मिल गया साहिल मुझे...
मिल गया साहिल मुझे...


"ऐसे कब तक सागर की लहरों को देखती रहोगी शालू" माँ ने पूछा।
शालू एक ज़िंदादिल और हिम्मती लड़की थी और पापा की लाड़ली भी और मुंबई में रहती थी। उसे समुन्दर की लहरों के साथ खेलना था और सागर के बीच में जाना था। हालाँकि एक बार गंगा जी में डूबने की वजह से शालू को पानी से बहुत डर लगता था पर अपने इस डर को शालू हमेशा के लिए खत्म करना चाहती थी। उसे पता था कि डर को जीतना है तो उससे संघर्ष भी करना ही पड़ेगा और इसीलिए जब उसके दोस्तों ने गोवा जाने का प्लान बनाया तो अपने पापा को मना रही थी।
"मेरे अच्छे पापा बस तीन दिनों की बात है। मैं वापिस आ जाऊंगी। प्लीज पापा प्लीज !" शालू ने पापा के गले में बाहें डालते हुए बोला
"मेरा बच्चा जब तू छोटी थी तो तू गंगा जी में डूब गयी थी। बहुत मुश्किल से तू मिली है दोबारा। अब फिर वही डर लेकिन इससे मुझे तुझे बहार भी निकलना है। अब सब तेरी किस्मत के हाथ। ज़्यादा सागर के गहरे में नहीं जाना।" पापा ने नरमदिल हो शालू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"जी पापा ! नहीं जाउंगी किनारे ही रहूंगी। थैंक्स पापा ! लव यू " शालू ने ख़ुशी से चहकते हुए कहा
अगले दिन शालू अपनी दोस्तों के साथ गोवा के लिए निकल गयी। ४ घंटे में फ्लाइट्स से गोवा पहुँच गए। वहां उन्होंने कोलम्बो बीच के पास एक होटल में दो बेड वाला रूम लिया। अगले दिन सुबह सब घूमने निकले। ताज़ी हवा समुन्दर किनारे और समुन्दर की लहरों का शोर सब शालू बीच पर घुमते हुए देख रही थी दूर से।
"शालू आजा सागर के बीच में चलते हैं। मस्ती करेंगे !" शालू की दोस्त नेहा ने कहा
"नहीं नहीं तुझे तैरना आता है मैं नहीं जानती , तू जा। ... "शालू ने अपना डर याद करते हुए बोला
पर अगले ही पल उसने सोचा "वो यहाँ अपना डर ही तो खत्म करने आयी है और डर खत्म करने के लिए समुन्दर के बीच तो जाना पड़ेगा। पर कैसे। ..... " तभी वहां शालू को वाटर स्पोर्ट्स दिखाई दिए। बस शालू को रास्ता मिल गया समुन्दर से दोस्ती करने का। शालू ने पहले एक वाटर स्पोर्ट्स चुना और जेट-बोट में बैठ गई चालक के साथ और दूर समुन्द्र में पहुँच गयी। वहां खूब मस्ती करी नेहा और शालू ने और सुरक्षित वापस आ गयी। शालू की आँखों में चमक आ गयी।
"वाह-वाह ! शालू तू तो बिलकुल भी नहीं डरी। " नेहा ने कहा
शालू के अंदर आत्मविश्वास जगा और डर खत्म होने लगा पर अभी काम पूरा नहीं हुआ था क्यूंकि अभी उसके साथ सुरक्षाकर्मी थे इसलिए उसने सोचा क्यों न एक और वाटर स्पोर्ट्स की जाए और चुन लिया बनाना राइड को जिसमे ४-५ लोग चालक और दो सुरक्षाकर्मी के साथ बैठते हैं और चालक सागर के बीचोंबीच सरे लोगों को गिरा देता है और गिराने से पहले बताता है ताकि लोग सावधानी से सागर में उतर सकें और लहरों का मज़ा ले सकें।
शालू ने सोचा "आज नहीं तो कभी नहीं। उसने नेहा को बोला चल बनाना राडे करते हैं। "
"क्या बात है शालू ! इतनी हिम्मत कहाँ से आ गयी। " नेहा ने पुछा
"कुछ नहीं बस आज अपने डर को हमेशा के लिए खत्म करना है। " शालू ने सागर की लहरों को प्यार से निहारते हुए कहा
४-५ लोग बनाना बोट में बैठ गए दो सुरक्षाकर्मी और एक चालक भी। सबने सुरक्षा कवच जैकेट पहनी और चालक ने बोट चलाई। इंजन फट्ट्ट्ट - फट्ट्ट्ट करके बोट सररर से समुन्दर के बीच में पहुँच गयी। पर अचानक ये क्या चालक के इशारा करने से पहले ही एक मोटे आदमी का वजन ज़्यादा होने से सारे लोग एक ही तरफ झुक गए जिससे बनाना बोट पलट गयी और सब तीतर बितर हो गए। नेहा तैरना जानती थी पर शालू वो तो उठ नहीं पा रही थी। लहरें उसको अपनी तरफ पूरे ज़ोर से खींच रही थीं। शालू ऊपर आने की कोशिश करती लहरें उसे और नीचे पानी में पटक देतीं। अचानक शालू ने आनन फानन में पैर चलना शुरू कर दिया और यह क्या शालू लहरों के ऊपर आ गयी और सुरक्षा जैकेट की वजह से सागर की लहरों के बीचों बीच तैरने लगी। उसने झट एक सुरक्षा कर्मी का कालर पकड़ते हुए बोली "जल्दी सागर के साइड पे ले चलो , पर रहने दो तुम जाओ उनको बचाओ जो तैरना नहीं जानते , मैं ठीक हूँ।" शालू सागर के बीचोंबीच थी, तब तक नेहा भी आ गयी और दोनों घंटों सागर के बीच में लहरों के साथ खेलती रहीं। आज शालू ने अपने डर को खत्म करके जीत हांसिल कर ली थी। शालू का घंटो खेलने के बाद भी बाहर आने का मन नहीं हो रहा था। उसने सागर से दोस्ती जो करली थी। उसे अपना साहिल मिल गया था।
दोस्तों ! ज़िन्दगी में जिस भी चीज़ का डर हो उसका सामना करने से ही उसपर जीत हांसिल की जा सकती है। आखिर डर के आगे जीत होती है। बस चाहिए तो हिम्मत और सूझ बुझ।
आशा करती हूँ मेरी कहानी आपको पसंद आयी होगी। इस पर अपनी प्रतिक्रिया कृपया अवश्य दीजियेगा ताकि मैं आपके सामने अपने विचार और अच्छे से व्यक्त कर पाऊँ।