रहस्यमय जल श्रोता
रहस्यमय जल श्रोता
रहस्यमय तालाब तो नहीं था लेकिन एक बहुत बड़ा धार्मिक जल श्रोता था । मैं उस जल श्रोता की बात जरुर कहना चाहूंगा । एक जल श्रोता था । जिस पर अनेक हिंदू लोग दर्शनार्थ आते थे । वह जल श्रोता चारों ओर पहाड़ और हरियाली से सुशोभित था । पक्षियों की चहचहाट से गूंजता था । गोधूलि वेला के समय तो इतना मनोरम दृश्य होता कि कहना लाजवाब है, लोग शाम को 7:00 बजते ही मंदिरों में पूजा अर्चना की घंटियों की आवाज टन –टन से हर कोई का मन हर लेता है, मैं भी उस अद्भुत दृश्य के आनंद हिस्सा बनने के लिए ,एक दिन चल पड़ा । मैं जैसे– ही उस जल श्रोता पर बने घाट पर पहुंचा तो मेरी आंखों में तारा ने समां पाया ,पंडित लोग लोगों को पूजा अर्चना करवा रहे थे लोग डुबकी लगाकर ॐ नाम की ध्वनि गूंज रही थी। ॐ नाम की ध्वनि से कुकर्म से बचाया जाता है । मैं यह दृश्य जल श्रोता के तट से देख रहा था, अचानक मेरी नजर एक वृद्ध महिला पर पड़ी । वह महिला जल श्रोता के तट पर बैठी और उसके हाथों में एक छोटा –सा कटोरा था वह उस कटोरे में पानी भरकर उसमें एक– दो मछली को डालकर उसको बाहर निकाल कर जल श्रोता के घाट पर बने मंदिर पर ले जाती और थोड़ी देर में वापस लाकर उन्हें कटोरा में दाना डाल देती फिर उनको छोड़ देती , पुन : दूसरी मछलियां पकड़ती और मंदिर के अंदर ले जाती वापस छोड़ देती । यह सिलसिला काफी देर तक चलता रहा मेरे से रहा नहीं गया और मैं माता जी के पास पहुंच गया तो मैंने माताजी को प्रणाम किया माताजी , खुशी से कहा –"चिरंजीवी भवे "
मैंने माताजी से पूछा "आपको मैं है कहीं देर से देख रहा हूं कि मछलियां पकड़ते हो और मंदिर के अंदर ले जाते हो दाना डालकर फिर छोड़ देते हो ?"
माताजी ने सहज भाव से कहा – "बेटा !तुम यह देख रहे हो इस दृश्य में सब भाग्यशाली है, इस जल श्रोता का सब आनंद ले रहा है लेकिन यह बेचारी मछलियां इस जल श्रोता के सिवाय अनभिज्ञ है मछुवारा आयेगा और डालकर ले जाएगा ,फिर मर जायेगी मैं जिस मंदिर की सेवा करती हूं , वह मंदिर वरुण भगवान का है और वरुण भगवान की सवारी मछली थी तो मैंने सोचा क्यों ना उन्हें भी अपने देव का दर्शन कर दूं ताकि इनको मोक्ष की प्राप्ति हो सके। इसी मकसद से यह सब पिछले 30 साल से यही कर रही हूं।"
मैं माताजी का उत्तर जानकर स्तब्ध हूं।
कहते हैं ना कि भगवान से भी मिलवाने के लिए राजदूत की आवश्यकता होती है और वह राजदूत मिल जाए तो धन्य हो जाते हैं, विभीषण को भी भगवान राम से मिलवाने के लिए हनुमान जी राजदूत बनकर मिलवाए विभीषण राम से मिलकर धन्य हो गया।
