खूबसूरत आँखों वाली लड़की-3
खूबसूरत आँखों वाली लड़की-3
"मैं किसी से नहीं डरता,"मोहन चन्द्र पूरी बेहयायी पर उतर आये। प्रमोद बाबू ने अपने आपको रोका। सुबह की ताजी हवा में भी गर्माहट की अनुभूति हुई और दुख हुआ।
हिम्मत करके उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी, दूसरों की जिन्दगी में टांग अड़ाना ठीक नहीं है। आपकी बात सही हो तब भी बहुत संयम से उनके परिजनों को बताना चाहिए। आपने जिस तरह से कहा है,उसकी तीव्र प्रतिक्रिया हो सकती है। यदि झूठ हो तो सोचिए उस लड़की को कैसा लगेगा? उसके जीवन में तूफान आ जायेगा।"
उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। प्रमोद जी की बातें चुपचाप सुनी और उठकर चले गये। प्रमोद बाबू ने गहरी सांस ली,"पता नहीं, इनको अपनी ग़लती का अहसास भी है या नहीं?"
मध्यमा ने मां से कहा,"हमें प्रमोद अंकल से मिलना चाहिए। किसी दिन चलो ना मां।"
"तूने तो मेरे मन की बात कह दी। तैयार हो जाओ,आज ही चलेंगे।" मां ने खुश होकर बेटी से कहा,"आंटी से भी मेरी भेंट मन्दिर में हुई है।"
"मां, अंकल से फोन नम्बर ले लेना, भूलना नहीं।"
"तुम इतना शरमाती क्यों हो?" मां ने मध्यमा को किंचित उलाहना से देखा और मुस्करा उठी,"तुम भी बोल सकती हो।"
"ठीक है, तुम चुप ही रहना। आज मैं ही मांग लूँगी,"थोड़ी चिढ़ कर उसने मुँह बनाया, "फिर मत कहना कि मैं बहुत बोलने लगी हूँ।"
प्रमोद बाबू बरामदे में ही थे। रविवार का दिन है। स्नान-ध्यान और नाश्ता हो चुका है। कई दिनों बाद मोहन चन्द्र जी आये। कुछ ज्यादा ही उदास-निराश लग रहे थे। ऐसा लग रहा है जैसे कोई गहरी पीड़ा उनको खाये जा रही है। उनकी एक समस्या का थोड़ा सा आभास प्रमोद बाबू को हुआ है। उनके सभी भाई अच्छी सी नौकरी में हैं,खुशहाल हैं। इनके पास आय का स्थायी स्रोत नहीं है। पैसे के बिना जीवन सरल नहीं होता।
किसी दिन प्रमोद बाबू ने उनका मन टटोला था। जो रहस्य उभर कर आया, बहुत भयावह लगा। शायद यही कारण है कि उनकी निगाह में चतुर्दिक नैतिक और चारित्रिक पतन है। भक्ति, प्रेम, त्याग, तपस्या जैसी कोई चीज उन्हें नहीं दिखती। उन्हें लगता है कि वासना ही सर्वोपरि है और पूरी दुनिया इसी में लगी है । उम्र के जिस पड़ाव पर हैं, शायद ही कोई रिश्ता आये।
प्रमोद बाबू ने दूर से आ रही मध्यमा और उसकी मां को देखा। थोड़ी शंका सी हुई। गेट के भीतर आने पर उन्होंने हँसते हुए स्वागत किया। भीतर से एक कुर्सी और निकाल लाये। मध्यमा बहुत लम्बी और गोरी है। चेहरे में अद्भूत लावण्य और आभा है। सहसा उनको मोहन चन्द्र जी की बातें याद आयीं। स्मित मुस्कान तैर गयी उनके ज़हन में कि इसके पीछे तो सारे लड़के पड़े ही रहते होंगे।
सन्दर्भ बदलते हुए उन्होंने पूछा,"कैसे हैं आप लोग? मध्यमा ने मां को देखा मानो पूछ रही हो कि उत्तर दे दूँ?
