मेरे हमसफर
मेरे हमसफर
मेरे पति को कम बोलने की आदत थी। मैं भी शादी के बाद कम और धीरे बोलने लगी।
सर्दी का मौसम था, मेरी पति से किसी बात पर अनबन हो गई, दो दिन तक हम दोनों ने एक दूसरे से बात नहीं की। अचानक ही हमारे शहर में राम बन्धु आये *रामकथा* वाचन के लिए। सुबह-सुबह 6 बजे जाना होता था। मेरी सास के भाई थे उनके घर पर ठहरे थे राम बन्धु के दो भाईजी।
मुझे भी लेकर जाने लगी अपने साथ मेरी सास।
हम दोनों सास बहू सुबह जल्दी उठते नहा कर 5 बजे तक निकल जाते थे। शायद 4-5 दिन का प्रोग्राम था। मैं अपने पति से बात नहीं कर रही थी, वो मुझसे नाराज थे कि मैं रोज क्यों जा रही हूँ। मेरी सास को कुछ पता नहीं था हमारी आपसी लड़ाई का। इनको गुस्सा आ रहा था मुझ पर।
तीसरे दिन मेरे पति से बोलें बिना रहा नहीं गया और अपनी माँ के सामने ही बोले जोर से " घर के देवता तो पूजे नहीं जाते हैं बाहर के देवता पूजने चल दिये। "
हमारी सास बहुत समझदार थी जब सास ने सुना कि मेरा बेटा क्या बोल रहा है, वो सब समझ गईं। रास्ते में हम गाड़ी में जा रहे थे तो धीरे से मुझसे बोली कि क्यों सरोज विजय से बात नहीं कर रही है। आज क्या कह रहा था। बस में समझ गई कि माँ का इशारा किधर है। फिर मैंने रात को इनसे बात की ।
और हम दोनों ने आपस में बात की और सुलह हो गई। फिर तो मेरे पतिदेव भी हमारे साथ जाने लगे ।
आज भी ये वाकया जहन में आ जाता है और चेहरे एक अजीब सी मुस्कराहट फैल जाती है। ये मेरा संस्मरण पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

