मेरे पिता
मेरे पिता
फादर्स-डे वो खास दिन है हम अपने पिता को नमन करते हैं।
संतान का सही पालन - पोषण माता- पिता दोनों की जिम्मेदारी होती है।
पितृ - दिवस के उपलक्ष्य में हम आज पिता का महत्व क्या होता है इसी का विवरण प्रस्तुत करेंगे।
पिता शब्द ही अपने आप में एक भारी भरकम शब्द है, जिसका पूरी तरह से वर्णन करना असंभव ही नहीं नामुमकिन है। फिर भी अपने कुछ शब्दों और अनुभव से अमूल्य मोती पिरोने की कोशिश कर रहा हूँ। शायद उनके साथ न्याय कर सकूँ।
संतान की नज़र में पिता दुनिया का सबसे अच्छा व्यक्तित्व होता है और बड़ा योद्धा भी जो अपना पूरा जीवन बच्चों की परवरिश करने में गुजार देता है, निस्वार्थ भाव से।
ये सही है कि पिता के न होने पर बच्चों को कोई सम्मान नहीं देता, और ना - ही घर चल पाता है। पिता का जीवन में होना बहुत आवश्यक है।
मैं और मेरे पिता का आपस में बहुत ही गहरा सम्बन्ध था। पिता घर की नींव होते थे जिनके चारों तरफ सब घूमते हैं। हमारी हर इच्छा की पूर्ति पिता द्वारा ही होती थी, हमारे सारे सपने पिता ही पूरा करते हैं और वास्तव में कहा जाये तो पिता हैं तो सपने हैं।
ये सच है कि हमें कभी घर में कोई कोई छोटी - मोटी तकलीफ होती है तो " अरी माँ " बोलकर सम्बोधित करते है और अचानक सड़क पर हम जा रहे हैं, अचानक ही कोई टृक हमारे सामने आकर ब्रेक लगा दे तो मुख से "बाप रे" निकलता है। बड़ी मुसीबत होने पर पिता ही याद आते हैं।
मेरी माँ का बचपन में ही देहावसान हो गया था,इसलिए हम दोनों भाई बहन का पालन-पोषण बड़े प्यार से हमारे पिता ने ही किया। सुबह जल्दी उठकर तैयार करने से लेकर स्कूल भेजने तक और रात सोने तक पूरा काम करते थे। कभी भी नाराज नहीं होते हमेशा गलती होने पर प्यार से समझा देते थे ।फिर अपने ऑफिस चले जाते थे।
मेरे पिता मेरे लिए सब कुछ थे। भाई से ज्यादा मुझे प्यार करते और बात भी मानते। वो मेरे लिए किसी हीरो से कम न थे। वो एक ऐसे इन्सान थे जो हमारा पूरा ख्याल रखते , भरपूर लाड़ प्यार भी करते थे। हम दोनों को अच्छी बातें ही सिखाते थे ।कठिनाई आने पर घबराना नहीं है भी सिखाते थे। उन्होंने मुझे भी घर के कामों में दक्ष बनाया। ।
वो समय के बड़े पाबन्द थे हर काम समय पर करना हमें भी सिखाते थे, सबसे विनम्रता से बात करना भी सिखाते थे। वे हमेशा कहते थे समय का आदर करना सीखो वरना समय तुम्हें बर्बाद कर देगा।
मेरे पिता बहुत अच्छे इन्सान थे हमेशा सबकी मदद करते थे जो उनसे हो सकता था। हमारे सभी पड़ोसी चाहे हिन्दू हो या मुसलमान सबको समान सम्मान देते थे ।सभी मेरे पिता का भी आदर करते थे ।किसी के घर में पारिवारिक झगड़ा होता तो सही समाधान करते और लोग भी उनकी बात का सम्मान करते थे।
हमारे पिता त्याग और प्यार की साक्षात मूर्ति थे। हमारे साथ बच्चा बनकर खेलते भी थे ।हमेशा ये ख्याल रखते कि हम दुखी तो नहीं है, नहीं फिर फिल्म दिखाने ले जाते थे जिस दिन ऑफिस की छुट्टी होती। मेरे पिता को भीड़ में। हमें ले जाना बिलकुल पसंद नहीं था ।हमारे पिता हमारी खुशियों के सांताक्लाज थे कभी भी हम कुछ फरमाइश करते हमेशा पूरी करते थे ।वो हमारा गर्व थे, अभिमान थे हमारे। मेरे पिता अनमोल थे।
हमारा जीवन बनाने में हमारे पिता का बहुत बड़ा योगदान होता है। यद्यपि पिता की आंखों में हमेशा गुस्सा ही दिखाई देता है पर अपने बच्चों के लिए उनके मन में दुगुना प्यार ही होता है। कभी पिताजी गुस्से में बैठे हों तो पास जाकर बैठो एकदम उनका गुस्सा काफूर हो जायेगा।
ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान इन्सान के लिए उसके माँ-बाप होते हैं। उनकी छत्रछाया में रहकर दुनिया की हर
खुशी पाते हैं। एक माता पिता का रिश्ता ही सच्चा व निस्वार्थ भाव से भरा हुआ होता है।
पिता का कर्ज हमारे ऊपर सबसे बड़ा कर्ज है , जो हम पूरी उम्र नहीं चुका सकते।
हमें अपने माँ बाप की सेवा अवश्य करनी चाहिए। उन्हीं के चरणों में सच्चा स्वर्ग है। यदि वो खुश रहेंगे तो हम भी जीवन भर खुश रहेंगे। माता पिता भगवान का ही दूसरा रूप है, उनमें ही भगवान बसते हैं । उनका आशीर्वाद हमेशा फलता है ।यदि पिता का हाथ हमारे सर पर रहे तो कोई शक्ति हमें अपने इरादों से नहीं हिला सकती है। इसीलिए माता-पिता को भगवान का दर्जा भी दिया गया है।
अंत में यही कहना है :--
"बच्चों की ख्वाहिशें पूरी
करते करते ,
मिट गई हाथों की लकीरें।
बुढ़ापे में उसी की इच्छा
लावारिस हो गई है। "
धन्यवाद
