मेरा ख्वाबों का अशियाना!!
मेरा ख्वाबों का अशियाना!!


अतुल और सीमा का छोटा और सुखी परिवार है। परिवार में दो बच्चे भी हैं आयुष और कृष्! अतुल एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है व सीमा एक गृहणी है। घर में रहकर ही वह दोनों बच्चों की देखभाल करती है।
सीमा वैसे तो अपने परिवार के साथ बहुत खुश है पर उसका अपना मकान लेने का एक सपना है।
शादी के बाद से ही अतुल व सीमा दिल्ली में एक छोटे से किराए के मकान में रहते हैं। हर महीने मकान मालिक को पैसा देना,सीमा को खलता है। प्राइवेट जॉब मे अतुल की इतनी कमाई नहीं और दिल्ली जैसे शहर में खर्चे भी बहुत है। दोनों बच्चे स्कूल भी जाते हैं। घर की जरूरतो के अलावा ,दोनों बच्चों की स्कूल की फीस का खर्चा अलग। पैसे कहां चले जाते हैं, पता ही नहीं चलता।
हर महीने इन सब खर्चो के बाद , सीमा थोड़ा पैसा ही जोड़ पायी है। वह अपने घर के खर्चों में तथा अपनी शॉपिंग में कटौती करती और सोचती कि दो पैसे बच जाएंगे तो मकान खरीदने के काम आ जाऐगे।
सीमा घर खरीदने के लिये कुछ अतिरिक्त पैसे की चाहत में आसपास के लोगों के कपड़े भी अब सिलने लगी। जब बच्चे स्कूल चले जाते तो कुछ टाइम निकाल, कपड़े सिलकर कुछ पैसे कमा लेती। इन सब यतन से धीरे धीरे 2 ,3 सालों में उन्होंने कुछ लाख रुपए जोड़ लिये।
अतुल और सीमा की एनिवर्सरी आती है। सीमा से अतुल कहता है कि तुम अपनी पसंद का कोई सोने का सेट खरीद लो, पर सीमा मना करती है। वह कहती "मेरी एनिवर्सरी में चाहे तुम 2, 4 साल बाद मुझे कुछ देना पर मुझे मेरे सपनों का घर ही देना। इन किराए के मकानों में रहकर और मकानमालिकों की किच-किच से मैं तो थक गई हूं। कभी मकान मालकिन कहती है कि पानी ज्यादा खर्च कर रही हो। कभी कहती कि मेहमान ज्यादा ना आए। और कभी सीढी गंदी है। इन सब ने हमारे आत्म सम्मान को भी कई बार ठेस पहुंचाई है। मकान मालिक लोग हमको हेयदृष्टि से देखते हैं। हर साल अलग से किराया भी बढ़ जाता, चाहे सैलरी बढ़े या ना बढ़े। कितना भी अच्छे से रख लो पर है तो किराए का मकान ही।" अतुल को भी लगता है कि सीमा सही कह रही है।
वो भी सोचता है कि अब हमें हिम्मत करके घर ले ही लेना चाहिए।
अगले दिन न्यूज पेपर मे अतुल की नजर कुछ फ्लैटस के एड पर पडी। उसने देखा कि कुछ फ्लैटस उसके बजट में है। उसमें रेडी टू मूव फ्लैट भी है। सीमा व अतुल दोनों फ्लैट देखने जाते हैं। टू रूम फ्लैट बहुत ही सुंदर, खुला और हवादार है। सीमा को फ्लैट देखते ही अपने सपनों का घर जैसा लगा।
वह अतुल से कहती है "मुझे यह बहुत पसंद है। मुझे यही घर चाहिए।" अतुल भी अपना लोन सैंक्शन कराता है और अपनी एनिवर्सरी के पहले फ्लैट की चाबी ले लेता है।
अतुल व सीमा की एनिवर्सरी का दिन आता है। उस दिन सीमा और अतुल ने अपने सपनों के घर का गृह प्रवेश किया। दोनों बहुत ही खुश थे। पहली चीज की खुशी ही अलग होती है।
बच्चो और सीमा की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था शादी के 7 साल बाद वह अपने पहले घर में पहुंची थी। दोनो ने अपने अथक प्रयासों से आज ये खूबसूरत सा एनिवर्सरी के गिफ्ट का सपना सच कर लिया था।