, सबकी अनुमति मिले ?

चलो...दोस्तों ! थोड़ी सी गुस्ताखी कर ले...हो सके तो माफ़ कर दो..

क्या यह उचित है, इन्सान भूखा रहे और धार्मिक स्थलों में पैसा सड़े ?

क्या यह उचित है, धर्म के नाम पर कोई जनता को लूटे,अपनी जेब भरे?

क्या यह उचित है, कुर्सी, पैसा पाने के लिये इन्सान कुछ भी करे ?

क्या यह उचित है, बहुत कुछ बिगड़ रहा है और हम सिर्फ तमाशा देखे ?

चलो...दोस्तों ! थोड़ी सी गुस्ताखी कर ले...हो सके तो माफ़ कर दो..

सभी धर्म सबसे पहले अच्छा इन्सान बनो सिखाता है !

धर्म, कानून और लोकतंत्र व्यक्ति का विकास चाहता है !

व्यक्ति विकास, समाज, देश और पूरे विश्व का कल्याण लक्ष्य है !

तो फिर हम मानव विकास के लिये सहमत क्यूँ नहीं हो सके ?

चलो...दोस्तों !थोड़ी सी गुस्ताखी कर ले... हो सके तो माफ़ कर दो..

मां को फँसाना दस्तूर पुराना है ! सदियों से चलता आया है !

ख़ुद भूखी, प्यासी रहकर मां बच्चों को खिलाती है !

फिर भी बेटा कन्हैया... दूसरों के घर से माखन क्यूँ चुराता है ?

मेरी मैय्या...मैं नहीं माखन खाया ! मेरी मैय्या...मैंने ही.. माखन खाया !

चलो... दोस्तों ! थोड़ी सी गुस्ताखी कर ले... हो सके तो माफ़ कर दो..

दोस्तों ! बहुत से सवाल होने चाहिये ,उस पर हल निकलना भी ज़रुरी है !..

नहीं तो आने वाली पीढ़ी हमे कभी भी माफ़ नहीं करेगी यह अटल ,निश्चित है!

हमारे पुरखों ने आम के पेड़ लगाये थे, क्यूँ की मेरी संतान फल खाएंगे !

बिलकुल उसी तरह खून बहाकर आज़ादी पायी है उसका सम्मान करना क्या ज़रुरी नहीं ?

चलो... दोस्तों ! थोड़ी सी गुस्ताखी कर ले... हो सके तो माफ़ कर दो..


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