Saroj Prajapati

Abstract

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Saroj Prajapati

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मेरे प्यारे भाई

मेरे प्यारे भाई

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कल रक्षाबंधन है लेकिन रागिनी का मन उदास था। तभी उसकी मम्मी का फोन आया फोन उठाते ही

रागिनी ने पूछा

"कैसी हो मम्मी ! आप ठीक हो ना!"

"हां बेटा ठीक ही हूं और ठीक रहना ही पड़ेगा अब!"

"मम्मी ऐसे मत कहो ।मुझे रोना आ जाएगा।"

"अरे नहीं पगली, ऐसी कोई बात नहीं ।यहां सब मेरा बहुत ध्यान रख रहे हैं और सुन मैंने इसलिए फोन किया था कि कल जब तक मैं तेरी नानी के घर से ना आऊं तू जाना मत। हर साल बहुत हड़बड़ी में रहती है तू। इस साल थोड़ा तसल्ली से आना समझ रही है ना। पहले तो तेरे पापा होते थे। इस बार तो मुझे ही उनकी जिम्मेदारी संभालनी हैं। कहते हुए रागिनी की मम्मी भावुक हो गई।

उनकी आवाज का भारीपन से रागिनी की आंखें भी भर आई लेकिन किसी तरह अपने को संभालते हुए बोली

" हां हां मम्मी, मैं आपका इंतजार करूंगी। " थोड़ी बहुत बातचीत के बाद रागिनी ने फोन रख दिया।

फोन रखते ही वह रो पड़ी। रोए भी क्यों ना! उसके पापा को गुजरे अभी तीन महीने ही तो हुए थे। उनके जाने के बाद पहला त्यौहार था ये। उनके अचानक से जाने के बाद ,मम्मी कैसे टूट गई थी। ऐसा नहीं कि भाई भाभी उनका ध्यान नहीं रखते लेकिन जीवनसाथी के जाने से जो जीवन में सूनापन आता है, उसको शायद ही कोई भर पाएं।

भाई भाभी ने जब नानी को यह बात बताई तो मम्मी को कुछ दिनों के लिए वह अपने साथ ले गई क्योंकि गांव में बहुत भरा पूरा परिवार था उनका। कुछ दिन वहां रहने से शायद मम्मी का जी हल्का हो जाए, नानी का यही सोचना था। एक मां ही तो होती है, जिससे बेटी अपने दिल के हर सुख दुख खुल कर बतला पाती है।

रागिनी के दो छोटे भाई थ है और दोनों की ही शादी हो चुकी थी। रागिनी की शादी को भी 10 साल हो गए थे। बेशक से भाइयों की शादी हो चुकी थी और बच्चे भी थे लेकिन दोनो में जिम्मेदारी व समझदारी जैसी दोनों में कोई बात ना थी। पापा ने हर जिम्मेदारी अपने ऊपर जो ली हुई थी। हमेशा कहते थे

"अरे जब तक मैं हूं, चिंता क्यों करनी । तुम अपना जीवन जियो।"

इसलिए बाल बच्चेदार होने के बाद भी दोनों में बचपना ही था। रागिनी की दोनों भाभियों भी बहुत अच्छी थीं।

रागिनी सुबह 10:00 बजे अपने मायके पहुंच गई क्योंकि दोपहर के बाद उसकी नंनदो को भी आना था। घर में घुसते ही पापा का खाली कमरा देख रागिनी की आंखें भर आई। उसकी भाभी ने उसको संभाला और प्यार से बिठाया। रागिनी देख रही थी कि हमेशा मस्तमगन रहने वाले उसके भाई, पापा के जाने के बाद एकदम से सिर पर आई जिम्मेदारियों नहीं उन्हें कैसे समझदार बना दिया था। दोनों भाई भाभियों का मकसद एक ही था की रागिनी को पापा मम्मी की कमी महसूस ना हो।

रागिनी ने अपने भाइयों व भाभियों को राखी बांधी और गिफ्ट दिए। उन्हें देखकर दोनों ही भाई बोले

"दीदी इतना खर्चा क्यों किया आपने!"

कल तक उससे अपने गिफ्ट के लिए, बच्चों की तरह उससे लड़ने वाले उसके भाई अपना बचपना छोड़, कैसे समझदार हो गए थे।

रागिनी कुछ नहीं बोली बस मुस्कुरा भर दी। फिर दोनों भाइयों ने बहुत प्रेम से रागिनी को खाना खिलाया और उसके बाद दोनों ने उसे शगुन दिया।

रागिनी के दोनों भाई बोले "दीदी, पापा की कमी तो हम पूरी नहीं कर सकते लेकिन आपको इतना विश्वास दिलाते हैं कि आपको कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे।"

"हां दीदी, यह घर आपका है। अगर हमसे कोई भी गलती हो या आपको हमारी कोई बात बुरी लगे तो आपको हमें डांटने का पूरा हक है।"

कहते हुए उसके भाई भाभी भावुक हो गए। रागिनी भी कहां अपने आंसुओं को रोक पाई ।

रागिनी के पति ने समय देखते हुए‌ उससे कहा "रागिनी टाइम ज्यादा हो चुका है और मम्मी अभी तक नहीं आई। तुम्हें पता है ना आज के दिन ट्रैफिक कितना मिलता है। हमारे घर पहुंचने से पहले अगर दीदी आ गई तो अच्छा नहीं लगेगा।"

"हां ,कह तो आप सही रहे हो। मैं अभी मम्मी से फोन करके पूछती हूं। वो कहां तक पहुंची।"

रागिनी ने अपनी मम्मी से बात की तो वह बोली "बेटा तुझे पता है ना परिवार बडा होने के कारण राखी बांधने में समय लग ही जाता है। बस अभी निकलने वाली हूं, तू थोड़ा रुक जा।"

"नहीं मम्मी, अगर अब रुक गई तो देर हो जाएगी। अच्छा लगेगा कि मेरी ननंद वहां पर आए और मैं उन्हें ना मिलूं!"

"कह तो तू ठीक रही है लेकिन मेरा मन नहीं मानता। ऐसा पहली बार है। ना तेरे पापा है और ना ही मैं। उन दोनों का तो तुझे पता ही है ना कितने नासमझ हैं। पता नहीं तुझे विदा भी ढंग से किया होगा या नहीं।"

सुनकर रागिनी बोली " मम्मी आप बेफिक्र रहो मेरे भाई अब बड़े हो गए हैं। आज अपने भाई भाभियों का प्रेम व स्नेह देख मैं निश्चित हो गई हूं की मेरा मायका हमेशा मेरे लिए यूं ही सदा बना रहेगा। आज मेरे भाइयों ने जिम्मेदारी उठाने सीख ली है इसलिए आप निश्चिंत रहें और आराम से आओ। मैं 2 दिन बाद आकर आपसे अच्छे से मिलूंगी और जी भर बातें करूंगी।"

कहकर रागिनी ने फोन रख दिया।

रागिनी की समझदारी भरी बातें सुन सबकी आंखें भर आई। साथ ही चेहरे पर मुस्कान ही तैर गई।

उसके पापा की तरह , दोनों भाइयों ने स्नेह से उसके सिर पर हाथ रखा और भाभियों ने गले लगा, घर के बाहर दरवाजे तक आ उसे विदा किया।"


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