मेरी प्रथम यात्रा
मेरी प्रथम यात्रा
करीब चार-पांच साल पहले में कई यात्रा पर जा रहा था। मैं अकेला था और मैं घर से इतनी लंबी यात्रा पहली बार कर रहा था तब में मेरे सामान लेकर रवाना हो गया बस आई और उस में बैठकर चला गया मेरे को जिस जगह जाना था उस जगह की सीधी गाड़ी नहीं मिली ,तब में जयपुर उतरा तभी अचानक .....................................................एक आदमी आया जिसको मैं जानता ही नहीं और मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। मैं भी अपना सामान लिए खड़ा हो गया ।तो वह मेरे सामने गुर -गुर देखता रहा था, तभी मेरे को पूछा कहां जाओगे ।मैंने सोचा यह जानता ही नहीं मेरे को और पूछ रहा है ,फिर और पूछा "कहां जाओगे" मैंने कहा "क्यों क्या करना है ?" तीन चार बार पूछा आखिरकर मैंने बता दिया ।मेरी यात्रा वाला स्थान तब उसने गुस्से से कहा चले जाओ मेरे को क्या मतलब कहीं जाओ, तो मेरे मन में विचार आया कि पहले तो तीन-चार बार पूछा कहां जाओगे अब बोल रहा है चले जाओ। मैं खड़ा-खड़ा और उसको देखता रहा तभी एक महिला आई और उनको पूछा कहां जाओगे उसने बोला दिल्ली ,तब उसको अपनी गाड़ी में बैठा दिया। फिर मेरे मन में विचार है कि यह राजस्थानी यहां तो बस वाले भी पूछते हैं गांव का नाम, फिर में एक टेंपू पकड़कर दूसरी स्टेशन चला गया और वहां एक लंबी गाड़ी आई करीबन 500 मीटर लंबी थी वह आई तभी कुछ लोग उतरे और कुछ लोग और मैं चढ़ गया। फिर उस गाड़ी में काफी लोग थे वह छुक -छुक की आवाज कर रही थी उसमें बहुत शोर शराबा था, मैंने उस गाड़ी के अंदर किराया लेने वाला नहीं देखा तो मेरे मन में आया कि यह फ्री सुविधा ठीक है ना यात्रा के लिए और तो और ड्राइवर भी दिखाई नहीं दिया। फिर मैं अपने यात्रा स्थान स्टेशन पर पहुंचा अभी एकदम अचानक सफेद कपड़े पहने एक महिला आई और मेरे को टिकट के लिए बोली तभी मैंने सोचा यही है किराया लेने वाला 300 रुपए निकाले देने लगे तब उसने फिर टिकट मांगा मेने सोचा यह टिकट क्या होता है मेरे को पकड़ कर ले गए और एक टिकट बना कर दी और उसके 900रुपए दिये । तब मेरे को लगा अच्छा इसमें तीन गुना किराया लगता है । फिर मैं यात्रा स्थान पर पहुंचा और हंसी खुशी के साथ यात्रा पुर्ण की ओर में वापिस घर लौटा ।