हमारा क्या कसूर
हमारा क्या कसूर


स्कूल में जैसे ही बच्चों को कॉपियां बांटने का नया सर्कुलर आया। मैंने ठान लिया था कि जब बच्चे कॉपी लेने आएंगे तो उन्हें अच्छे से डांट लगानी है। कोरोना की वजह से एक तो वैसे ही स्कूल बंद। दूसरा उन्हें व्हाट्सएप पर जो काम दे रही हूं, वह भी वह नहीं कर रहे। दिमाग घूम रहा था कि स्कूल आते हुए वह अच्छे से नहीं पढ़ते थे, अब इतने महीनों घर पर रहकर तो लगता है क ख ग भी भूल गए होंगे।
सरकार कहती है, ऑनलाइन क्लास लो। व्हाट्सएप पर काम दो। हम तो दे दे लेकिन कोई करे तब ना!
खैर, अगले दिन जैसे ही स्कूल पहुंची, कॉपी लेने के लिए मेरी क्लास के 2 - 3 मेधावी बच्चे आए हुए थे। उन्हें देखते ही मेरा गुस्सा और उबाल खा गया।
उन्हें डांटते हुए मैं बोली "जो काम व्हाट्सएप पर देती हूं, करते क्यों नहीं! पढ़ने का बिल्कुल मन नहीं करता तुम लोगों का तो फिर यह कॉपियां लेने क्यों आए हो! इनका क्या करोगे"
यह सुनकर बच्चे चुप हो गए
मैंने फिर उन्हें डांट
लगाई "बोलते क्यों नहीं!"
"मैडम मम्मी पापा फोन नहीं देते। कहते हैं फोन में डलवाने के लिए इतना पैसा हमारे पास नहीं है। तुम बार-बार फोन से काम करोगे तो सारा डाटा खत्म हो जाएगा। वैसे भी इस बीमारी ने सारा काम धंधा चौपट कर दिया है। अब आप ही बताओ, जब वह को नहीं देंगे तुम हम काम कैसे करेंगे। इसमें हमारा तो कोई कसूर नहीं!
पढ़ना तो हम चाहते हैं, पढ़ भी रहे हैं। जब स्कूल खुलेंगे तो आपको काम दिखा देंगे लेकिन व्हाट्सएप पर आप का दिया हुआ काम हम नहीं कर सकते।"
उनकी बात सुन मैं चुप हो गई। कहती भी क्या! कह तो वह सही रहे थे ना। सब के माता पिता दिहाड़ी मजदूर है। जिनके लिए काम की समस्या खड़ी हो गई हो, वह फोन में डलवाने के लिए इतना पैसा कहां से लाएंगे!
फिर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा "अच्छा किताबों को अच्छे से पढ़ना और उन्हीं में सब कुछ छिपा हुआ है। गणित के पहाड़े व सवालों की प्रैक्टिस करना और अगर कुछ समझ ना आए तो मुझसे फोन पर पूछ लेना।