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Diwa Shanker Saraswat

Romance Tragedy Inspirational

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Diwa Shanker Saraswat

Romance Tragedy Inspirational

मेरा पहला प्यार

मेरा पहला प्यार

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 जब भी कोई मुझे पूछता है कि मेरा पहला प्यार क्या है तो सचमुच मैं उत्तर नहीं दे पाता हूं। जीवन में कितने आये। कितने गये। पर उनमें से पहला प्यार किसे कहूं। मम्मी, पिता जी , ने तो मुझे यह दुनिया दिखाई है। वह तो मेरे ईश्वर हैं। छोटा भाई राहुल थोड़ा नटखट है। पर शुचिता ज्यादा छोटी होने पर भी राहुल से ज्यादा समझदार हैं।

   हम दो, हमारे दो का नारा तो सुना ही होगा। एक थोड़ा हँसी की बात बतायी जाती है। डरता हूं कि कहीं पापा नाराज न हो जायें। परिवार नियोजन कार्यक्रमों का दबदबा था। वैसे कोई स्वैच्छिक इसमें रुचि नहीं लेता था। परिवार नियोजन बाले जबरदस्ती सरकारी कर्मचारियों की नसबंदी करते थे। बाकियों पर तो कभी भी किसी का जोर चला नहीं।

  एक दिन पापा जी के दफ्तर में भगदड़ मच गयी। समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात है। कुछ तो भाग गये। पापा जी समेत चार लोग पकड़ में आये।

  " अरे भाई। कौन हो तुम। इस तरह क्यों दनदनाते आये हों।"

 " हम परिवार नियोजन बाले। आपकी नसबंदी करेंगें।"

 पापा ने चपरासी को पचास गालियां सुनाईं। नासपीटा, हमेशा आगे पीछे घूमता था। जब वफादारी दिखाने का बख्त आया तो ऐसे भाग गया जैसे गधे के सर से सींग। अरे कुछ इशारा तो करना चाहिये था।

  तो भाई बात यह हुई कि चार में से दो तो निसंतान निकले। बचे पापा जी ओर संतोष अंकल। पापा जी के दो बेटे एक मैं और दूसरा मेरा छोटा भाई संतोष धरा पर अवतार ले चुके थे। संतोष अंकल की दो बेटियां थी। अंकल परिवार नियोजन बालों के पैर पड़ गये।

 " अरे साहब। कोई बेटा नहीं है। ऐसा जुल्म मत करो। एक लड़का हो जाने दो। फिर खुद आकर नसबंदी करा लूंगा।"

 परिवार नियोजन बालों का दिल पसीजा। अंकल को चुपचाप विदा कर दिया। पर पापा के पास तो यह बहाना भी न था। पहले से दो सुपुत्रों के पिता थे।पर कहावत है 'जहाँ चाह वहाँ राह।"

 ". अरे। बाकू काहे छोड़ो।"

 " छोड़ दियो। बाके कोई छोरा नाहे। छोरा हो जाएगो। तो खुद नसबंदी करा लेगो। "

 पापा वैसे तो शुद्ध खड़ी बोली में बात करते थे। पर गुस्सा होने पर एकदम देहाती भाषा में बोलने लगते। परिवार नियोजन बाले भी उनकी नकल कर रहे थे। जानते थे कि यह तो जरूर फसेगा। पर पापा भी मंजे खिलाड़ी थे।

" तो का भयो। मेरे छोरी नाहे। अब नसबंदी नाहे कराऊंगो। जब तक छोरी नाहे होगी, तब तक तो नाहे।"

 परिवार नियोजन बाले सकते में आ गये। यह भी बात हो सकती है। उन्होंने सोचा भी न था। पापा को समझाने की कोशिश करते रहे। पर पापा नहीं माने। केवल छोरा काहे जरूरी हैं। छोरी भी जरूरी है। कन्या दान से बड़ा कौन सो पुन्न है। वाह भाई। यह क्या बात। मैं बा पुन्न से चों बंचित रहूँ। नसबंदी तो ना कराऊंगो। छोरी हो जायेगी तो खुद आ जाऊंगो तुम्हारे पास। "

