Vijay Kumar Tiwari

Abstract

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Vijay Kumar Tiwari

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मेरा भाई ऐसा ही होता-2

मेरा भाई ऐसा ही होता-2

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शायद उसने भी मेरे लिए बेचैनी महसूस की। करुण भाव से देखा और दयाद्र हो उठा। "कहाँ जा रही हो?क्या करती हो?उदासी क्यों दिख रही है आपकी आँखों में ? "उसने कई प्रश्न कर डाले। कुछ पल मौन में गुजरे।

उसने पुनः मेरी ओर देखा। किंचित हास्य के भाव जागे। फिर वह गम्भीर हो गया। उसकी पुतलियों में चमक उभरी और उसी तेजी से विलुप्त हो गयी।

मेरा पाला कभी ऐसे व्यक्ति से नहीं पड़ा है। क्या उत्तर दूँ?मेरे भाव-शब्द चूकने लगे हैं। पहली बार लगा, किसी सच्चे इंसान के सामने खड़ा होना बहुत कठिन है। उसके प्रश्नों के उत्तर देना तो और मुश्किल है।

किंचित मौन के बाद मैंने उसकी आँखों में देखा। करुणा के भाव थे।

मैंने कहा."उर्वशी नाम है मेरा। पटना में रहती हूँ। "कुछ पल के मौन के बाद मैंने थोड़ी हिम्मत की और कहा, "क्या करती हूँ?इस प्रश्न का उत्तर अभी देना नहीं चाहती। मुझे बाध्य मत करना। तुम्हें अवश्य बताऊँगी, कुछ भी नहीं छिपाऊँगी। "

"शायद आपकी भी रुचि होगी, मेरा नाम, मेरा काम जानने की?अरुण नाम है मेरा। एक कम्पनी ने मुझे काम दिया है। पहले प्रशिक्षण प्राप्त करना है फिर किसी स्थान पर योगदान देने के लिए भेजा जायेगा। "अरुण ने बेझिझक कहा।  

उर्वशी मुस्करायी।  

अरुण के मन में शंका उभरी, "यह लड़की कौन है?अकेले यात्रा कर रही है। वाचाल भी है और तेज-तर्रार भी। "

कुछ समय पहले तक अरुण जिसे दयालु, सहृदय और भली लड़की समझ रहा था, अब वह रहस्यमयी दिखने लगी। उसे भय महसूस हुआ। उसने मान लिया कि वह किसी षडयन्त्रकारी लड़की के चंगुल में फंस गया है। यह अकेले नहीं है, इसके साथ कोई गैंग भी हो सकता है। हो सकता है नहीं, अवश्य है। यह उसकी सरगना हो सकती है या कोई सदस्य। उसने पीछे गर्दन घुमाकर देखने की कोशिश की। हर आदमी गैंग का सदस्य लगा। लगा, सबकी कड़ी निगाहें उसी पर टिकी हुई हैं। सब उसे ही देख रहे हैं। बहुत लोग सोये हुए थे। बहुत कम लोग जाग रहे थे। अरुण ने मान लिया कि सभी अपनी योजना के अनुसार जाग रहे हैं या सोये हुए हैं।

बगल की लड़की ने थोड़ी हरकत की। पति के कंधे से सिर हटाकर थोड़ी सीधी हुई और अरुण के सहारे झुक गयी। अचानक उसे इस नये हालात ने हिला दिया। वह पूरी तरह डर गया और अपने को उससे दूर करने की कोशिश की।

उर्वशी यह देखकर मुस्करायी। बोली, " भाई, आप मेरी तरफ सरक आओ। वह गहरी नींद में है। "

उसने मन ही मन संकल्प किया कि इसकी तरफ तो जाना नहीं है। वैसे भी अबतक इसके लोगों ने बहुत से फोटो ले लिये होंगे।

"आ भी जाईये, "उसने मधुर मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

अरुण को गर्मी महसूस होने लगी। उसे उसकी मुस्कान में खतरा दिखने लगा। अचानक उसका ध्यान उसके शाल पर गया जिसके नीचे उसकी दोनो हथेलियाँ ढकी हैं। लगभग झटकते हुए उसने शाल को परे किया। थोड़ी राहत की सांस ली। मन किया कि खिड़की का शीशा हटा दे। उसने हाथ बढ़ाया।

उर्वशी ने विरोध किया, "क्या कर रहे हो?बहुत ठंड है। ऐसा मत करो। ठंडी हवा आयेगी, सभी जाग जायेंगे। "

