रंग
रंग
रानी माता पिता की अकेली संतान थी बड़े लाड़ प्यार से पाला था उन्होंने अपनी बेटी को। अच्छी तालीम भी दी। वह एक स्कूल में टीचर बन गई।
लाड़ली होने के कारण उसकी हर इच्छा पूरी होती थी। रानी को रंगों से बेहद प्यार था। रंग बिरंगे कपड़े पहनती थी। उसे रंगों से खेलने का अंदाज ही कुछ और था।। रंग उसके ऊपर जचता था,देखने में भी बहुत सुन्दर थी रानी। अकेली ही घर में धमा -चौकड़ी मचाये रहती थी।पापा आफिस से आने पर पहले अपनी बेटी से मिलते थे। रानी भी अपने माता पिता को बहुत प्यार करती थी।
पापा बैंक में बड़े आफीसर थे,बड़ा बंगला था,आगे गार्डन भी था जिसे रानी ने बड़े चाव से तरह तरह के रंगों के फूलों से गुलजार कर रखा था। रोज सुबह उठकर पहले अपने फूलों की तीमारदारी करती थी। इससे रानी को बहुत सुकून महसूस होता था। रंग-बिरंगे फूलों को अपने माँ-पापा को भी दिखाती थी। हर रंग के फूल महकते थे उसके बगीचे में।
होली आई तो उसके पापा ने टेसू के फूलों का रंग बनाया उसके खेलने के लिए। और उसी रंग से खेलती थी रानी होली, सभी सखियों को बुलाकर सबको रंग बिरंगे गुलाल लगाती सभी को। वो सबसे कहती फिरती रंगों के बिना भी क्या जीवन है,जीवन में रंग हैं तो सब कुछ हैं।
फिर रानी के लिए रिश्ते आने लगे और उसके पापा को एक लड़का पसंद आया जो इन्जीनियर था अच्छी जाब थी और देखने में भी बहुत सुन्दर था परिवार में एक बहन थी जिसकी शादी हो गईं थीं। माँ-बाप थे। रानी को भी अच्छा लगा और वो भी तैयार हो गई। और चटके मंगनी,पट ब्याह हो गया। बहुत धूम धाम से शादी की गई शादी होकर रानी ससुराल आ गई,उसकी नौकरी छुड़वा दी। सास ने रानी को बोला आराम से लाइफ जियो,तुम्हे बाहर काम करने की जरूरत नहीं है। रानी सबके साथ मिलकर हंसी-खुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगी। घर में नौकर चाकर थे,काम की कोई चिंता नहीं थी फिर रानी अपने सास -ससुर का पूरा ध्यान रखती थी
रानी का पति राजेश रानी को लेकर कश्मीर की वादियों में हनीमून के लिए चले गये। फूलों की वादियों, हसीन शिकारो की सैर रंग बिरंगे फूलों को देखकर रानी बहुत खुश हुई। आठ दिन का समय गुजरने के बाद वापस लौट आये दोनों।
राजेश अपने काम में व्यस्त हो गये,जीवन की नैया अच्छे से गुजरने लगी। फिर रानी को एक लड़का हुआ,सब घर में बहुत खुश थे। दादा दादी तो अपने पोते को देखकर निहाल हो गये थे। राजेश कभी-कभी अपने आफिस के काम से शहर से बाहर भी जाते थे।
एक बार राजेश फ्लाइट से मद्रास गये चार दिन के लिए। वहां से फोन पर बात करते थे सबसे रोज। चार दिन बाद फ्लाइट से वापस आ रहे थे,अचानक ही फ्लाइट में कुछ तकनीकी खराबी आने कारण जहाज डांवाडोल होने लगा पायलट ने ठीक करने की कोशिश भी की पर धीरे-धीरे सम्पर्क टूट गया,करीब सत्तर यात्री थे प्लेन में सभी को चिंता होने लगी घबराहट से सबको पसीना छूटने लगा। बहुत कोशिश के बावजूद भी पायलट प्लेन को बचा नहीं सका और पास ही एक गाँव क ऊपर प्लेन क्रेश हो गया। देखते ही देखते प्लेन से लपटे उठने लगी,और नीचे गिर गया गाँव वाले थोड़ा पड़े।सबको समाचार दिया गया और हेल्प आने लगी एम्बुलेंस सेवा भी पहुंच गई। घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया उनमें राजेश भी था कुछ तो वही खत्म हो गये,कुछ ने रास्ते में दम तोड़ दिया।
टीवी द्वारा समाचार फैल गया अचानक ही रानी भी देख रही थी टीवी वो गाड़ी लेकर अपने सास ससुर को लेकर पहुंची सभी अपने अपने परिजनों को ढूंढ रहे थे,सब तरफ हा हा कार मचा हुआ था। रानी ने अस्पताल जाकर राजेश को ढूंढा अचानक ही उनके पहुंचते ही दम तोड़ दिया,रोना चिल्लाना मच गया, रानी के माता पिता भी आ गये थे सबका रो रो कर बुरा हाल था काफी देर के बाद पोस्टमार्टम करके दिया गया बाडी को।
अंतिम संस्कार किया गया। रानी एकदम गुमसुम सी हो गई थी। उसके बाद उसके चेहरे की जैसे हँसी चली गई थी। उसने टीचर की नौकरी दुबारा कर ली अब उसके जीवन से सारे रंग जा चुके थे,अब वो रंग बिरंगी नहीं सफेद या हल्के रंग की साड़ी पहनने लगी।उसने अपने माता-पिता व सास- ससुर को एक ही घर में रख लिया ताकि सबकी देख भाल ठीक से कर सके। बेटे का ध्यान सब मिलकर रखते थे। सास -ससुर ने रानी को दूसरी शादी करने के लिए बहुत बोला पर रानी ने मना कर दिया,बोली जब एक मेरा नहीं हुआ तो दूसरा कैसे होगा।
इस तरह रानी के जीवन से सारे रंग जा चुके थे,कभी उसने रंगों को हाथ नहीं लगाया। अपने जीवन के रंग अपने परिवार पर न्योछावर कर दिये थे। उसके जीवन के सारे रंग जा चुके थे केवल एक रंग बचा था सफेद।