"हाँ,बोल ना,"मां ने बेटी को देखा और हँस पड़ी। प्रमोद बाबू कुछ समझ पाते तब तक मध्यमा बोल पड़ी,"हम लोग अच्छे हैं अंकल।"
प्रमोद बाबू ने गौर किया कि मध्यमा सहसा गम्भीर हो गयी है। शायद शर्म से उसका चेहरा लालिमायुक्त हुआ है और पलकें झुक गयी हैं। उन्होंने कहा," यदि बुरा ना मानो तो कुछ कहूँ।"
मध्यम
ा की झुकी पलकें पूरा आकार लेती हुई उन्मिलित हुई।"मैं आपसे कुछ सलाह लेने आयी हूँ,"मध्यमा ने उनकी बातों को ऐसे परे धकेला मानो उसे पता है कि प्रमोद अंकल क्या कहने वाले हैं।
भावनाओं के ज्वार को सम्हालते हुए उन्होंने कहा,"तुम अपनी हर समस्या बता सकती हो, हर योजना पर चर्चा कर सकती हो और कभी भी आ सकती हो।"
उसकी मां ने कहा,"आपसे ऐसी ही उम्मीद इसके पापा को है। बहुत विश्वास है आप पर।"
मध्यमा हँस पड़ी,"मुझे भी।"किंचित रुककर उसने मां को देखा।
"अब तुम्हीं बोलो," मां ने हँसते हुए कहा।
प्रमोद बाबू ने मां-बेटी को ध्यान से देखा,"क्या बात है? निःसंकोच बोलिए। मुझसे जो बन पड़ेगा, अवश्य करुँगा।"
"पहले तो आप अपना फोन नम्बर दे दीजिए ताकि आपको हमलोग परेशान करते रहें" मध्यमा वाचाल की मुद्रा अख्तियार कर चुकी थी,"मुझे अपना कैरियर बनाना है। आत्मनिर्भर होना चाहती हूँ और मम्मी-पापा की मदद करना चाहती हूँ।"
"बहुत सुन्दर। तुम्हारे इन उदात्त विचारों से मुझे अतिशय प्रसन्नता हुई है। तुम्हें सहयोग करके मुझे बहुत शान्ति मिलेगी। लेकिन, मेहनत तो तुम्हें ही करनी होगी। कल्पना की दुनिया से बाहर निकलना होगा, अपने विचारों को मजबूत करना होगा और बहुत चीजों का त्याग करना होगा।"
"मैं कर रही हूँ अंकल,"उसने पूरे आत्म-विश्वास से कहा,"आप कुछ कहने वाले थे?"
"फिर कभी,"प्रमोद बाबू ने टालना चाहा,"तुम मुझसे अपने कैरियर, अपने जीवन के ऊँचे लक्ष्यों की बात करोगी, कुछ बनकर, कुछ करके दिखाओगी।"
"मुझे पता है,"मध्यमा जोरदार तरीके से हँस पड़ी,"आपको मेरी आँखें पसन्द हैं। है ना?"
प्रमोद बाबू देखते रह गये।
उसकी मां भी हँसने लगी और हँसते-हँसते उन्होंने कहा,"मोहन चन्द्र जी को दूर ही रखिये। पता नहीं कैसे आप उनको झेलते है?"
प्रमोद बाबू शंकालु हो उठे परन्तु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। उन दोनो के जाने के बाद बहुत देर तक उनकी चिन्ता बनी रही।
रात में मध्यमा ने उत्साह से बताया कि आज उसने क्या-क्या पढ़ा है ? क्या-क्या समझी है और क्या-क्या समझ में नहीं आ रहा है? बहुत देर तक पढ़ाई की बाते होती रहीं। उसका उत्साह देखकर प्रमोद बाबू बहुत खुश हुए।
किंचित रुककर उसने कहा,"आपसे एक बात पूछनी है।सच-सच बताइयेगा।"
प्रमोद बाबू मौन ही रहे। उसने बताया,आजकल मम्मी-पापा दोनो तनाव में रहते हैं, दोनो अक्सर लड़ पड़ते हैं। मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है। मम्मी गुस्से में मोहन चन्द्र अंकल के घर भी गयी थी। क्या हुआ, मुझे नहीं पता। आप कुछ बताइये।
"तुम कुछ ज्यादा ही उन बातों की चिन्ता कर रही हो जो आवश्यक नहीं हैं। अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो,अपना कैरियर देखो।"
मध्यमा रो पड़ी,"मैं सब समझती हूँ अंकल। मैं ही सारी परेशानियों की जड़ हूँ। मेरी ही बात होती है और मुझसे ही छिपायी जाती है। आखिर मैं क्या करूँ?लोग न जाने क्या-क्या देख लेते हैं, क्या- क्या सोच लेते हैं और कहानियाँ सुनाते फिरते हैं। ये खुद गिरे हुए लोग हैं अंकल, ये क्या दूसरों की बात करेंगे।