नील गगन पर उड़ते बादल
नील गगन पर उड़ते बादल
" *नील गगन पर उड़ते बादल,* " ऐसे अनगिनत फिल्मी गीत बने हैं जो इन लाइनों को अक्षरशः सत्य करते हैं। "
आज कितना सुन्दर और सुहाना मौसम है, ठंडी हवा का झोंका आया और झूम के आ जाओ सबको कानों में रस घोल गया।
मै अपने बगीचे में बैठ नवपरिवर्तन साल का आनंद ले रही थी। शाम होने को थी नील गगन की छाँव तले कुछ पक्षियों के झुंड के झुंड अपने स्थल की ओर उड़ते जा रहे थे।एक दूसरे के साथ सब एक परिवार हो चहचहाते हुए अपने गन्तव्य की ओर।चीं-चीं की मधुर ध्वनि आकाश में गूँज रही थी और सब एक साथ कोई मन में बैर की भावना भी नहीं। बड़ा मन मोह रहा था मेरा,लगा जैसे मैं भी इस के बीच पंछी बनकर उड़ स्वछंद विचरण करूँ- *नील गगन की छाँव तले*
कितना सुन्दर जीवन है कोई बैर -भाव नहीं, कोई स्वार्थ की भावना भी नहीं एक दूसरे का साथ जीवन में प्यार का अथाह सागर उमड़ रहा हो ।कहते हैं सबका साथ, सबका विकास.
मै सोच रही थी ऐसा मानव मन क्यों नहीं होता है ,क्या हम इंसान ज्ञानी होकर भी प्रेम भाव से नहीं रह सकते।
क्या हम इन पक्षियों से भी गये- गुजरे हैं। क्या मानव मन इनको देखकर विचलित नहीं होता प्रेम से समर्पण से रहने के लिये।
खैर मैं भी कहाँ मानवीयता की बातें सोचने लगी। इतना मदमस्त मौसम और मंद हवाओं की सुरीली सरगम खुश होने के लिए बहुत है।प्रकृति में इतने सुन्दर रंग बिखरे हैं इन्ही का आनंद लिया जाये ये समय मुझे खोना नहीं चाहिए। इन ख्यालों से बाहर आने का मन तो नहीं कर रहा है। हाँ लेकिन आना तो पड़ेगा हकीकत को छोड़ नहीं सकते।और अपनी स्वप्न नगरी से बाहर आ गई।
