Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Nisha Singh

Inspirational

4  

Nisha Singh

Inspirational

मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ- 3

मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ- 3

5 mins
139


हाँ जी, चलिये… तो आगे की बात करते हैं।

अच्छा, एक बात बताइये... आप जब स्कूल में थे तो आपको आपकी क्लास का वो बच्चा याद है? जिसे सब पसंद करते थे (कुछ चिढ़ते भी थे), सब जिसके दोस्त बनना चाहते थे (कुछ नहीं भी बनना चाहते थे), सब जिसके साथ रहना चाहते थे (कुछ उसे दूर भी भगाना चाहते थे) जो सबसे होशियार हुआ करता था कह सकते हैं एक दम हीरो टाइप। याद है? याद ही होगा। मुझे भी तो याद है मेरी क्लास का वो हीरो और वो भी बहुत अच्छे से। क्योंकि वो मैं ही था।

अरे मज़ाक नहीं कर रहा हूँ, आप भी...

अरे मैं था सबका चहेता, शुरू से ही।

विश्वास नहीं है? तो फिर सुनिये...

हमारे गाँव बंगा में एक छोटा सा स्कूल था। गाँव के सारे बच्चे उसी स्कूल में पढ़ा करते थे। मैं और मेरे बड़े भाई जगत भी उसी स्कूल में थे।

अब आप यहाँ से ये मतलब मत निकाल लेना कि बड़े भाई जगत के नाम से तुक मिला के छोटे भाई का नाम भगत रख दिया।

जी नहीं। ऐसा बिल्कुल नहीं है।

अगर ऐसा लग रहा है तो आप पहले ये बात सुनो तब कुछ और बताऊँगा। तो बात कुछ यूँ हुई कि मेरे जन्म से पहले बापू और मेरे दोनों चाचा अंग्रेज़ों की कैद में थे। अब घर का माहौल तो आप समझ ही सकते है कि कैसा होगा। घर के तीनों बेटे घर से दूर, वो भी कैद में। ऐसे वक़्त में जब घर के लोग मुस्कुराना तक भूल गये थे, मेरा आना जैसे सबकी मुस्कुराहट वापस ले आया। और वजह रही कि मेरे जन्म के तीसरे ही दिन बापू और छोटे चाचा को जमानत पे छोड़ दिया गया और उसी दिन ये खबर भी आ गई कि बड़े चाचा भी आने वाले हैं।

शायद ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि इस बात की सबसे ज्यादा खुशी किसे हुई होगी। मेरी दादी, जयकौर की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। तीनों बेटे जो वापस आ गये थे।

“मेरे पुत्तर ने आते ही बिछड़ा हुआ परिवार मिला दिया। जरूर पिछले जन्म में कोई बड़ा भगत रहा होगा।” कहते हुए दादी ने मुझे गोद में उठा लिया था।

बस फिर क्या था, बापू ने मेरा नाम ही रख दिया ‘भगत’।

अब समझे... ऐसे पड़ा मेरा नाम भगत सिंह।

वैसे बड़े भाई जगत के अलावा मेरे 7 भाई बहन और थे। मुझसे बड़े बस जगत भाई थे बाकी सब मुझसे छोटे।  

वैसे मैं आपको क्या बता रहा था?

हाँ, याद आया...

मैं और भाई जगत एक ही स्कूल में पढ़ते थे। वो भी क्या दिन थे... दोनों भाई एक हाथ में तख्ती और एक हाथ में किताबें लिये साथ साथ स्कूल जाते थे। उछलते कूदते, तितलियाँ पकड़ते, हंसी मज़ाक करते स्कूल पहुँचते थे। बहुत मज़ा आता था। बड़ा शौक था मुझे स्कूल जाने का। लेकिन सिर्फ़ स्कूल जाने का वहाँ बंध के बैठने का नहीं। जहाँ जगत भाई पूरे ध्यान से मन लगा के पढ़ते थे वहीं मैं हर समय ये देखता रहता था कि कब छुट्टी मिले और मैं अपनी उड़ान भर सकूँ।

आपको पता है मेरे बहुत सारे दोस्त थे। सिर्फ़ स्कूल में ही नही पूरे गाँव में मुझे सब जानते थे। क्या छोटे क्या बड़े मैंने सबको दोस्त बना रखा था।

वैसे जगत भाईसाहब भी कुछ कम नहीं थे, बड़ा ही प्रभावशाली व्यक्तित्व था। पूरा गाँव तारीफ़ करता था। हम दोनों को साथ आते जाते देख गाँव वाले कहते थे कि बिल्कुल राम लक्ष्मण जैसी जोड़ी है।

भइया थे ही ऐसे। जहाँ भी जाते मुझे साथ ले जाते। कभी अकेला नहीं छोड़ा। और जब छोड़ा तो हमेशा हमेशा के लिये छोड़कर चले गये।

यूँ तो वक़्त के साथ सारे घाव भर ही जाते हैं पर भाई से बिछड़ने का मेरा ये घाव भरने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक बेटे को खो चुके मेरे माँ बाप दूसरे को खोना नहीं चाहते थे। माहौल और जगह बदलने से शायद मेरी तकलीफ़ कुछ कम हो सके इसलिये बापू ने गाँव छोड़कर नवाकोट जाने की तैयारी कर ली। जमीन जायदाद तो पहले से थी ही, परिवार भी नवाकोट पहुँच गया। और मुझे दाखिल करा दिया गया लाहौर के डी.ए.वी. हाई स्कूल में। जगह और माहौल का अंतर मुझमें बदलाव तो लाया पर फिर भी भाई जगत सिंह का चेहरा मेरी यादों मे कभी धुंधला नहीं पड़ा।

भाई जगत सिंह के अलावा कुछ यादें और भी थीं जिन्होंने मेरा पीछा ताउम्र नहीं छोड़ा। मेरी दोनों चाचियों के आँसू भी ज़िंदगी भर मेरे साथ ही चले। याद है मुझे जब भी मैं उन्हें रोते हुए देखता था तो उनसे वादा करता था कि बड़े चाचा को वापस ले कर आऊँगा और छोटे चाचा का बदला लूँगा इन कम्बख़्त अंग्रेज़ों से। निकाल बाहर करूँगा इन्हें अपने वतन से। वादा तो मैंने पूरा कर दिया पर उनके चेहरे की खुशी अपनी आँखों से नहीं देख सका।

मेरी दोनों चाचियाँ किसी योद्धा से कम नहीं थीं। कम से कम मैं तो उन्हें किसी सिपाही से कम नहीं समझता।

नहीं, नहीं... कोई स्वतंत्रता सेनानी नहीं थीं। पर कम भी नहीं थीं। अपनी सबसे कीमती चीज़ जो उन्होंने देश के नाम कुर्बान कर दी थी, अपना सुहाग। मैं सलाम करता हूँ अपनी चाची जैसी तमाम उन औरतों को जिन्होंने अपने पतियों को अपने बेटों को देश की आज़ादी के नाम कर दिया।

“अरे भगत... कितनी देर है ?”

लो ये लोग तो गये नहीं अभी तक। लगता है जाने वाले भी नहीं।

“यार सुखदेव थोड़ा वक़्त और लगेगा। एक काम करो तुम लोग भी यहीं आ जाओ।”

“ठीक है। पर तू कर क्या रहा है इतनी देर से यहाँ बैठा बैठा ?”

“बातें कर रहा हूँ कुछ पुरानी यादें ताज़ा कर रहा हूँ।”

“किसके साथ?”

“इनके साथ...”    


Rate this content
Log in

More hindi story from Nisha Singh

Similar hindi story from Inspirational