Apoorva Singh

Romance

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Apoorva Singh

Romance

मै आशी..

मै आशी..

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मै आशी बीस वर्ष की एक अल्हड़ लड़की।जिसने जिंदगी जीना अभी शुरू ही किया था।वो जिंदगी जिसके अंत के कुछ पन्नों पर पहले प्यार की अधूरी कहानी छपी हुई है।अब आप सोच रहे होंगे कि मैंने अपने प्रेम की बात की और ये नहीं बताया कि मेरा प्रेम . है.कौन ? तो अब इस बात को ज्यादा न बढ़ाते हुए शुरू करती हूं मै अपने पहले प्यार की छोटी सी कहानी..

वो शायद एक दिसंबर की सर्दी वाली एक खूबसूरत सी सुबह वाला दिन था,शायद नहीं हां।उस दिन कोहरे के बाद मखमली धूप निकली हुई थी जिसे देख कर मैंने और मेरी दोस्त पायल ने घर से निकल कर चिड़ियाघर घूमने का प्लान बनाया।उस दिन पायल के साथ कोई और भी था जिसे चिड़िया घर देखना था और वो था उसका कजिन विनय।चूंकि हमने वहीं मिलने का डिसाइड किया था सो मै वहां पहले पहुंच कर इंतजार करने लगी।लगभग दस मिनट बाद वो दोनों वहां पहुंचे।मै ज़ू के प्रवेशद्वार पर ही खड़ी हो पायल का इंतजार कर रही थी।फॉर्मल हाय हेल्लो के बाद तीनों अंदर पहुंचे।जहां विनय बात बात पर पायल को छेड़ता उससे हल्का फुल्का झगड़ता और उसके कुछ कहने पर बस मुस्कुरा कर कहता अब एक तू ही तो है जो मेरी दोस्त बहन केयर टेकर सब है।तुम्हारे साथ खुल कर नहीं जियुंगा तो फिर किसके साथ जियूंगा। न जाने क्यूं मुझे उसका ये खुला हंसमुख स्वभाव बहुत पसंद आया और उस दिन मै भी उसके उन दोनों के साथ खुल गई।अब आप सोच रहे होंगे खुलने से मेरा क्या आशय है तो सीधी बात ये है कि मै लोगों पर भरोसा बहुत देर में सोच विचार कर पाती हूं लेकिन उस दिन न जाने कारण डोर की वजह से उस पर भरोसा हो गया और मै अंतर्मुखी से बहिर्मुखी बन गई।उस दिन हमने करीब पांच घंटे साथ व्यतीत किए।और उन पांच घंटो में मै उससे एक जुड़ाव सा अनुभव करने लगी।घर आकर भी मै पूरे टाइम उसके ही ख्यालों में गुम रही।अगले दिन पायल ने मार्किट साथ चलने को बोला उस समय भी वो साथ ही आया इसी तरह बीच बीच में मेरी उससे मुलाकात हो जाया करती बीच बीच की ये मुलाकात अब हर दिन में और दोस्ती कब पहले प्यार में बदल गई न उसे पता चला और न ही मुझे।लेकिन कहते है पहला प्यार किस्मत वालो का पूरा होता है अक्सर लोगो का पहला प्यार अधूरा रह जाता है मेरा भी रहा....

ऐसे ही एक दिन मुझे मेरे जीवन की कठोर नियति के बारे में पता चला।लगातार गिरते स्वास्थ्य को देख मैंने अपना चेकअप करवाया और मुझे स्वयं की ब्लड कैंसर की लास्ट स्टेज के बारे में पता चला।

उस दिन मैंने जानबूझ कर आपसे झगड़ा किया विनय।मेरे झगड़ने पर तुम ने मुझ से कहा था आशी सुन ना क्यूं इतना भाव खा रही है देख अगर तू ऐसे ही भाव खाया करेगी तो मै किसी दिन ऐसे गायब हो जाऊंगा जैसे गधे के सर से सींग।तुम्हारी बात सुन मैंने भी जानबूझ कर कह दिया था जो कि कभी होते नहीं है।

तुम ने मुझसे पूछा तू मानने का क्या लेगी?

तो मैंने कहा था कुछ नहीं बस ये वादा कि तुम मुझे भूल कर अपनी लाइफ में आगे बढ़ जाओगे?

मेरी बात सुन कर तुम जहां थे वहीं रुक गए विनय और बोले ,आशी ये क्या मांग लिया तूने?जबकि तू अच्छी तरह जानती है कि ये पॉसिबल नहीं है।

तुम्हारी बात सुन मैंने तुमसे कहा था जानती हूं विनय लेकिन नियति को हमारा साथ मंजूर नहीं।तो तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया था और वहां से चले गए थे।तुम्हारे जाने के बाद पायल मेरे पास आई थी और उसने मुझसे पूछा,आशी क्यों कहा मैंने ऐसा?क्या जवाब देती मै उसे।मैंने उससे इतना ही कहा नियति के खेल भी निराले है पायल।और एक डायरी निकाल कर उसे दी।और उससे कहा ये डायरी मै उस समय तुम्हे दूं जब मै इस शहर से चली जाऊं...!

आज अगर आप ये डायरी पढ़ रहे हैं विनय तो इसका अर्थ है कि मै अब इस जहां में नहीं हूं।ब्लड कैंसर से जूझने के कारण मै इस जहां से जा चुकी हूं।

तो मुझे उम्मीद है तुम्हारे सारे सवालों के जवाब मिल चुके होंगे विनय।तुम ही तो हो मेरी पहली और आखिरी मुहब्बत।

मै तुम्हारी आशी...!



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