मौत का दर्द

मौत का दर्द

5 mins
557


मिंटी चाची का रोना देखा नहीं जा रहा। इतना तो वो तब भी नहीं रोई थी जब चाचा उन्हें तन्हा छोड़ कर चले गए थे।


चाची के जीवन में चाचा का होना एक नाकारापन ही था, क्योंकि चाचा को समय पर खाने के सिवाय दूसरा कोई काम नजर नहीं आता। दिन भर गाँव मे इधर उधर घुमते या अमराई में बैठ ताश खेलते और जब भूख सताती तो घर की याद आती।


चाची कहाँ से खाने की सामग्री लाएंगी इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। चाची कुछ बोलती तो गाली के गहने पहना उठ कर बड़े भाई के दरवाजे जा बैठते।


बड़े भाई सरकारी नौकरी में थे। वे भी उन्हें डाँट लगाते पर भाभी का स्नेह बना रहता। भाभी हमेशा कहती, “क्यों डाँटते हैं खेती बाड़ी है न घर बैठ कर भी खा सकते है।”


आखिर कब तक इस तरह चलता। धीरे-धीरे खेत सिमटने लगा। जब अंतिम कुछ खेत बेचने की नौबत आई तो मिंटी चाची सब लाज लिहाज छोड़ कर अपने खेत में काम करने लगी। उनका अपने खेत में इस तरह काम करना जेठानी को परिवार का अपमान लगता। नित्य गाली की बौछार करती और देवर की नजर में गलत साबित कर उन्हें पिटवा भी देती।


 मारा-पीटी होती तो चार दिन घर में खाना नहीं बनता। जब तक बच्चे छोटे थे अगल बगल वालों के दया के पात्र बने रहे। जब वे थोड़ा काम लायक हुए तो बड़ी चाची की खिदमत करते और कभी दो पैसा पा जाते या कभी भर पेट भोजन।


घर की अजब कहानी हो गई थी। एक दिन चाचा कस कर बीमार पड़े। पहले तो भाभी बहुत प्यार दुलार दिखाई। अपने ही बरामदे पर खाट डाल कहती, “यहीं आराम करो। घर जाओगे तो केवल लड़ाई होगी।”


पर जिस दिन ये पता चला कि उन्हें टी.बी. है भाभी ने उनकी खटिया खड़ी कर दी। सिर्फ उन्हें ही नहीं भगाया खाट की पूरी रस्सी खुलवा कर नई रस्सी मंगवा कर इसे पुनः बुनवाया और मिंटी चाची को गाली देते हुए बोली, रस्सी और बुनाई के पैसे दें।


उनके ही कारण ये सब हुआ है। मिंटी चाची पैसे कहाँ से देती उनको। फलस्वरूप उनकी खिदमत करने लगी।


उनकी ख़िदमत से समय मिलता तो अपनी खेती देखती। अपने आंगन में वे कुछ सब्जी उगा लेती थी जिसके बल पर वो चाचा को सब्जी खिला पाती। बड़की चाची के नजर पड़ते ही वे सब्जी अब उनके घर पहले जाती, बचने पर मिंटी चाची और चाचा को नसीब होता।


थक हार कर मिंटी चाची एक बार गिरधारी चाचा, चाची के परिवार के सबसे बड़े भाई अर्थात उनके चाचा ससुर के बड़े सुपुत्र जो गाँव के सरपंच भी थे, के पास बैठ अपना दुखरा रो कर जेठानी के अत्याचार को बताया। उन्होंने भी मिंटी चाची को ही कुछ कुछ समझा दिया। ठीक ही कहते हैं नंगटे से सभी डरते हैं ।


चाचा के जाने के बाद मिंटी चाची के पास अब इतना भी नहीं था कि चाचा की चिता को सुंदर से सजा कर सही तरीके से अग्नि के सुपुर्द कर सकें।


मायके वाले और गांव के कुछ सहृदय लोगों के सहयोग से चाचा की अंतिम क्रिया सम्पन्न हुई। पंडित जी आए और बोले, गरीब का भी उद्धार होता है। मैं गरूड पुराण का पाठ कर दूंगा केवल पांच ब्राह्मण को दही चूड़ा खिला दें श्राद्ध सम्पन्न हो जाएगा।


बड़ी भाभी से ये दुख देखा न गया। देवरानी को अधिकार से डाँट लगाई और कही, देवर जी परलोक सिधारे हैं हमलोग नहीं। इस तरह हम परिवार की बेइज्जती नहीं होने देंगे। श्राद्ध अच्छी तरह से सम्पन्न होगा और पूरे गाँव के लोग की बात को किनारे कर के जबरदस्ती शानदार तरह से अपने देवर का श्राद्ध सम्पन्न करवाई। सभी जगह कहती रही सब कोई हमको नीचा दिखाना चाहता है। हम ऐसा नहीं होने देंगे।


श्राद्ध में पूरे गांव के लोगों को भोज करवाया गया। सिर्फ भूखे ही सोई मिंटी चाची, क्योंकि बड़की चाची उनके घर के अंदर जाने में भेद जो मान रही थी।


श्राद्ध में आए अनाज को खत्म होते देर कहाँ लगी। अनाज खत्म होते ही मिंटी चाची को चिंता सताने लगी कि बच्चों को क्या खिलाएँ। वे पुनः खेत का रुख करने लगी। अब जेठानी का असली स्वरूप दिखाई दिया।


वो मिंटी चाची पर दवाब बनाने लगी कि खेत मेरे नाम लिखो क्योंकि मैंने तुम्हारे पति के श्राद्ध में जो रुपये खर्च किए हैं उनका भुगतान कैसे होगा।

बेचारी मिंटी चाची सबके पास जाकर गुहार लगाई। कोई दूसरे के फ़टे में पांव डालना नहीं चाहा। मिंटी चाची घिस कर आधी हो गई पर उनके तरफ किसी की नजर नहीं गई।


पति भी गए और श्राद्ध के नाम पर खेत भी। इज्जत के नाम पर बच्चे गांव में रह काम नहीं कर सकते थे अतः जेठानी की मेहरवानी से शहर में उनके घर परिवार में नौकर, ड्राइवर की कमी पूरी हो गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama