मिल गईं मंजिल हमें
मिल गईं मंजिल हमें


"बेटा, कब तक यूं मुसाफिरों की तरह भटकता रहेगा! मैं अब भी कहती हूं लौट आ ! सब कुछ तो है, फिर क्यों मारा मारा फिरता है! अगर पता होता तू बाहर जाकर बाहर का ही होकर रह जाएगा तो तुझे नौकरी क्या पढ़ने के लिए भी ना भेजती! तरस गई हूं तुझसे जी भर बातें करने के लिए! मुझे तो लगता है, यह तेरे लिए घर नहीं मुसाफिरखाना है। जहां कुछ दिन आराम कर तू फिर लौट जाता है!"
" मां प्लीज! ऐसी बातें मत करो। जितना प्यार आप मुझसे करती हो। मुझे भी आपसे उतना ही प्यार है। मुझे भी आप दोनों की बहुत फिक्र लगी रहती है लेकिन क्या करूं!!"
" फिक्र होती तो यूं बुढ़ापे में हमें अकेला ना छोड़ता। अरे अच्छी खासी पेंशन आती है हम दोनों की। किस चीज की कमी है यहां। फिर क्या जरूरत है ,अकेले दूसरे शहरों में रहकर नौकरी करने की!"
" आप नहीं समझोगी!!"
" हां बेटा! तू अब बड़ा हो गया है! ज्यादा पढ़ लिख अफसर बन गया है। भला तेरी बातें ये मास्टरनी कैसे समझ सकती है! ठीक है! जैसा तुझे अच्छा लगे, वैसा कर!" कहते हुए सुषमाजी अपने आंसुओं को पोंछते हुए उठकर चली गई।
" पापा, आप ही समझाइए ना मम्मी को। मैं, उनका दिल नहीं दुखाना चाहता था लेकिन मेरी भी तो कुछ मजबूरी है!"
" बेटा, तेरी मजबूरी हम दोनों की मजबूरी से बड़ी नहीं हो सकती। तुझे पता है हम दोनों उम्र के उस पड़ाव पर है जब ना जाने किसकी आंख बंद हो जाए। तुझसे क्या ज्यादा मांग रही है वो। बस यही ना कि तू हमारे साथ रहे! हमने तुझे कभी किसी काम के लिए नहीं रोका! मुंह से निकलते ही तेरी हर इच्छा पूरी की। हम स्वार्थी नहीं बेटा। बस इतना चाहते हैं कि उम्र के आखिरी दौर में तुम हमारे साथ रहो!"
" पापा, मैं भी चाहता हूं लेकिन क्या करूं चाहकर भी!!"
" बेटा, एक लड़की ने तुझे धोखा दिया तो इसका मतलब यह तो नहीं कि सभी ऐसी ही होंगी!! अपने इर्द गिर्द जो तुमने दीवार खड़ी कर ली है। उससे बाहर निकलो। देखो, दुनिया बहुत खूबसूरत है। यहां बुरे से ज्यादा अच्छे इंसान है। बस नजर चाहिए।"
" मैं, समझ रहा हूं पापा और मैं कोशिश करूंगा कि जल्द से जल्द उस दुख को भुलाकर आप लोगों के पास लौट आऊं।"
अपनी सप्ताह भर की छुट्टियां खत्म कर राहुल फिर से लौट गया। वह बेंगलुरु में नौकरी करता था।
ऑफिस पहुंचते ही उसकी असिस्टेंट दीपा ने मुस्कुराते हुए उसका स्वागत किया।
"कैसी छुट्टियां रही सर! अंकल आंटी कैसे हैं!"
"हां, छुट्टियां मजेदार रही। मम्मी पापा दोनों ठीक है लेकिन हर बार की तरह उनकी एक ही रट, वापस लौट आओ!"
