मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं?


*शायरों की अपनी दुनिया भी अनौखी होती है। कभी कभी शायर, कवि और लेखक अध्यात्म जगत के उस तल में प्रवेश कर जाते हैं जिसका आम आदमी के लिए अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। यूं कहें कि वे अपने भाव जगत में ज्यादा समय रहते हैं। यह उनका भाव जगत ही होता है जिसमें वे आसानी से प्रवेश कर जाते हैं और टटोल लाते हैं कुछ अनमोल ज्ञान रत्न। बरहाल जो भी हो, इतना अवश्य ही कहा जा सकता है कि वे उस समय में स्थूल जिस्म की स्मृति से ऊपर उठे हुए होते हैं। लेकिन भाव जगत ही सबकुछ नहीं होता है। आत्मा के अव्यक्त बिन्दु के अनुभव तक पहुंचने के अभी और भी कई पड़ाव पार करने होते हैं। साधक अपने अन्तर्जगत के पड़ावों को पार करते जाते हैं और आत्मिक स्थिति की यात्रा आगे बढ़ती जाती है। जिसके लिए ही सतत योग साधना अनिवार्य होती है। मैं कौन हूं, मैं जो हूं जैसा हूं, इसे तत्व से जानना व अनुभव करना ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसकी तुलना में शेष सब कुछ आसान और गौण ही होता है।