Vijay Kumar Tiwari

Drama

4  

Vijay Kumar Tiwari

Drama

खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-5

खूबसूरत आँखोंवाली लड़की-5

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हालांकि प्रमोद बाबू को मध्यमा की मां में ऐसा कुछ नहीं लगता फिर भी उन्होंने उनकी बातों को गौर से सुना।सबकी अपनी-अपनी सोच है,जीने का अपना तरीका है,तभी तो यह दुनिया इतनी रंग-बिरंगी है,नाना तरह के रस हैं और जीवन में मधुरता है।उन्होंने गौर किया कि हाल के दिनों में एक-दो अपरिचित महिलायें उनसे भी मिली हैं परन्तु कोई मेल-जोल नही बढ़ा।मुश्किल है आजकल लोगों को पहचान पाना।आफिस में भी ऐसी ही चर्चायें होती हैं।लोग मजे ले-लेकर सुनाते हैं।

दूध वाला बता रहा था कि लोगों में आधुनिक दिखने की होड़ लगी हुई है।थोड़ा पढ़ा-लिखा है,हालात की समझ रखता है और नित्य घटी घटनाओं को सुना जाता है।प्रमोद बाबू उसे लोकल अखबार कहते हैं।उसकी सूचनायें सही होती हैं।दावा करता है कि बोलने लगे तो बहुतों के चेहरे के पर्दे फिसल जांये।थोड़ा खुल गया है,गाहे-बगाहे कुछ मदद मांग लेता है।कभी-कभी सुबह की चाय उसे भी मिल जाती है।थोड़ा रसिक भी है,पर दिल का बुरा नहीं लगता।सामने की सड़क के बंगलों की जो कहानी उसने सुनायी,प्र्मोद बाबू हत्प्रभ रह गये,"सब बुरी नहीं हैं सर।पतिदेव लोग बाहर-बाहर हैं।दो महीना,चार महीना पर दो-चार दिन के लिए आते हैं।दारु पीकर टर्र रहते हैं।कुछ तो साल-साल भर पर आ पाते हैं।क्या करे औरत?सज-संवर कर मन्दिर,बाजार वजह-बेवजह निकलती रहती है।लोग निगाह टिकाये रहते हैं।कोई-कोई थोड़ा हंस-बोल लेती है,हंसी-मजाक कर लेती है।लोग नाम-बदनाम करने लगते हैं।उनकी मजबूरी,मेहनत और लाचारी कोई नहीं देखता।"

"आ गये आपके परम हितैषी,"उसने अपना डिब्बा उठाया,"ये भी कम नहीं हैं।शादी हुई नहीं,होगी भी नहीं।सबको सर्टिफिकेट बांटते फिरते हैं।मिले तो किसी को ना छोड़ें।"

मोहन चन्द्र जी गेट के भीतर आ चुके थे।उनको देखकर और दूध वाले की बात सुनकर प्रमोद बाबू हंस पड़े।थोड़ा अटपटा सा लगा,परन्तु उन्होंने अपना ध्यान जाते हुए दूध वाले पर टिकाये रखा।रविवार की सुबह है,धूप में गर्माहट होने ही वाली है।कुतिया उधर बाड़े के पास आराम की स्वाभाविक मुद्रा में है।बीच-बीच में कान खड़ा करके आसपास की गतिविधियों पर निगाह बनाये हुए है।थोड़ी दूरी पर बिल्ली भी है। स्वभाव के विपरीत दोनो में बहुत प्रेम है।दोनो का मुँह प्रमोद बाबू की ओर है।मोहन चन्द्र बाबू को बैठने का ईशारा करके प्रमोद बाबू भीतर गये,पत्नी से बोले,"आलू भरा पराठा,टमाटर की चटनी और नमक डालकर दही तैयार कर दो।उसके बाद अच्छी सी चाय बनाना।"

"वो भी आये हैं ना?"उसने सामने वाले घर की ओर संकेत करते हुए पूछा।पता नहीं दायी ने क्या कह दिया है,कि उनके प्रति इसका भाव पहले जैसा नहीं रह गया है।कोई विरोध नहीं करती परन्तु खुले मन से स्वागत भी नहीं करती।

"हाँ,"कहकर वे बाहर निकल आये।बिल्ली पर निगाह पड़ी तो उन्होंने वहीं से पत्नी को आवाज दी,"देखो तुम्हारे दोनो बच्चे भूखे हैं,उनकी भी व्यवस्था कर देना।"अक्सर होता यह है कि जब पत्नी आसपास किन्हीं घरों के लिए निकलती है तो दोनो उसके साथ लग जाते हैं।बिल्ली गेट या थोड़ा आगे तक जाती है जबकि कुतिया साथ जाती है और साथ ही लौटती है।प्रमोद बाबू ने ऐसा देखकर शुरु में ही कहा था,"ये तुम्हारे बच्चे की तरह ही हैं।"

मोहन चन्द्र आज फिर उदास लगे।प्रमोद बाबू ने पहले उन्हें सामान्य करने की नाकाम कोशिशें कीं।किंचित मौन के बाद उनकी उदासी का कारण समझना चाहा।कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।प्रमोद बाबू ने उनकी दुखती रग को कुरेदा,"आज मुझे सही-सही बताइये,आपने शादी क्यों नहीं की?"

उन्होंने गौर से प्रमोद बाबू को देखा।आँखें पनीली हुईं,भीतर की विह्वलता उभर आयी और लगा दर्द भरी आवाज कहीं बहुत दूर से आ रही है।उन्होंने कहा,"बहुत लम्बी कहानी है।"किंचित रुककर बोले,"बस इतना ही समझ लीजिये कि मेरे अपनो ने ही नहीं होने दिया।तर्क दिया गया कि यह खुद बोझ है,शादी होगी,बच्चे होंगे,कौन खर्च उठायेगा?"थोड़ी देर के मौन के उपरान्त उन्होंने अपने हक की चर्चा की,"गाँव में पुश्तैनी खेती है।बड़े भैया सपरिवार अधिकार जमाये बैठे हैं।मेरा भी हिस्सा होना चाहिए।इस पर कोई चर्चा नहीं करता।उल्टे मुझे वहाँ टिकने नहीं देते।"

"ओह,यह बात है,"प्रमोद बाबू भावुक हो उठे,"जो जितना सम्पन्न है,वहाँ उतनी ही संकीर्णता है।सहयोग करने के बजाय अपने भी दूरी बना लेते हैं और कमजोर भाई के जीवन को गर्त में ढकेल देते हैं।"

"मान लीजिए,आपकी शादी हो भी जाये तो उसे रखेंगे कहाँ?खिलायेंगे क्या?कुछ तो स्थायी आय होनी चाहिए,भले कम ही हो,"प्रमोद बाबू ने कुछ दिनो पूर्व मध्यमा की मां से किसी कम उम्र की विधवा के सन्दर्भ में हुई बातचीत को याद करते हुए पूछा,"क्या आप किसी विधवा को अपनी सहधर्मिणी बनाना चाहेंगे?"

पत्नी ने आवाज दी,"नाश्ता तैयार है,आपलोग अन्दर आ जाईये।"

प्रमोद बाबू उन्हे भीतर लिवा ले आये।दोनो ने अपने-अपने हाथ धोये और टेबुल पर आमने-सामने आ बैठे।प्लेटें सज चुकी थीं।आलू भरे गर्म-गर्म पराठे,छोटी प्लेट में टमाटर और धनिया के पत्ते की रसदार चटनी.बड़े से कटोरे में दही,आम का अंचार और मिठाईयाँ।प्रमोद बाबू ने मन ही मन पत्नी को धन्यवाद दिया और मोहन चन्द्र जी से शुरु करने का आग्रह किया।

खा लेने के बाद दोनो हाथ धो रहे थे तभी किसी ने बेल बजायी।प्रमोद बाबू बाहर निकले।मध्यमा की मां और उसी उम्र की महिला,दोनो बैठका तक पहुँच चुकी थीं।प्रमोद बाबू ने सोफे पर बैठने को कहा।

"जब इसने आपके बारे में बताया,उसी समय से आपसे मिलना चाहती थी,"दूसरी महिला ने बिना किसी संकोच के कहा,"मेरा बेटा है,उसे भी आप कुछ सलाह दें।"

"अवश्य,क्यों नहीं?"प्रमोद बाबू औपचारिकता निभाते हुए बोले।भीतर से मोहन चन्द्र जी तौलिया से हाथ पोंछते निकले।उसी तौलिये के दूसरे छोर को पकड़कर प्रमोद बाबू ने भी हाथ पोंछा।मध्यमा की मां का चेहरा उतर गया।फिर भी बनावटी हंसी हंसते हुए उसने कहा,"लगता है,दावत हुई है।"प्रमोद बाबू पर गहरी दृष्टि डाली और कुटिल मुस्कान के साथ उसने कहा,"हम भी भूखे हैं सर जी।""और प्यासे भी,"साथ वाली महिला बोली। 


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