"हां,सही तो कहते हैं आपके मम्मी पापा! हर मां बाप इस उम्र में अपने बच्चों को सामने देखना चाहते हैं! यही तो समय है, जब उन्हें हमारी जरूरत है। कितना कुछ करते हैं उम्र भर वह हमारे लिए और हम इतने स्वार्थी हो जाते हैं कि उनकी यह छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर पाते!"
" अब तुम भी मेरे मम्मी पापा की भाषा बोलने लगी। अच्छा चलो, मैं नहीं जा सकता। वह तो आ सकते हैं ना यहां पर!"
" सर, आप फिर से स्वार्थी हो रहे हैं! आपको नहीं मालूम बुजुर्गों को अपनी जड़ों से कितना प्रेम होता है और वैसे भी बड़े बूढ़े कहते हैं कि जिस तरह से पेड़ अपनी जड़ों से कटकर ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रह सकता। उसी तरह से बुजुर्ग होते हैं!"
" तुम तो छोटी सी उमर में बड़ी-बड़ी बातें करती हो। वैसे दीपा, तुम्हारी इतनी अच्छी क्वालिफिकेशन है और नौकरी का भी इतने सालों का एक्सपीरियंस है तो तुम प्रमोशन क्यों नहीं लेती!"
" सर, मुझे ऐसी तरक्की नहीं चाहिए। जो मुझे अपने माता-पिता से दूर करें ! आप तो जानते हो ना उनकी हालत!"
" तो क्या तुम सारी उम्र शादी नहीं करोगी!"
" नहीं सर, शादी जरूर करूंगी। मेरे मम्मी पापा का तो सपना है कि वह अपने जीते जी मेरी शादी देखें लेकिन जो मुझे मेरे मम्मी पापा के साथ स्वीकार करेगा। वही मेरा जीवनसाथी होगा!"
" वह तो ठीक है दीपा ! लेकिन मैंने देखा है अक्सर लड़कियां जितना मान सम्मान अपने माता-पिता का करती हैं, उतना अपने पति के माता-पिता का नहीं। उनको तो वह बोझ समझती है!"
" सर, सभी लड़कियां ऐसी नहीं होती। ऐसा होता तो परिवार ही ना बनते! अपवाद हर जगह होते हैं ! यह तो आपके संस्कार होते हैं । जो आगे जाकर दिखते हैं! मेरे लिए तो जैसे मेरे माता पिता, वैसे ही मेरे सास ससुर होंगे!"
उसकी बात सुन राहुल कुछ देर तक गहरी सोच में डूब गया।
"सर, किस सोच में डूब गए आप!"
" दीपा, अगर आज से मैं तुम्हारे मम्मी पापा की जिम्मेदारी ले लूं और तुम मेरे मम्मी पापा की जिम्मेदारी ले लो तो कैसा रहेगा!"
" मैं समझी नहीं सर!"
" दीपा, मैं बहुत दिनों से तुम्हारे साथ काम कर रहा हूं और हमेशा ही तुम्हारी बातें व विचार मुझे निशब्द करते रहे हैं! कई बार तुमसे अपने दिल की बात कहनी चाही लेकिन कभी तुम मना ना कर दो इस डर से कह ना सका। किंतु आज भी मैंने अपने मन की बात ना कहीं तो देर हो जाएगी!
दीपा,थक गया हूं । मैं मुसाफिरों की तरफ भटकते हुए! अब मैं भी वापस अपने ठिकाने लौटना चाहता हूं। लेकिन अकेला नहीं तुम्हारे साथ!दीपा, क्या तुम मेरी जीवनसंगिनी बनना पसंद करोगी! मैं, तुमसे वादा करता हूं कि तुम्हारी हर जिम्मेदारी को मैं अपना समझ निभाऊंगा। बस तुम हां कह दो।" राहुल उसकी आंखों में झांक प्रणय निवेदन करते हुए बोला।
दीपा ने राहुल की बात सुन मुस्कुराते हुए नजरें नीची कर उसके फैसले को मौन स्वीकृति दे दी।
आज दो भटकते मुसाफिरों को मंजिल मिल गई थी।