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Saroj Garg

Tragedy

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Saroj Garg

Tragedy

परिवार

परिवार

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   परिवार का असली माने संयुक्त परिवार से होता है। जैसे माता-पिता, दादा -दादी, भाई-बहन, किसी में बुआ, चाचा - चाची । इतने लोगों का पहले साथ मिलकर रहना कठिन नहीं था, खर्च भी कम थे। मिल जुलकर सब परिवार में एक दूसरे का सम्मान करते थे। इससे प्रेम परिवार में बना रहता था। 

   इसी तरह मेरे परिवार में भी मम्मा-पापा, दादा -दादी तथा मैं और मेरी बहन रहते हैं। दादाजी डाक्टर थे पर अब रिटायर हैं। दादा-दादी घर पर ही रहते थे। पापा सरकारी नौकरी में थे, घर का खर्च आसानी से चलता था ।

   अचानक ही दादाजी बीमार पड़ गये और कुछ दिन की बीमारी के बाद चल बसे और दादी हमारे साथ ही रहती रही। 

   सभी कुछ हँसी-खुशी चल रहा था ।मम्मी घर के कामों में व्यस्त रहती और पापा बाहर ।दादी भी मम्मी को काम में थोड़ा सहारा देती रहती थी ।

हम भाई-बहन पढ़ने जाते थे। मम्मी हमारी पढ़ाई में भी मदद करती रहती थी ।सब कुछ ठीक चल रहा था मेरी उम्र कोई 14 साल व बहन की 18 साल थी। बहन हाईस्कूल में में और मैं 8th में था ।कुछ दिन बाद अचानक पापा की तबीयत खराब होने लगी, धीरे-धीरे कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी ,डाक्टर को दिखाया तो अन्दर ही अन्दर बीमारी काफी बढ़ चुकी थी। कई और डाक्टर को दिखाया, पर कन्ट्रोल नहीं हो पाया। एक साल के अन्दर ही पापा का देहावसान हो गया। मम्मी और दादी का रो- रोकर बुरा हाल था। पापा सब कुछ छोड़ कर जा चुके थे। हम लोग अकेले रह गये थे। घर में वीरानगी छा गई थी, मैं और मेरी बहन भी रोते रहते थे ।भगवान से भी नफरत हो गई थी ,हमारे पापा को अपने पास बुला लिया था। परिवार में कोई कमाई का साधन नहीं था घर कैसे चलेगा, बच्चे कैसे पढ़ेंगे ऐसी बहुत सी चिंताए सबको सताने लगी क्या किया जाए। फिर मेरे नाना जी ने सबसे सलाह मशविरा किया कि दामाद की नौकरी की जगह मम्मी को नौकरी दिलवाना की कोशिश की जाए । परिवार में सबने समर्थन किया। मम्मी एम. ए पास थी तो नौकरी लग सकती थी ।पर ये काम आसान नहीं था। उस इस नौकरी नहीं मिलती थी ।

नाना जी ने नौकरी के लिए वकील से एपलीकेशन भिजवाई। नानाजी को बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी। ऑफिस के आगे धरना दिया, काफी शोर शराबा भी हुआ पर वो लोग राजी नहीं हुए। जवाब मिला कि इस तरह तो यहाँ सभी औरतें ही आकर बैठ जायेंगी। फिर भी नाना जी हिम्मत नहीं हारे ,लड़ाई जारी रखी । एक साल होने को आया था ,नाना जी बहुत परेशान थे , अचानक ही एक पत्र आया, जिसमें इन्टरव्यू के लिए मम्मी को हैड ऑफिस बुलाया था ।

 वो लैटर देखकर सब खुश तो हुए पर डर और चिंता भी थी कि फूल न कर दें मम्मी को। खैर नाना जी मम्मी को अपने साथ हैड ऑफिस लेकर समय से पहले पहुंच गए। पैनल रूम में मम्मी को बुलाया गया। मम्मी को बाहर नाना जी ने हिम्मत बधाई और भगवान का नाम लेकर अन्दर जाने को कहा। इन्टरव्यू शुरू हुआ , कुछ सवाल मम्मी से पूछे गए मम्मी ने उनके जवाब दिये , फिर मम्मी को बाहर भेज दिया गया और कहा हाँ या ना जवाब ऑफिस में भेज दिया जाएगा। 

