हमसफ़र
हमसफ़र


"बस छुट्टी के दिन तुम्हें अखबार पढ़ने और तुम्हारे बच्चों को अपने कंप्यूटर मोबाइल से फुर्सत नहीं!" रजनी नाराज होते हुए बोली।
"श्रीमती जी, किसने कहा था आपको यह सफाई अभियान का मोर्चा अकेला संभालने के लिए!! अरे अभी दीवाली के कई दिन पड़े हैं। हो जाएगी सफाई ।
और वैसे भी रह कितनी गई है लेकिन तुम ना खुद चैन से बैठती हो। ना दूसरों को चैन से बैठने देती हो!"
"पता है मुझे! कितनी सफाई कराओगे, तुम और तुम्हारे बच्चे। करना मुझे अकेले ही हैं। अब करूं या बाद में!" रजनी लगभग चिल्लाते हुए बोली।
"अच्छा यह बताओ! लंच में क्या अच्छा सा बना रही हो!" पतिदेव ने पूछा।
इस प्रश्न ने गुस्से की आग में घी का काम किया।
" कुछ तो शर्म करो। सुबह से काम कर कर के मरे जा रही हूं और तुम्हें कुछ अच्छा खाने की पड़ी है।
पुलाव बनाया है खा लेना।" कहते हुए वह अपने कमरे में जाकर लेट गई।
उनका यह रूप देख बच्चों व पतिदेव ने चुप रहने में ही भलाई समझी।
"प्रिया, जाओ बेटा चाय बना लो । तब तक मम्मी भी उठ जाएगी।"
"उठो श्रीमती जी! कितना आराम करोगी। चलो चाय पी लो।" पतिदेव ने प्यार से उनके सिर पर हाथ रखते हुए कहा।
"अरे! तुम्हारा माथा तो भट्टी की तरफ तप रहा है। हे भगवान! तुम्हें तो तेज बुखार है "
"राहुल जल्दी से पेरासिटामोल लेकर आओ।"
"क्या यार! इतने बुखार में थी। एक बार बता तो देती। हमने तो सोचा, तुम थक कर आराम कर रही हो इसलिए डिस्टर्ब नहीं किया।" पतिदेव चिंतित होते हुए बोला। उन्होंने चाय के साथ कुछ बिस्किट जबरदस्ती श्रीमती जी को खिलाए और फिर दवाई दी।
दवाई के असर से 1 घंटे बाद बुखार उतर गया। रजनी जैसे ही बिस्तर से उठने लगी
"कहां चली तुम!! "
"अब मुझे आराम है । रात के खाने की तैयारी करूं।"
"सब हो जाएगा। तुम आराम करो। पता नहीं क्यों अकेले सारे घर का बोझ अपने ऊपर लेने की सोचती हो।
हम मिलकर कर लेंगे।"
"लेकिन तुम खाना!!"
" हो जाएगा। बस तुम आराम करो।"
तीनों ने मिलजुल कर रात का खाना बनाया।
अगले दिन करवा चौथ था लेकिन रजनी का सर दर्द और बुखार जस का तस।
"देखा! मैंने कहा था ना कि डॉक्टर के पास चलो। तुम मानी ही नहीं। अच्छा आज व्रत रखने की कोई जरूरत नहीं!!"
"कैसी बात कर रही हो आप!! मैं व्रत जरूर रखूंगी!!
"जब तबीयत सही नहीं तो क्या जरूरत है।
मेरी लंबी उम्र के लिए कर रही हो और तुम्हें कुछ हो गया तो!!"
"कुछ नहीं होगा मुझे!! और व्रत तो मैं जरूर रखूंगी।" रजनी जिद करते हुए बोली।
" अच्छा ठीक है व्रत रख लो लेकिन चाय और कुछ फल ले लो जिससे कि तुम दवाई ले सको।"
"नहीं, मैं पूजा किए बिना कुछ नहीं खाऊंगी!!! और प्लीज आप जिद मत करो।" रजनी एक तरह से मनुहार करते हुए बोली।
दोपहर होते-होते रजनी का बुखार कम होने की बजाय बढ़ने लगा। यह देख मुकुल और चिंतित हो गया।
" प्लीज यार समझो। अच्छा एक फल तो खा ही सकती हो। अब तो तुमने पूजा भी कर ली।"
वह रजनी का हाथ अपने हाथों में लेते हुए प्यार से मनुहार करते हुए बोला।
अपने हमसफर की अपने प्रति ऐसी चिंता व प्रेम देख रजनी के तपते तन मन को एक सुखद अनुभूति व ठंडक का एहसास हो रहा था।
वह उनके हाथों पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए बोली "सुनो, कुछ नहीं होगा मुझे । हमसफर हूं आपकी। बीच सफर में छोड़कर नहीं जाऊंगी। वादा है! मरते दम तक साथ निभाऊंगी।" कहते हुए रजनी का बीमारी से निस्तेज चेहरा चमक उठा।
अपने प्रति अपनी जीवन संगिनी का ऐसा प्रेम देख मुकुल का दिल भर आया। वह बाहर खिड़की से आकाश की ओर निहारने लगा। मानो चांद से आज जल्दी निकलने की गुहार कर रहा हो।