महिला दिवस
महिला दिवस


महिला दिवस
दीया अभी घर पहुंची ही थी कपड़े बदल कर किचन मे गयी की पति दिनेश ने आवाज़ लगायी अरे आ गयी क्या... हो गया हो तुम्हारा महिला दिवस का उत्सव समाप्त तो जरा हमें एक कप चाय मिलेगी क्या. .
दीया को गुस्सा तो आया पर क्या जवाब दे ये समझ नहीं आया.. बस चुप चाप चाय लाकर रख दी दिनेश के सामने. मन मे सोच रही थी, वैसे तो सारा समाज आज बराबरी की बात करता है पर एक दिन भीं हम महिलाये अपनी मर्जी से जी ले तो इस समाज के कुछ लोगो की छाती पर साप लौट जाता है.. जाने कब सुधरेंगे.
सिर्फ एक दिन का हल्ला करते है महिलाओ को बहुत बड़ा बताते है, उनकी पूजा करते है, उनका सम्मान करते है, तोहफ़े देते है उन्हें बड़ा विशिष्ट महसूस करवाते है और कुछ ही पलो मे फिर वही... शुरू हो जाते है अपनी घटिया सोच के साथ.. हमेशा यही लगता है क्या हम महिलाओ को सम्मान पाने या देने के लिये एक ही दिन बना है. वो भीं सिर्फ दिखावे भर के लिये..
ना जाने कितनी बेटियां अब भीं पैदा होने से पहले ही मार दी जाती है.. और जो ये नहीं कर पाते वो पैदा करके छोड़ देते है कही सड़क किनारे कचरे के डब्बे मे.. क्या किसी ने आज तक सुना कोई नवजात बच्चा लड़का कचरे के डिब्बे मे मिला.. नहीं ना... आज़ भीं ना जाने कितनी बहु बेटियां अपने सम्मान की लड़ाई रोज लड़ती है.. आज भीं बेटियों को बचपन से ही अपने हक़ के लिये लड़ना पड़ता है..
कितनी ही बेटियों को पढ़ाया नहीं जाता सिर्फ ये कह कर की क्या करेगी पढ़ लिख कर.. समाज का एक तबका जहाँ नारी सम्मान की बात करता है वही एक तबके मे अब भीं बहु बेटियों को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है.. जो इन बेड़ियों को तोड़कर बाहर निकलती भीं है उन्हें ज्यादा ही तेज है ऐसा कहा जाता है.. अब भीं लड़कियो को घर मे सिर्फ खाना बनाना, बर्तन साफ करना, झाड़ू पोछा करना यही सब सिखाया जाता है..
पैदा होते ही परायी का ठप्पा हमारे यहाँ नामकरण से पहले लग जाता है.. बचपन से ही हर बात पर टोका जाता है ये कर लो वरना ससुराल वाले क्या कहेंगे.. लड़की के पैदा होते ही माँ बाप उसकी शादी के लिये पैसे जोड़ना शुरू कर देते है..
बहुत से घरो मे मानसिकता बदली भीं है.. जहाँ आज कई बड़े बड़े नगरों मे महिलाये बाहर बराबरी से पुरुषो के साथ काम कर रही है वही घर भीं संभाल रही है.. क्युकि है तो वो आखिर महिला ही.. चाहें वो देश के प्रधानमंत्री बन जाये पर घर तो फिर भीं उसे ही संभालना होगा...
अपने मन की उधेड़ बुन मे कब दीया की चाय पूरी तरह से ठंडी हो गयी पता ही नहीं चला.. तभी दिनेश ने पीछे से आवाज़ लगायी अरे होम मिनिस्टर मेडम आज शाम के खाने मे क्या स्पेशल है.. आज तो महिला दिवस है. कुछ तो खास होना चाहिये. ऐसा करते है बाहर ही चले चलते है...
दीया कुछ बोल पाती इससे पहले ही बच्चों ने चिल्लाते हुए घर मे प्रवेश किया मम्मा मम्मा ये लो आपका तोहफा..
दीया ने खुश होकर तोहफा लिया और कहा अरे वाह, क्या लाये तुम लोग.. तोहफा देखकर वो मन की सारी बाते भूल गयी. तोहफा खोला तो उसमे एक प्यारी सी सुनहरी घड़ी थी.
साथ मे एक तस्वीर जो उसके बेटे ने बनायीं थी, जो एक सुपर वीमेन की थी.. और एक प्यारा सा मेसेज.. माँ तुम ना होती तो क्या होता.. ये जहाँ जैसा है, क्या, वैसा होता.. तुम बिन तो हमें लगे, जैसे हम जी भीं ना पाएंगे.. तुम्हारा होना ही हमारे लिये सबकुछ है, तुम्हारे बिना हमारा जहाँ कैसा होता..
बच्चों की भावनाओं को पढ़ के आँखों मे प्यार से आंसू छलक गए.. तो बेटी पीछे से गले लग कर बोली अरे मेरी सुपर वीमेन अब रोते नहीं चलो तैयार हो जाओ हमने आपके लिये एक बढ़िया सा सरप्राइज और प्लान किया है..
बस फिर क्या तैयार होने चली गयी.. पर तैयार होकर आईने मे खुद को देखा तो वाकई ये सोच रही थी... काबिल है वो. हर किरदार निभाने के लिये .. स्त्री का होना ही काफ़ी है इस संसार के लिये...