मेरी बिटिया की शादी
मेरी बिटिया की शादी


ये लड़कियां तो मांओं की रानियां हैं, मीठी-मीठी, प्यारी-प्यारी ये कहानियां हैं; मेरी बन्नो की आएगी बारात,के ढोल बजाओ जी... सुहाग के इन्हीं गीतों को गाते-गुनगुनाते हुए सारा दिन निकल जाता। वक्त तो जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था।ऐसा लग रहा था, अभी तो बिटिया का जन्म हुआ था, अभी तो गोदी में खेल रही थी, अभी तो उंगली पकड़कर चलना सीख रही थी और देखते ही देखते इतनी बड़ी हो गई। बेटी का बचपन और किशोरावस्था जाने कब निकल गई। हर माता-पिता की तरह, कब अपनी लाडली के विवाह की सोच, दिलो-दिमाग पर छा गई, पता ही नहीं चला। इससे पहले कि हम अपनी बन्नो के लिए एक सजीला बन्ना ढूंढने निकलते, हमारी गुड़िया ने एक सुंदर और सुयोग्य वर अपने आप ही ढूंढ लिया।
बच्चों के छुटपन से ही हर मां- बाप उनके विवाह का सपना संजोने लगते हैं। हम भी कहां इस सुनहरे स्वप्न से अछूते थे। हमारे अहोभाग्य से बिटिया के विवाह का शुभ दिन भी आ ही गया। हमारे साथ-साथ समस्त परिवार-जनों, रिश्तेदारों व मित्रों के अथक प्रयास ने इस जश्न में चार चांद लगा दिए। खूब रंग बरसाया।
बहुत धूमधाम, गहमा-गहमी हुई। पूरा घर-आंगन सजाया। विवाह के कितने ही लोकगीत, मेहंदी-हल्दी के ढेर सारे सुहाग, गाते- बजाते हुए, दादी-नानी, मां-बुआ, ताई-चाची, मौसी-मामी, भाभी-बहनों और सहेलियों के साथ, जिंदगी के सबसे खूबसूरत पलों का, सब ने जी भर के आनंद उठाया। हर तरफ जैसे इंद्रधनुषी रंग बिखरे हुए थे। नये-नये कपड़ों में जैसे हर किसी की सुंदर, और सुंदर, सबसे सुंदर दिखने की होड़ सी लगी हुई थी।
ईश्वर के बनाए सभी रंग चारों तरफ नजर आते थे। हर चेहरे पर हंसी-मुस्कान, उल्लास का तो जैसे अंबार लगा हो। कहीं संगीत की रौनक, तो कहीं बारात की मेहमान-नवाजी की तैयारी, कहीं सजावट की चहल पहल, तो कहीं महाराज के खाने की महक। जिधर नजर डालें जश्न ही जश्न। ये समां ही कुछ और था, ये रंग ही कुछ और था,ये नजारा ही कुछ अलग था। ह्रदय के तार तो जैसे बिन वीना के बज रहे थे। मन का मृदंग नए-नए गीत सुना रहा था। ऐसा दिल कर रहा था, काश! ये वक्त बस यहीं थम जाए और यूं ही महफिलों के दौर चलते रहें। हंसी के प्याले यूं ही सराबोर रहें। ढोलक की थाप कभी ना रुके, पायलों और झांझरों की रुनझुन बस यूं ही बजती रहे। मेहंदियां हाथों और पैरों पर यूं ही सजती रहें। घर-परिवार, दोस्त-रिश्तेदार सब मस्ती में यूं ही झूमते-गाते रहें, व्यंजनों की खुशबूएं यूं ही मन को लुभाती रहें।
हे मालिक ! इतनी दया,वक्त की इतनी मेहरबानी, हे अन्नपूर्णा मां! इतनी मेहर कि हमारी तो झोलियां ही भर गई। हमारी खुशनसीबी से चंदा-सितारों सी चमक लिए, हमारी गुड़िया की बारात आई। बारातियों का स्वागत हुआ। जीजा-सालियों की नोकझोंक, मान-मनुहार चली, द्वारचार हुआ, मिनती हुई। सबने जमाई राजा और बारातियों का स्वागत किया। बिटिया सोलह सिंगार कर, दुल्हन बन, जब ठुमकती हुई आई तो सच में ऐसा लगा, जैसे तारों में सज के अपने सूरज से धरती मिलने चली हो। जान से प्यारे, भाई-बहनों और दोस्तों ने हर्षोल्लास और नगाड़ों के बीच जयमाला की रस्म करवाई।
और फिर फेरों का समय भी आ गया। राजे-रजवाड़ों सी शान लिए, दूल्हे राजा ने बिटिया की मांग भरी और मंगलसूत्र पहनाया। और फिर वर-वधू ग्रहण संपन्न हुआ। इसी तरह विवाह की अन्य रस्में -छंद सुनाई, धान बुवाई आदि करते-करते विदाई का नाजुक पल भी आ ही गया। हमारे दिलों पर और हमारे घर-आंगन में, अपनी ढेरों निशानियां हंसती-गाती, मुस्कुराती छोड़कर, बिटिया विदा होकर चली गई। ऐसा लगा पूरे घर भर में उसकी स्मृतियां बिखरी हुई हों। हर माता-पिता के लिए यह पल जीवन में अनूठे अनुभव और सुख के होते हैं। एक तरफ बिटिया से बिछड़ने की टीस होती है और दूसरी तरफ उसकी खुशी से मन फूला नहीं समाता।
हमारी चंदा, हमारी सूरज, हमारी जान से प्यारी-दुलारी बिटिया ने, सभी के प्यार और आशीर्वाद से अपने नए वैवाहिक जीवन की ओर कदम बढ़ाया। यह देखकर हमारा हृदय भी बहुत हर्षाया। आनंद-उल्लास में झूमते, नाचते-गाते सभी बारातियों-घरातियों ने विवाह का यह शुभ पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ संपन्न करवाया और भारतीय हिंदू समाज के नियमों का पालन करके हमें भी एक परिपूर्णता का एहसास हुआ। सच में, अपने बच्चे की शादी करके जो असीम आनंद की प्राप्ति होती है वह अतुलनीय है, अद्भुत है, अद्वितीय है।
नदी किनारे डोली रख दो कहारों
बहे पुरवा बयार कि बेटी चली ससुराल।