Akanksha Gupta

Abstract

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Akanksha Gupta

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मन की धुंध

मन की धुंध

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पारस ने शादी का कार्ड देखा और नीचे रख दिया। कार्ड पर भाविका का नाम देखकर उसके चेहरे पर एक अलग ही भावना उभर रही थी।उसके माता पिता शादी में जाने के लिए तैयार हो रहे थे। पारस अपने कमरे में गया और कपड़े बदलने लगा तभी उसकी मां मधु कमरे में आई। उनके हाथ मे पारस के लिए कुछ कपड़े थे।


“अरे बेटा तुम अभी तक तैयार नहीं हुए? चलों जल्दी से नहा धोकर तैयार हो जाओ, हमें देर हो रही हैं।” मधु ने कपड़े पलंग पर रखते हुए कहा।


“माँ मैं बहुत थक गया हूँ। हिम्मत नही हो रही। आप लोग चले जाइए। मैं बस आराम करूँगा।” पारस ने कपड़े बदलना जारी रखा।


मधु जी बाहर चली गई और कुछ देर बाद उसके पिता नरेंद्र के साथ अंदर आई। अपने पिता को देखकर पारस उठकर बैठ गया। नरेन्द्र उसके पास जाकर बैठ गए और मधु वही खड़ी हो गई।


“ क्या हुआ पारस? आप हमारे साथ नही आ रहे है।” नरेंद्र उसकी आंखों में देखकर बोले।


“कुछ नहीं पापा, मैं जरा सा थक गया था। ऑफिस में एम्प्लाइज की प्रॉब्लम सॉल्व करते करते वक्त कब बीत गया, पता ही नहीं चला।” कहते हुए पारस की नजरें झुक गई।


“वाकई यही वजह है या फिर आप भाविका की वजह से.....?” नरेंद्र अपनी बात पूरी नही कर पाए।


पारस के चेहरे पर गम्भीरता आ गई। उसने अपने पिता से कहा- “आप लोग तो जानते है कि मैं वहाँ क्यो नहीं जाना चाहता। मेरी समझ में यह नहीं आता कि आप लोग इतने शांत कैसे है? जो कुछ भी हुआ है क्या आप उसे भूल गए है?”


नरेंद्र जी ने पहले सांस छोड़ते हुए मधु की ओर देखा फिर पारस की तरफ देख कर बोले- “उस समय जो कुछ भी हुआ था, अब उसे बदला नहीं जा सकता है और ना ही हम बीते हुए कल की वजह से अपने रिश्तों को नकार सकते हैं। वैसे तुम्हें क्या लगता है कि अगर उस समय वह सब नही हुआ होता तो क्या हमारी फॅमिली में इस समय इतनी शान्ति होती? तुम्हें इस बारे मे सोचना चाहिए। वैसे एक बात और कहना चाहूंगा कि उस समय तुमने भी समझदारी दिखाई थी और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए थे लेकिन उसकी वास्तविक परीक्षा अब है। हमें उम्मीद है कि तुम यह पड़ाव भी पार कर लोगे। हम लोग तैयार होने जा रहे हैं। अगर तुम्हारा मन बदल जाए तो तुम भी हमारे साथ चल सकते हो।” इतना कहने के साथ ही नरेंद्र और मधु बाहर चले जाते हैं।


कुछ देर बाद जब मधु और नरेंद्र अपने कमरे से तैयार हो कर बाहर निकले तो पारस वहां पर तैयार खड़ा था। यह देखकर उसके माता पिता के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। वे तीनों कार में बैठे और मैरिज वेन्यू की ओर निकल पड़े।


पारस कार में बैठा हुआ अपने अतीत की ओर चल रहा था। उसे याद आ रहा था दो साल पहले का वह एक दिन जब उसे शादी के लिए लड़की देखने के तैयार किया जा रहा था। नरेंद्र और मधु बहुत खुश थे कि उनका बेटा शादी के राजी हो गया था। बस अब उसे लड़की पसंद आने की देर थी। वह लोग जब लड़की वालों के घर पहुंचे तो उनकी खूब आवभगत हुई। घर अच्छी तरह सजाया गया था। तरह तरह के पकवान बनाये गए थे। हर तरफ खुशियों भरा माहौल था इसी बीच जब लड़की तैयार हो कर बाहर आई तो सबकी निगाहें उस ओर घूम गई। पारस को उसे देखते ही प्यार हो गया था। लड़की का नाम भाविका था। 


एक औपचारिक बातचीत के बाद जब उन दोनों को बात करने के लिए अकेले छोड़ा गया तो दोनों के मन में एक स्वाभाविक संकोच था। पारस ने ही बातचीत शुरू की।


“जी आप को क्या-क्या पसंद है?”

“जी मुझे किताबे और संगीत पसंद है और आपको?”

“जी मुझे आप.....मेरा मतलब है मुझे क्रिकेट पसंद है।” पारस झेंप गया। इतना सुनते ही भाविका को हल्की हँसी आ गई। काफी देर तक दोनों के बीच कोई संवाद नही हुआ। फिर पारस ने ही बात आगे बढ़ाई- “क्या आप इस रिश्ते के लिए तैयार हैं, मेरा मतलब है कि आप पर कोई दबाव तो नहीं है?”


भाविका के चेहरे पर गम्भीर भाव थे। वह बोली- “आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?”


“जी नहीं, बस वैसे ही। मुझे लगा कि कही आप किसी दबाव में तो नही। रिश्ते अगर मन से अपनाये जाये तो ही लम्बे समय तक निभाये जाते हैं।”पारस ने अपनी बात खत्म की।


इससे पहले कि भाविका कुछ कहती, सभी लोग वापस आ चुके थे। मधु और नरेंद्र पारस को लेकर यह कहकर लौट आए कि वह अपना जवाब विचार विमर्श के बाद देंगे। पारस उन दोनों को पहले ही बता चुका था कि भाविका उसे पसंद है लेकिन मधु और नरेंद्र कुछ समय तक विचार विमर्श करना चाहते थे।


पारस भाविका को अपने भावी जीवन साथी के रूप मे देख रहा था कि उसके पास नरेंद्र और मधु आए। उन्होंने बताया कि उन्हें इस रिश्ते के लिए मना करना होगा क्योंकि भाविका पारस के चचेरे भाई अंशुल से प्यार करती है। अंशुल उस समय बेंगलुरु में नौकरी के लिये तैयारी कर रहा था। उसे नौकरी मिलने में अभी दो साल तक का समय था। मधु ने भाविका की फोटो अंशुल के मोबाइल में देखी थी। इतना जानने के बाद पारस खुशी से रिश्ते से इंकार कर देता है।


आज अंशुल और भाविका की शादी थी। अंशुल को पिछली घटनाओं के बारे कुछ नहीं पता था। तीनों अंशुल और भाविका की शादी में पहुंचे। पारस अंशुल को खुश देखकर चैन की सांस ले रहा था। भाविका को देखकर पारस अब नॉर्मल था। उसने जाकर अंशुल को गले लगाया और अपने परिवार में भाविका का स्वागत किया। अब उसके मन की धुंध छंट चुकी थी।



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