 तब जाकर पापा बचे। संतोष अंकल के भाग्य में लड़का न था। पर हमारे भाग्य में बहन थी। इस तरह शुचिता हमारे बीच आयी।

 मैं सोचता हूं कि जिस तरह आबादी बढ़ रही है, उस तरह किसी दिन हम दो हमारे एक का नियम लागू हो गया तो फिर अनेकों पिताओं को कन्या दान का पुण्य नहीं मिलेगा। भाइयों की कलाई रक्षाबंधन पर सूनी रहेंगी। लड़कियां भी भाई को राखी बांधने को तरसेंगी।

 शुचिता हम सभी में छोटी पर सबसे ज्यादा समझदार हैं। अभी इंटर की परीक्षा देगी। राहुल इंजीनियरिंग कर रहा है। और मैं क्या कर रहा हूं। अपना पहला प्यार तलाश रहा हूं।

  हिमालय की इन चोटियों से कभी भी बर्फ नहीं हटती। गर्मियों में भी तापमान माइनस दस डिग्री तक होता है। बड़ा कठिन जीवन है।

 मुझे याद आ रहा है वह दिन जब आर्मी में मेरा चयन हो गया था। घर में मेने किसी को बताया नहीं था। परीक्षा और साक्षात्कार भी घर पर झूठ बोलकर दे आया था। पर अब तो बताना ही होगा। आखिर पहले प्रेम का सबाल है।

 " बेवकूफ हो तुम। अपना जीवन खराब करना चाहते हो।" पापा गुस्से में थे।

 " पर पापा। यह मेरा पहला प्यार है। मेरा ही नहीं हर भारत वासी का पहला प्यार तो देश पर मर मिटना ही है।"

 स्कूल के दिनों में कुछ नाटक किये थे। एक नाटक में भगत सिंह की भूमिका निभायी थी। वही चरित्र मुझपर हावी हो रहा था।

 शुचिता सचमुच समझदार है। पापा और मम्मी को उसी ने मनाया। वर्ना आज यह बकवास नहीं कर पाता।

 खुशी खुशी मैं साखी की बताने चल दिया। पर पीछे से शुचिता ने रोक दिया।

 " भैय्या। अब उन्हें भूल जाओ।"

  शुचिता अभी छोटी है। कुछ भी कह जाती है। साखी मेरी बचपन की दोस्त, मेरा प्यार। उसे न बताऊं। यह कैसे हो सकता है। पर शुचिता भले ही छोटी है। पर मुझसे ज्यादा समझदार है। मेरा प्यार या तो देश हो सकता है या साखी। पर किसे बनाऊं मैं अपना पहला प्यार।

  पापा को फिर से मौका मिला। साखी की अच्छाई बताकर मुझे रोकने लगे।

 " तू क्या कहती है छोटी।" अब मैं छोटी की बुद्धि का लोहा मान चुका था।

 " मैं क्या बताऊं भैय्या।" शुचिता बचना चाह रही थी।

 " सही शही बता। आखिर मेरी बहन जो है।"

 फिर शुचिता रो दी। बहुत देर रोती रही।

 " आप जाओ भैय्या।" बहुत संक्षिप्त और दृढ निश्चय में उसने बता दिया।

 इस तरह मैंने अपना पहला प्यार पा लिया। आज बर्फ की चोटियों पर मैं खड़ा हूं। थोड़ी देर पूर्व दुश्मन से मेरी झड़प हुई थी। अनेकों शत्रुओं की लाशें बिछी हुई हैं। और उन्हीं लाशों के साथ है एक मेरी लाश। जो प्रतीक है कि मैंने अपना पहला प्रेम पा लिया है। सामने एक सफेद विमान उतर रहा है। पर चलने से पूर्व एक बार पापा, मम्मी, राहुल और शुचिता को देखता चलूँ। पहले प्यार की कहानी आप सभी को बताता चलूँ।

समाप्त



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