वह रुक गया परन्तु भय यथावत था। उसके मस्तिष्क में नाना तरह की शंकायें उभरती और मिट रही थी। चारो तरफ अंधकार ही अंधकार है। उसकी नौकरी चली जायेगी। भले ही ये लोग पूरे रास्ते कुछ ना करें, बस से उतरते ही आ झपटेंगे और पकड़ ले जायेंगे। उसने बचाव के अनेक उपायों के बारे में सोचा। कोई न कोई अड़चन खड़ी हो जा रही थी। उसने अपनी हार मान ली।

बाहर कुहरा कुछ कम हुआ। उसने खिड़की के पार देखना चाहा। धूप अभी भी नहीं निकली है परन्तु खेतों की हरियाली दिखाई देने लगी है। बस, किसी घुमावदार रास्ते से गुजर रही थी जिससे रफ्तार थोड़ी कम हुई। वहीं थोडी दूरी पर एक मन्दिर दिखाई दिया। अरुण ने श्रद्धा से सिर झुकाया।

उर्वशी ने अरुण को गौर से देखा। उसकी समझ में नहीं आया, आखिर इसके मन में क्या चल रहा है। बातचीत का सिलसिला शुरु करने के लिए उसकी ओर मुस्करा कर देखा। उर्वशी ने कहा, "जब तुम बस में भागते हुए चढ़े थे और हांफ रहे थे तो मुझे लगा कि तुम्हारी नयी-नयी शादी हुई है और तुम अपनी नयी पत्नी को सोया हुआ छोड़कर निकल आये हो। ऐसा है क्या?या मेरा अनुमान गलत है?"

अरुण का भय थोड़ा कम हुआ। मन के किसी कोने से आवाज आयी कि यह लड़की जो भी हो, खतरनाक तो बिल्कुल नहीं है। थोड़ी हिम्मत भी जगी कि जो होगा देखा जायेगा। पहले से ही बुरा सोचकर हार मान लेना किसी भी तरह उचित नहीं है। उसकी मुस्कराहट में कोई आकर्षण है और अनुमान भी कितना सही कर लेती है। उर्वशी ने हंसकर अपना प्रश्न दुहराया और मौन देखकर बोली, "ना चाहो तो ना बताओ। कोई जबर्दस्ती थोड़े ही है। "

"आपने बिल्कुल सही सोचा है, बिल्कुल ऐसा ही है। "

वह खिलखिलाकर हंस पड़ी। लोगों ने इन दोनो को ध्यान से देखा। कुछ अलसाये से जाग उठे और कुछ मुस्कराने लगे। उर्वशी झेंप गयी। उसका यो शरमाना भी विचित्र लगा और उसने महसूस किया कि अभी भी उसमें नारी-सुलभ लज्जा है।

अरुण ने उसके भावों को गहराई से पकड़ा और बोला, "जब आपने सामंजस्य करके उनके पतिदेव को बैठाया तो मुझे आपके हृदय की विशालता का अनुभव हुआ। ठंड से कांप रही मेरी हथेलियों को आपने शाल से ढका तो आपकी ममता दिखी। आप जो भी करती हो, मैं दावे से कह सकता हूँ कि आपकी आत्मा जीवित है, मरी नहीं है। "

"बहुत देर तक तुम परेशान क्यों थे जैसे मैं कोई तुम्हारी दुश्मन होऊँ? मैं डर गयी थी बहुत देर तक। "

"डर तो मैं भी गया था। लगा जैसे तुम्हारी चंगुल में फंस गया हूँ। तुम्हारा कोई गैंग है जो मुझे मार देने वाला है। "अरुण अपनी सोच पर हंसा और कहा, "मुझे क्षमा करना। " कुछ पल दोनो मौन रहे।  

अरुण ने कहा, "मेरी कोई बहन नहीं है। दावे से कहता हूँ कि यदि होती तो तुम्हारे जैसी ही होती, दयालु, सहृदय, उदार और सुन्दर। "

उर्वशी रो पड़ी, "मैंने भी यही सोचा है कि मेरा कोई भाई होता तो तुम्हारे जैसा ही होता, नारी का सम्मान करने वाला, गौरवशाली व चरित्रवान। मैं तुम्हें हृदय से आशीर्वाद देती हूँ। तुम्हें अपने घर तो नहीं बुला सकती लेकिन भाई के घर जरुर आऊँगी, यदि तुमने मेरा काम जानने के बाद भी आने दिया तो। मुझे क्षमा करना भाई। मैं हूँ-कालगर्ल। दोनो भावुक हुए, और विह्वल हो रो पड़े।  


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