करीब तीन महीने बाद पापा के ऑफिस में मम्मी का एपोइन्टमेन्ट लैटर आया और एक अक्टूबर से नौकरी ज्वाइन करने के लिए बोला गया। 

  फिर क्या था एक खुशी लहर परिवार में दौड़ गई, एक अक्टूबर को नाना जी ही मम्मी को आफिस लेकर पहुंचे। उनको एक सीट दी गई। ऑफिस के हैड से नाना जी ने बात की, काम सीखने में थोड़ा समय लगेगा, पर सीख लेगी। आप लोग ध्यान रखियेगा। 

  इस मम्मी फिर 9.30 के आस पास ऑफिस जाने लगी। और मन लगाकर काम सीखना शुरू किया। धीरे-धीरे हर काम मैं परफेक्ट होने लगी। फिर तो। घर से ऑफिस और ऑफिस से घर दौड़ने लगी। दादी काफी बूढ़ी होने लगी थी, अब उनसे घर काम नहीं होता था । मम्मी घर का सारा काम करके ऑफिस जाती और शाम को घर आकर फिर काम में लग जाती थी ।घर जरूरी सामान भी रास्ते में लेती आती थी। उनके ऊपर पूरा बोझ घर का आ गया था ।लेकिन हम सबकी शक्ल-सूरत देख कर काम में जुटी रहती थी, कभी भी थकने की बात नहीं करती थी ।हम भाई बहन को कॉन्वेन्ट में ही पढ़ाया। दोनों की शादी की, काम से लगाया ।कुछ साल बाद दादी का भी स्वर्गवास हो गया। तब मम्मी की बहुत हिम्मत टूट गई। 

   अकेली मम्मी ने सारा जीवन संघर्ष करते हुए गुजारा इस समाज की कुरीतियों और कुविचारों से अकेली ही लड़ती रही अपनों से भी और परायों से भी ।

 अब मम्मी रिटायर हो गई है, पर उन्होंने खाली बैठना नहीं सीखा। रिटायर होने के बाद सामाजिक संस्थाओं को ज्वाइन कर लिया और पास ही एक मंदिर था उसमें सेवा करने लगी साथ ही हिन्दी साहित्य संस्था भी ज्वाइन कर ली जहाँ सभी महिलाएँ हिन्दी साहित्य के लिए समर्पित है ,जो कविताएँ ,लेख , कहानियाँ, उपन्यास, उपन्यास आदि लिखती हैं। मम्मी को भी उन लोगों ने प्रोत्साहित किया, लिखने के लिए मनोबल बढ़ाया। धीरे-धीरे मम्मी ने लिखना भी शुरू किया है। कहानी, लेख, व कविता लिखती हैं। परिपक्वता आने में समय अवश्य लगेगा। 

उनकी कुछ अखबारों, तथा किताबों में भी छपी है। अभी मम्मी की उम्र 75 है , पर हमेशा ऊर्जा से भरी रहती है।

सबको काम करने के लिए प्रेरित भी करती है। हम भाई-बहन भी उनसे बहुत प्रेरित रहते हैं। अपने आपको काम में व्यस्त रखते हैं। अब माँ मेरे पास ही रहती है और हम लोग भी उनसे शिक्षा लेने की कोशिश करते हैं। 

    ईश्वर में उनकी बहुत ही आस्था है सुबह उठकर स्नान आदि से निव्रत होकर कम से कम एक घंटा ठाकुर जी की सेवा में गुजारती है और शाम को भी ।अपने ठाकुर जी का बहुत ध्यान रखती है ।उनका स्नान कराने से शुरूआत और शयन तक सब करती है। हम दोनों भाई बहन को भी अच्छे संस्कार दिये हैं। 

   आज हमारा परिवार मिलकर साथ रहता है। अब भी मम्मी जो बन पड़ता घर के काम करती हैं। कभी थकना नहीं सीखी है। 



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